दिल्ली की सियासत में फिर उबाल है, केंद्र के एक अध्यादेश ने जमीन पर नए विवाद को हवा दे दी है। अधिकारों की जिस लड़ाई में दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली थी, उसी राहत में कटौती करने का काम केंद्र ने कर दिया। ऐसा अध्यादेश लाया गया जिस वजह से एक बार फिर पोस्टिंग के मामले में एलजी ही बॉस बन गए। अब उस फैसले के खिलाफ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पूरे विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं।
मुद्दे तो बहाना, विपक्षी एकजुटता मकसद
उनकी तरफ से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे से मुलाकात की जाएगी। अब ये मुलाकात कहने को एक अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए मानी जा रही है, लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरह अरविंद केजरीवाल भी 2024 के रण के लिए विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं। इससे पहले भी कई विपक्षी नेताओं से केजरीवाल मुलाकात कर चुके हैं, उनकी तरफ से इस साल मार्च में एक बड़ी बैठक करने की भी तैयारी थी। वो हो तो नहीं पाई, लेकिन उनका इरादा स्पष्ट दिख गया।
पवार-ममता और उद्धव से मिलेंगे केजरीवाल
उसी इरादे के तहत अरविंद केजरीवाल 23 मई को सबसे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिलने वाले हैं। उनकी ये मुलाकात कोलकाता में ही होने वाली है, इसके बाद 24 मई को वे महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे से मुलाकात करने वाले हैं। अभी के लिए आप संयोजक का मुख्य एजेंडा तो अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करना है, लेकिन इसके साथ-साथ बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की तस्वीर को भी मजबूत करना है।
कांग्रेस-आप की अलग राहें, क्या बनेगी बात?
लेकिन एक सवाल जरूर उठता है- क्या अरविंद केजरीवाल इस विपक्षी एकता में कांग्रेस को भी साथ रखते हैं? क्या कांग्रेस इस विपक्षी एकजुटता को आगे से लीड करे, ये बात उन्हें स्वीकार होगी? इसे लेकर अभी तक केजरीवाल ने तो अपनी मंशा पूरी तरह साफ नहीं की है, लेकिन कांग्रेस ने कर्नाटक जीत के बाद सरकार के शपथग्रहण समारोह में अरविंद केजरीवाल को न्योता नहीं दिया। जिस मंच को विपक्षी एकता दिखाने का अवसर बताया जा रहा था, वहां पर आम आदमी पार्टी को आने का मौका ही नहीं मिला। आप को ना बुलाना ही बता रहा है कि कांग्रेस अभी भी विपक्षी एकता में अरविंद केजरीवाल को ज्यादा बड़ा खिलाड़ी नहीं मान रही।
इस बीच अब अरविंद केजरीवाल विपक्ष को एकजुट करने के लिए अपनी राह पर निकल पड़े हैं। उनकी लिस्ट में भी अभी कांग्रेस का कोई नेता शामिल नहीं है। वे शरद पवार, ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे से तो मुलाकात कर रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी या किसी दूसरे कांग्रेस नेता से मिलने की योजना नहीं है। यानी कि दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच में वैचारिक मतभेद हैं, उसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी दिख रहा है।
AAP से इतना असहज क्यों कांग्रेस, असल कारण ये
एक और बात जो शायद कांग्रेस को जरूर असहज कर सकती है, वो ये कि राजनीतिक जानकार मानते हैं कि आने वाले सालों में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस का ही एक दूसरा विकल्प बन सकती है, यानी कि जिन राज्यों में अभी कांग्रेस बनाम बीजेपी का सीधा मुकाबला रहता है, वहां पर AAP खेल कर सकती है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि दिल्ली में पहले मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच में रहता था, लेकिन वहां पर आम आदमी पार्टी ने ऐसी दस्तक दी कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का सफाया हो गया। इसी तरह पंजाब में उसने कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंका और गुजरात में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
ये स्थिति आप के लिए तो राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री के लिए मुफीद रह सकती है, लेकिन कांग्रेस के लिए बड़ी खतरे की घंटी है। माना जा रहा है कि इसी वजह से कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के साथ किसी भी सूरत में हाथ नहीं मिलाना चाहती और वो उसे विपक्षी एकता का हिस्सा भी नहीं मानती। वहीं दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल जिस तरह से कांग्रेस छोड़ बाकी विपक्षी दलों से मिल रहे हैं, उनकी भी अलग ही सियासत नजर आ रही है। बड़ी बात ये है कि इससे पहले भी एक तय रणनीति के तहत केजरीवाल ने इसी साल गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की है, कई पूर्व सीएम के साथ भी मंथन हुआ है, यानी कि वे भी कांग्रेस से तो दूरी बनाकर ही चल रहे हैं।
केजरीवाल का कॉमन पैटर्न, विपक्ष आएगा साथ?
वैसे सीएम अरविंद केजरीवाल का एक पैटर्न भी नजर आ रहा है। वे विपक्ष को एकजुट तो करना चाहते हैं, लेकिन उनकी अपनी शर्तें हैं, अपने मुद्दे हैं। जब दिल्ली में शराब घोटाला जोर पकड़ रहा था और मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी हुई थी, उस समय भी केजरीवाल ने जोर देकर कहा था कि सभी पार्टियों को इस अवैध गिरफ्तारी का विरोध करना चाहिए, अब जब केंद्र नया अध्यादेश लेकर आई है, वे फिर चाहते हैं कि सभी दल उनके साथ खड़े हो जाएं। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने ना मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी पर AAP को कोई समर्थन दिया था और ना ही अब इस अध्यादेश को लेकर उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया दी जा रही है।
नीतीश को क्यों पसंद केजरीवाल का साथ?
ऐसे में आप संयोजक अरविंद केजरीवाल कांग्रेस वाली विपक्षी एकता में शामिल हो पाते हैं या नहीं, ये अपने आप में बड़ा सवाल है। वैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो जरूर ऐसे प्रयास में लगे हुए हैं, वे आम आदमी पार्टी को भी इस एकता में रखना चाहते हैं। रविवार को जब नीतीश कुमार की केजरीवाल से मुलाकात हुई, तब भी बिहार सीएम ने कई मुद्दों पर अपना समर्थन जाहिर कर दिया था। इसी साल पहले भी नीतीश ने केजरीवाल से ही मुलाकात की थी, यानी कि कांग्रेस जिस नेता से दूरी बना रही है, नीतीश उन्हें किसी भी कीमत पर साथ लाना चाहते हैं।
20 सीटों पर AAP भी निर्णायक, नहीं कर सकते नजरअंदाज
वैसे विपक्षी एकता में आम आदमी पार्टी भी एक बड़ी भूमिका निभा सकती है। जो फॉर्मूला ममता बनर्जी ने सभी दलों को दिया है, अगर उस पर फोकस किया जाए तो उसके तहत कम से कम लोकसभा की 20 सीटों पर तो आम आदमी पार्टी भी मजबूत पकड़ रखती है। असल में ममता ने कहा था कि जिस राज्य में जो पार्टी मजबूत, उसे बीजेपी से मुकाबला करने का मौका मिलना चाहिए, कांग्रेस को उन्हें वहां स्पेस देनी चाहिए। अगर इस थ्योरी पर चला जाए तो दिल्ली और पंजाब में तो सीधा मुकाबला बीजेपी बनाम आम आदमी पार्टी चल रहा है। पंजाब में जरूर कांग्रेस भी गेम में है, लेकिन आप ज्यादा मजबूत मानी जा रही है। ऐसे में दिल्ली की सात और पंजाब की 13 सीटों पर विपक्ष को आम आदमी पार्टी बढ़त दिला सकती है।
थर्ड फ्रंट या कांग्रेस वाली एकता, केजरीवाल किस तरफ?
पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो दिल्ली में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था तो पंजाब में कांग्रेस आठ सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। लेकिन उसके बाद कई परिवर्तन हो चुके हैं, दिल्ली में फिर प्रचंड बहुमत के साथ आप की सरकार है और पंजाब में पहली बार सत्ता में आने का मौका मिला है। इसके साथ अब गुजरात में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को बछाड़ बीजेपी से सीधी टक्कर ली है। कई और राज्यों में भी वो अपने संगठन को मजबूत कर रही है, ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल कौन सी राह पकड़ते हैं, वे केसीआर के साथ थर्ड फ्रंट को हवा देते हैं या नीतीश की बात मान कांग्रेस वाली विपक्षी एकजुटता का हिस्सा बनते हैं, इस पर सभी की नजर रहने वाली है।