Delhi Assembly Elections 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर 5 फरवरी को वोटिंग होनी है। इस बार प्रदेश में मुख्य मुकाबला सत्ता धारी पार्टी और बीजेपी के बीच माना जा रहा है। इस चुनाव में मुस्लिम वोटर्स एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकते हैं। इसकी बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि कांग्रेस इस चुनाव में एक्टिव हो गई है और उसने चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है और वह दिल्ली के बहुसंख्यक वर्ग को लुभाने की कोशिश करती नजर आई।

AAP ने मध्य दिल्ली में मटिया महल और बल्लीमारान, दक्षिण पूर्वी दिल्ली में ओखला और उत्तर पूर्वी दिल्ली में सीलमपुर और मुस्तफाबाद समेत पांच सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। पार्टी ने 2020 के चुनावों में भी इन पांच मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम चेहरों को ही उम्मीदवार बनाया था, तब सभी ने भारी अंतर से अपनी सीटें जीती थीं।

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मुस्लिम समुदाय की थी AAP की जीत में अहम भूमिका

दलितों और झुग्गी झोपड़ी निवासियों के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय, दिल्ली के 1.55 करोड़ मतदाताओं का लगभग 13% हिस्सा है। मुस्लिम समुदाय ने 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में आप की जीत सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके चलते AAP ने 70 में से 67 और 62 सीटें हासिल की थीं।

बता दें कि 2015 के चुनावों से पहले मुस्लिम मतदाता दिल्ली में खुलकर कांग्रेस को समर्थन करते थे। इसके चलते 1998-2013 के दौरान लगातार तीन कार्यकालों तक में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। 2020 के दिल्ली चुनावों में कुल 16 मुस्लिम चेहरों को नामित किया था। इस बार उन्होंने इस संख्या को दोगुना कर 32 कर दिया है। साथ ही विभिन्न छोटे दलों ने भी समुदाय के वोट में हिस्सेदारी के लिए कई मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।

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2020 में कांग्रेस ने उतारे थे कई मुस्लिम उम्मीदवार

साल 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सिर्फ पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, उन्हीं सीटों पर जहां AAP के मुस्लिम चेहरे विजयी हुए थे। सीलमपुर को छोड़कर इन सीटों पर कांग्रेस का वोट शेयर बहुत कम था, जहां उसे 15.61% वोट मिले थे। पार्टी चुनावों में अपना खाता खोलने में विफल रही, जिसने 2015 की अपनी हार को दोहराया। 2020 में BSP ने तीन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जबकि राकांपा, राजद और शिवसेना ने एक-एक सीट पर मुस्लिम चेहरे को मैदान में उतारा था।

इस बार कांग्रेस ने दिया है 7 मुस्लिम नेताओं को टिकट

इस बार कांग्रेस ने सात सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें 2020 की पांच सीटें, उत्तर पूर्वी दिल्ली में बाबरपुर और दक्षिण पूर्वी दिल्ली में जंगपुरा शामिल हैं। आप के पांच मुस्लिम उम्मीदवारों में से तीन नए चेहरे हैं जिन्हें मटिया महल, सीलमपुर और मुस्तफाबाद निर्वाचन क्षेत्रों से मैदान में उतारा गया है।

मुस्तफाबाद उत्तर पूर्वी दिल्ली में सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक था, जो फरवरी 2020 में दंगों की चपेट में आया था जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए थे। आप से निकाले गए तीन मुस्लिम विधायक इसके 20 मौजूदा विधायकों में शामिल हैं जिन्हें पार्टी ने इस बार सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने के लिए टिकट देने से मना कर दिया है।

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BSP और AIMIM भी है एक बड़ा फैक्टर

बसपा की बात करें तो वो वर्तमान में 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उसने पांच सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इसमें तुगलकाबाद, आदर्श नगर, संगम विहार, रिठाला और लक्ष्मी नगर की सीटें शामिल हैं। इन क्षेत्रों में मुस्लिम वोटर्स की अच्छी खासी आबादी है, हालांकि पिछले चुनावों में बसपा का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है।

इतना ही नहीं, असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM भी इस चुनाव में उतरी है। ओखला में शिफा-उर-रहमान और मुस्तफाबाद में मोहम्मद ताहिर हुसैन को ओवैसी की पार्टी को टिकट दिया है।

दिल्ली दंगों के कई आरोपियों को दिया टिकट

आप के पूर्व पार्षद ताहिर 2020 के दिल्ली दंगों में कथित संलिप्तता के कारण जेल में थे जिसके लिए उन्हें आप ने भी निष्कासित कर दिया था। वह अब दिल्ली चुनाव के लिए प्रचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई छह दिन की कस्टडी पैरोल पर जेल से बाहर हैं। जामिया मिलिया इस्लामिया एलुमनाई एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष शिफा-उर-रहमान भी 2020 के दिल्ली दंगों के सिलसिले में जेल में थे और उन्हें दिल्ली चुनाव लड़ने के लिए स्थानीय अदालत से पांच दिन की हिरासत पैरोल मिली है।

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ओखला सीट पर अमानतुल्लाह के लिए चैलेंज

ओखला विधानसभा सीट की बात करें तो इस सीट पर 52 प्रतिशत मुस्लिम है। आप ने यहां से अपने मौजूदा विधायक अमानतुल्लाह खान को टिकट दिया है, जिन्होंने 2015 और 2020 में बड़े अंतर से सीट जीती थी। कांग्रेस ने अमानतुल्लाह के खिलाफ ओखला से पार्टी के पूर्व विधायक आसिफ मोहम्मद खान की बेटी, अपनी पार्षद अरीबा खान को मैदान में उतारा है। ओखला सीट पर मुस्लिम वोट पारंपरिक रूप से विजेता का निर्धारण करने में निर्णायक रहे हैं। 5 फरवरी को होने वाले चुनाव के लिए ओखला में 14 उम्मीदवारों में से 12 मुस्लिम समुदाय से हैं, जबकि केवल BJP और BSP ने ही हिंदू उम्मीदवार उतारे हैं।

बीजेपी को हुआ था काफी फायदा

विपक्ष और खासकर कांग्रेस के कई जाने-माने मुस्लिम चेहरों के उतरने से आम आदमी पार्टी चिंता में है। मुस्लिम वोटों के विभाजन से कई सीटों पर उसकी चुनावी संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और BJP को फायदा हो सकता है। चांदनी चौक और बादली जैसे कुछ अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी मुस्लिम मतदाता काफी संख्या में हैं, जहां से राज्य कांग्रेस प्रमुख देवेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे हैं।

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2015 में बीजेपी ने मुस्तफाबाद समेत कुल 3 सीटें जीती थीं, जिसका कारण मुस्लिम वोटों का बंटवारा माना गया था। उस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार जगदीश प्रधान ने कांग्रेस के हसन अहमद और AAP के मोहम्मद यूनुस को हराया था। हालांकि, 2020 में जब मुस्लिम समुदाय ने आप के यूनुस को अपना समर्थन दिया, तो उन्होंने 53% वोट हासिल करके जीत हासिल की, जबकि भाजपा के जगदीश प्रधान 42% वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के अली मेहदी को सिर्फ़ 3% वोट मिले।

चंद्रशेखर ने भी दिया है कि मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट

आगामी चुनावों में आप ने मोहम्मद यूनुस की जगह अदील अहमद खान को मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस ने फिर से अली मेहदी को मैदान में उतारा है। नगीना के सांसद चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व वाली आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने चार सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, जो कि मुस्लिम है। इसमें नरेला, किरारी, संगम विहार और छतरपुर शामिल है। दिल्ली चुनाव से संबंधित अन्य सभी खबरों के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।