अमिताभ तिवारी/अमर सिन्हा

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के मतदान में कुछ ही दिन शेष हैं। प्रदेश की दोनों बड़ी पार्टियों के साथ छोटी-बड़ी और हाल ही में जन्मी नई पार्टियों के प्रत्याशियों ने जीत के लिए अपना पूरा जोर लगा दिया है। शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में लगातार तीन बार से मुख्यमंत्री हैं। इस बार भी इनकी विजय के साथ भाजपा की ही सरकार बनने की उम्मीद जताई जा रही है। हाल में आये कई सर्वे में भी यह बात कही जा रही है कि भले ही पहले की तुलना में भाजपा को कुछ सीटों का नुकसान होगा, लेकिन शिवराज सरकार बनाने में सफल होंगे।

क्या है शिवराज की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी

दो दशक से अधिक समय से सक्रिय राजनीति में रहने वाले शिवराज आखिर चुनावों में अजेय क्यों समझे जाते हैं या अजेय बने हुए हैं? इस सवाल का सटीक जवाब शिवराज सरकार में पूर्व मंत्री रहे सरताज सिंह के एक बयान में छिपा है। भाजपा से बागी होकर कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले सरताज सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘शिवराज बहुत मेहनती इंसान है। वो कभी किसी से गुस्से में बात नहीं करता है।’ कई राजनीतिक विश्लेषक भी यह कहते हैं कि शिवराज की विनम्र छवि ही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है।

मेरे एक पत्रकार मित्र का कहना है कि शिवराज का विशेष होकर भी आम बने रहना ही उनकी खासियत है। लगातार 13 साल से अधिक मुख्यमंत्री रहने पर किसी भी व्यक्ति में घमण्ड आ जायेगा और काफी हद तक उसका व्यक्तित्व बदल जायेगा, लेकिन शिवराज आज भी जैत गांव के एक साधारण से ग्रामीण की तरह नजर आते हैं। बातचीत का लहजा भी वही और पहनावा भी ज्यादा लकदक नहीं। यही आम बने रहने की खूबी उन्हें बार-बार खास पद तक पहुंचा देती है।

बार-बार जीतने की सबसे बड़ी वजह

शिवराज सिंह चौहान को भाजपा ने 1990 में पहली बार बुधनी विधानसभा से खड़ा किया और इन्होंने पूरे इलाके की पदयात्रा की। लोगों से परस्पर संवाद किया। चुनाव जीते और उस समय उनकी आयु मात्र 31 वर्ष थी। बार-बार इनके जीतने की वजह की बात की जाये, तो इनकी विनम्र छवि, पार्टी साथियों ही नहीं, बल्कि विरोधियों को भी सहज साध लेने की क्षमता, आम नागरिकों से विभिन्न यात्राओं और संवाद कार्यक्रम के जरिये निरंतर जुड़े रहना, सड़क, बिजली, पानी की उचित व्यवस्था है। इसके अलावा निरंतर 20 फीसदी से अधिक कृषि विकास दर, दालों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश को गेहूं के उत्पादन में अग्रणी बना देना, किसानों की आय में 75 फीसदी से अधिक की बढोतरी भी एक बड़ा कारण है।

कन्या विवाह/निकाह, लाडली लक्ष्मी, संबल, मेधावी विद्यार्थी प्रोत्साहन, तीर्थ दर्शन जैसी संवेदनशील योजनाएं, सोने पर सुहागा सिद्ध हुईं। सीएसडीएस की रिपोर्ट के अनुसार 20 प्रतिशत परंपरागत कांग्रेस वोटर भी 2013 में शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। शिवराज के बढ़ते कद के पीछे इनकी ही पार्टी के कई दिग्गजों का सितारा डूबता गया, लेकिन इस संजोग के पीछे कभी किसी से अदावत की तस्वीर सामने नहीं आई। बहरहाल, कारण चाहे जो भी हो, लेकिन शिवराज का चुनावी विजय रथ जो 1990 में बुधनी से चला तो बेरोकटोक 1996, 1998, 2008, 2013 के चुनावों में जीत के साथ निरंतर आगे बढ़ता रहा।

2003 दिग्विजय सिंह ने रोक दिया था शिवराज के अजेय रथ को

भले ही पिछले तीन दशकों से मध्यप्रदेश में मामा के रूप में लोकप्रिय शिवराज सिंह चौहान चुनाव दर चुनाव जीतते रहे हैं, लेकिन इनके अजेय रथ को कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने 2003 के चुनाव में राघौगढ़ में रोक दिया था। 1977 से इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है और अब तक भाजपा के लिए इस सीट को जीतना किसी बड़े सपने के साकार होने जैसा है। राजनीति के जानकारों की मानें तो अब भाजपा को राघौगढ़ को जीतने की बजाय अन्य सीटों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि पांव-पांव वाले भैया से बेहतर चुनावी योद्धा उनके पास दूसरा कोई नहीं है।

यदि भाजपा का तुरुप का पत्ता ही वहां नहीं चला, तो अब उस अभेद्य किले को भला कौन फतेह कर सकेगा। ऐसे में शिवराज को चाहिए कि कांग्रेस की सुरक्षित सीटों की बजाय अपनी ऊर्जा और ध्यान ऐसी सीटों पर लगाएं, जिस पर भाजपा को सहज जीत मिल सकती है। खैर, अब देखने वाली बात यह होगी कि इस चुनाव में शिवराज की मेहनत, विनम्रता काम आयेगी अथवा जनता बदलाव का रास्ता चुनेगी।

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