महाराष्ट्र में रविवार को हुए सियासी घटनाक्रम (2 जुलाई 2023) ने सभी को चौंका दिया। दो दिन पहले तक बीजेपी के विरोध में बयान दे रहे NCP के नेताओं ने एकनाथ शिंदे की सरकार में मंत्री पद की शपथ ले ली। अजित पवार सहित अन्य नेताओं के महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बनने के बाद केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि कुछ ही दिनों में बिहार में भी ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है। नीतीश कुमार के फैसले से लोग और उनके विधायक नाराज हैं। रामदास अठावले के इस बयान को बहुत सारे लोगों ने मजाक में टाल दिया लेकिन बिहार में पिछले कुछ समय में हुई घटनाएं कुछ ऐसा ही इशारा करती हैं।
ऐसा नहीं है कि बिहार में इस तरह की चर्चाएं पहले नहीं हुई हैं। पिछले साल एकनाथ शिंदे द्वारा शिवसेना तोड़ने के बाद भी ऐसी बातें हुईं थीं लेकिन कुछ ही महीनों बाद बीजेपी को फिर से ‘गच्चा’ देते हुए नीतीश कुमार ने राजद को अपने साथ ले लिया था। इस सरकार में कांग्रेस, लेफ्ट और कुछ अन्य दल भी शामिल हुए।
तब से बीजपी लगातार जेडीयू पर हमलावर है और कहा जा रहा है कि बीजेपी लगातार नीतीश कुमार को कमजोर करने में लगी है। नीतीश कुमार के राजद के साथ जाने के बाद उनके खास उपेंद्र कुशवाहा के बीजेपी नेताओं से मुलाकात और फिर अपनी खुद की पार्टी बनाना इसका बड़ा संकेत है। हो सकता है लोकसभा चुनाव 2024 में उपेंद्र बीजेपी के साथ चुनाव लड़ते नजर आएं। वह इससे पहले भी ऐसा कर चुके हैं।
उपेंद्र कुशवाहा के अलावा बीजेपी ने हाल ही में जीतनराम मांझी की पार्टी को भी नीतीश कुमार से दूर करने में सफलता पायी है। जीतनराम मांझी अब एनडीए में शामिल हो चुके हैं। अब आने वाले दिनों में बिहार में एकनाथ शिंदे जैसे घटनाक्रम को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। खबरें हैं कि ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए नीतीश कुमार खुद पार्टी के एक-एक विधायक से मुलाकात कर रहे हैं, जिससे उनके अंदर एकता भी भावना को और दृढ़ किया जा सके।
क्यों जेडीयू में टूट की लगाई जा रहीं अटकलें?
दरअसल जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना लंबे समय तक बीजेपी की सहयोगी रही है, वैसे ही बिहार में जेडीयू और बीजेपी की दोस्ती लंबे समय तक रही है। बिहार में नीतीश लगातार दो विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर जीते। कहा तो ये तक जाता है कि साल 2019 में नीतीश के सांसदों के जीतने की वजह मोदी फैक्टर था। साल 2020 में नीतीश को बड़ा घाटा सहना पड़ा। संकेत साफ है कि नीतीश की पार्टी जेडीयू का ग्राफ गिर रहा है।
अगले साल फिर से लोकसभा चुनाव होने हैं, कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार की पार्टी के बहुत सारे नेता इस चुनाव में अपना सियासी भविष्य बहुत स्पष्ट नहीं देख पा रहे हैं। लोकसभा चुनाव के एक साल बाद विधानसभा का चुनाव भी होना है। बिहार की सियासत को नजदीक से देखने वाले बहुत सारे जानकारों का मानना है कि इसबार फिर लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी वोट पाने का सबसे बड़ा फैक्टर होंगे। यही वजह है कि जेडीयू के कई नेता चिंतित हैं।
इतना ही नहीं, कुछ रिपोर्ट्स में तो यहां तक कहा गया है कि नीतीश कुमार खुद भी दोबारा से बीजेपी की तरफ जा सकते हैं। उनपर राजद की तरफ से नेशनल पॉलिटिक्स पर फोकस करने और बिहार तेजस्वी को सौंपने का दबाव है। लेकिन ऐसे में सवाल है कि क्या बीजेपी नीतीश कुमार को फिर से स्वीकार कर पाएगी? अभी तो इसका जवाब न ही नजर आता है लेकिन कहते हैं कि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। अगर बिहार में ऐसा कुछ उलटफेर होता है तो यह लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्षी एकता के लिए बहुत बड़े झटके जैसा होगा।