जयपुर में पिछले दिनों एक कार्यक्रम में केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भू्रण परीक्षण का समर्थन करते हुए कहा कि वर्तमान कानून से भू्रण हत्याएं रुक नहीं रही हैं। इसीलिए बच्चे के जन्म से पहले ही उसका लिंग पता कर लिया जाना चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे की ठीक तरह निगरानी हो सके। गर्भ में लड़का है या लड़की, इसका पता चलने पर बच्चे को मॉनिटर करना आसान हो जाएगा।
केंद्रीय मंत्री का यह बयान अहितकारी है। यह बयान न सिर्फ भ्रूण हत्या रोकने वाले मौजूदा पीसीपीडीटी कानून के उलट है, बल्कि इससे कन्या भ्रूण के मारने की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होने की पूरी आशंका है। सभी को पता है कि हमारा समाज पितृसत्तात्मक है और यहां बेटे की चाह की प्रमुखता है। अगर माता-पिता को जन्म से पहले आसानी से यह पता चल जाए कि आने वाला बच्चा बेटा नहीं तो बहुत संभव कि उसे वे आने ही न दें। ठीक है कि अभी भी कन्या भ्रूण हत्या हो रही है मगर जो भी मामले हैं, वे चोरी के हैं। लेकिन इसे सार्वजनिक सहमति दी जाएगी तो कन्या भ्रूण को बचाना और बहुत मुश्किल हो जाएगा।
सरकार अभी तक भ्रूण परीक्षण करने वाले क्लिनिकों नकेल नहीं कस सकी है। चोरी छिपे यह कन्या भ्रूण परीक्षण जारी है। अगर जांच को जायज कर दिया गया तो होगा यह कि पेट में बच्ची होने पर गर्भवती मां के खानपान और दवा-दारू पर ध्यान ही न दिया जाए। अगर सच में ही मंत्री महोदया को लड़कियों के विकास की चिंता है तो उन्हें या हमारी सरकार को चाहिए कि ऐसा काम करे जिससे बेटियों को वास्तव में फायदा हो।
या तो स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के पूरक है या नहीं है। अगर पूरक हैं और परिवार, समाज, देश या दुनिया के लिए दोनों की बराबर महत्ता है तो महिला को कमतर करने वाली सारी परिस्थितियों पर खत्म किया जाना चाहिए। वंश बेटे से ही क्यों चलता है, संपत्ति में अधिकार बेटे को ही क्यों। कानूनन बेटी को भी बाप की संपत्ति में हिस्सा दे दिया गया है मगर व्यवहार में आज भी यह लागू नहीं है।
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून के तहत सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है कि पिता के उत्तराधिकार को बेटे और बेटी में समान रूप से बांटा जाए। बेटियों को बराबरी का दर्जा देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि उत्तराधिकार के साथ-साथ बेटियों को अपने पिता के उत्तरदायित्वों को भी निभाना पड़ेगा। मगर अफसोस कि संपत्ति का अधिकार बनने के बाद अधिकतर बेटियों की झोली में पित्ता की संपत्ति का हिस्सा नहीं आया है। भारतीय परिवेश में आज भी महिला के लिए अपने पति या ससुराल वालों से यह कहना कि वह भी अपने पिता या मां से जुड़ी जिम्मेवारी निभाएगी, असंभव सा है।
हाल में एक शादीशुदा मगर कामकाजी लड़की से मिलने का अवसर मिला। वह पति से छुपकर बीमार मां को देखने जा रही थी मगर काफी डरी हुई थी कि पति को पता चल गया तो उसके साथ जाने क्या होगा ? यह एक सामान्य बेटी की बात नहीं, भारत की एक कामकाजी लड़की की बात है जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है। अगर उसकी ऐसी मनोदशा है, बीमार मां तक को देखने के लिए तो सोचिए कि हमारे समाज में पति यानी पुरुष का वर्चस्व किस तरह हावी है, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। जब पिता की जिम्मेवारियां महिला निभा नहीं पाएगी तो उसे सामान्य रूप से संपत्ति के हिस्से से भी वंचित ही समझिए।
महिला के कमजोर होने के कई सारी वजहें है। अधिकतर महिलाओं को इस तरह मानसिक रूप से तैयार किया जाता है कि वे ठीक से निर्णय लेने में अक्षम रहें। अगर भला-बुरा समझ भी जाएं तो इतना मजबूत नहीं बनें कि अपने हिसाब से जी सकें। इसके कितने उदाहरण समाज में हैं। बेटे को अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे, मगर बेटी को खराब स्कूल में। बेटे के लिए उच्च शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण मुहैया कराना मगर बेटी को मात्र स्कूली शिक्षा या फिर पत्राचार से डिग्री।
एक और स्थिति लड़की को कमजोर करती है। उसे घरेलू काम करने पर जोर दिया जाता है और लड़कों को इससे छूट दी जाती है। बेटे को घर के बाहर रहने के तमाम अधिकार दिए जाते हैं, लेकिन बेटी को चारदीवारी में ही रहने को प्रेरित किया जाता है। बेटी को संस्कारों की दुहाई देकर चुप रहने, बड़ों की सेवा करने, विनम्रता के साथ जीने की सीख दी जाती है। जबकि यही चीजें उसे आगे नहीं बढ़ने देतीं। रो-धो कर जीना और सीमित दायरा में ही रहना उसकी नियति बन जाती है।
अगर महिला की प्रगति चाहिए तो संस्कार के नाम पर, जो सदियों से लड़कियों को कमजोर बनाए रहने का ढोंग चल रहा है, उसे तत्काल दुरुस्त करने की जरूरत है। अगर महिला सशक्तीकरण करना है तो लड़कियों का पालन-पोषण इस तरह होना चाहिए जिससे मां-बाप को बेटी होने के नुकसान नहीं फायदे नजर आएं और खुशी से वे उसे पैदा करना और बड़ा करना चाहें। समाज में कुछ ऐसा हो कि दहेज कायम न रहे। हमारे समाज और देश का वातावरण ऐसा बनाया जाए कि जिसमें पुरुष के साथ-साथ महिला को भी अपने विकास के बराबर अवसर मिल पाएं। अपनी बेटियों को इतना सक्षम बनाने की जरूरत है कि वे घर से ही सही का समर्थन और गलत का विरोध कर सकें। अगर बचपन से ही उनमें ये विशेषताएं कायम हो जाएं तो इसकी संभावना अधिक कि शादी के बाद वे घर के बाहर भी गलत न सहें। आजादी का सुख अब उसे भी चाहिए। ०