जम्मू-कश्मीर की अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर 7 मई को वोटिंग होनी है। लेकिन वोटिंग से पहले चार राजनीतिक दलों – जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (डीपीएपी), और भाजपा ने चुनाव आयोग वोटिंग की तारीख आगे बढ़ाने के लिए कहा है। इन पार्टियों ने तर्क दिया है कि हालिया बर्फबारी और भूस्खलन की वजह से प्रचार तक नहीं हो पा रहा है। इन पार्टियों ने तर्क दिया है कि हालिया बर्फबारी से मुगल रोड को से गुज़रना भी मुश्किल है। मुगल रोड अनंतनाग और राजौरी को जोड़ने वाली एकमात्र सड़क है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने क्या कहा?
जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसी पार्टियों ने इस दावे को खारिज कर दिया है और कहा है कि मुगल रोड खुला है और मौसम खराब होने पर भी इस पर यात्रा संभव है। सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सड़क कम से कम 23 अप्रैल से आंशिक रूप से खुली है। तो सवाल यह कि यह सब क्यों हो रहा है? क्या इसके पीछे घाटी में अपना रास्ता बनाने की बीजेपी की कोशिश इसके पीछे है?
अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट
साल 2022 से पहले जम्मू-कश्मीर में छह लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र थे: जम्मू और उधमपुर, श्रीनगर, बारामूला और अनंतनाग,और एक लद्दाख. फिर परिसीमन आयोग ने पूर्व राज्य का राजनीतिक मानचित्र फिर से तैयार किया। जबकि जम्मू क्षेत्र में दो लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बने रहे, इसके पुंछ जिले और राजौरी जिले के लगभग दो-तिहाई हिस्से को अनंतनाग-राजौरी संसदीय क्षेत्र बनाने के लिए कश्मीर के अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र में मिला दिया गया। नए निर्वाचन क्षेत्र में कुल 18 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं – 11 कश्मीर क्षेत्र के शोपियां, कुलगाम और अनंतनाग जिलों में, और 7 पुंछ और राजौरी जिलों में हैं।
अनंतनाग-राजौरी निर्वाचन क्षेत्र के गठन से कश्मीर घाटी में भारी हंगामा हुआ। क्षेत्र की मुख्यधारा की पार्टियों ने आरोप लगाया कि यह कदम चुनाव परिणाम को झुकाने के लिए उठाया गया है, जिससे भाजपा को घाटी में राजनीतिक प्रवेश करने में मदद मिलेगी। यह आरोप मुख्य रूप से नई संसदीय सीट की जनसांख्यिकी के कारण लगाया गया था।
अनंतनाग-राजौरी निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 18.30 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 10.94 लाख मतदाता कश्मीर क्षेत्र में और 7.35 लाख मतदाता जम्मू क्षेत्र में हैं। निर्वाचन क्षेत्र के कश्मीर क्षेत्र के अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में गैर अनुसूचित जनजाति (एसटी)-मुसलमानों का वर्चस्व है, जो कश्मीरी हैं। मुख्य रूप से बड़ी संख्या में गुज्जर और बकरवाल आबादी का वर्चस्व है।
क्यों हो रही देरी की मांग?
भाजपा ने इस निर्वाचन क्षेत्र में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि चूंकि अधिकांश मतदाता मुस्लिम हैं, इसलिए बीजेपी को लगता है कि फिलहाल वह अपने हालिया फैसलों के बाद भी यजन की आवाम का समर्थन नहीं हासिल कर सकेगी। इसलिए यहाँ से उम्मीदवार भी नहीं उतारा गया . ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी चाहती है कि ज़फ़र मन्हास – जिन्हें भाजपा और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का समर्थन मिलने मिलने की संभावना है उन्हें प्रचार करने का और समय मिल जाए।