आज तकनीक की रफ्तार इस कदर तेज और इसका दायरा इतना बड़ा है कि न केवल वक्त के लिहाज से, बल्कि बहुस्तरीय सुविधाओं के मद्देनजर भी यह आम जनजीवन का हिस्सा बनता जा रहा है। यों लगभग सभी क्षेत्रों में आधुनिक तकनीकी रोज नई ऊंचाई हासिल कर रही है, लेकिन खासतौर पर आर्थिक गतिविधियों में डिजिटल प्रणाली ने व्यापक पैमाने पर अपनी स्वीकार्यता बनाई है।

यह बेवजह नहीं है कि आज भारी संख्या में लोग पैसों के लेनदेन के मामले में नगद पर निर्भर रहने के बजाय यूपीआइ जैसी डिजिटल सुविधा की ओर रुख करने लगे हैं। शायद इसी के मद्देनजर सरकार भी इस संदर्भ में एक तरह से स्पष्ट नीति पर चल रही है। गौरतलब है कि मंगलवार को प्रधानमंत्री ने ‘यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस’ यानी यूपीआइ को भारत की सबसे पसंदीदा भुगतान प्रणाली बताया और कहा कि यह जल्दी ही नगदी लेनदेन को पीछे छोड़ देगी। दरअसल, भारत की ‘यूपीआइ’ और सिंगापुर की ‘पे नाऊ’ प्रणाली के बीच संपर्क सुविधा की शुरुआत की गई है, जो दोनों देशों की त्वरित भुगतान प्रणाली को मोबाइल ऐप के माध्यम से सुविधाजनक, सुरक्षित, तेज गति से और सीमा पार धन हस्तांतरण में सक्षम बनाएगी।

इस सुविधा का सबसे बड़ा लाभ है कि अब भारत और सिंगापुर के लोग अपने मोबाइल फोन से उसी प्रकार धन का हस्तांतरण कर पाएंगे, जैसे वे अपने-अपने देशों में अभी करते हैं। आधुनिकी तकनीकी और इंटरनेट की दुनिया में व्यापक उपलब्धियों के दौर में यह स्वाभाविक ही है कि इसका उन क्षेत्रों में भी बेहतर सदुपयोग हो, जो किसी व्यवस्था को सुचारु बनाए रखने के लिहाज से अहम माने जाते हैं।

किसी भी देश में आर्थिक गतिविधियों में आम लोगों की भागीदारी मुख्य रूप से अपनी जरूरतों के संदर्भ में लेनदेन के रूप में होती है। अब तक यह व्यवस्था नकद भुगतान के रूप में कायम रही है और लोग इसी के अभ्यस्त रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में जब से इस क्षेत्र में डिजिटल माध्यम का विस्तार हुआ है, उसके बाद धीरे-धीरे सही, लेकिन बड़ी तादाद में लोग खरीद-बिक्री या फिर अन्य जरूरतों के मामले में पैसे के लेनदेन के लिए आनलाइन माध्यमों या मुख्य रूप से यूपीआइ का उपयोग करने लगे हैं। हाल ही में आए एक आंकड़े के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 में पंजीकृत यूपीआइ लेनदेन पैंतालीस बिलियन रहा, जो पिछले तीन सालों में आठ गुना और पिछले चार सालों में पचास गुना बढ़ोतरी को दर्शाता है।

जाहिर है, वक्त के साथ बदलते दौर और आधुनिक तकनीकी से लैस होती व्यवस्था में लोगों की भागीदारी बढ़ रही है। इसे सकारात्मक बदलाव कहा जा सकता है। लेकिन हकीकत यह भी है कि डिजिटलीकरण के समांतर साइबर अपराधों का जोखिम भी बढ़ा है। आए दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें पैसों के भुगतान या लेनदेन में कोई गड़बड़ी हो जाती है।

अगर किसी व्यक्ति से खुद कोई चूक हो जाती है तो यह किसी तकनीक के उपयोग में उसके प्रशिक्षण में कमी का मामला हो सकता है। लेकिन सच यह भी है कि बहुत सारे लोग संगठित साइबर अपराधों का शिकार हो रहे हैं। इसमें लोगों की लापरवाही, असावधानी, कम जानकारी या फिर मोबाइल आदि संबंधित तकनीक और इंटरनेट के असुरक्षित होने जैसी वजहें हो सकती हैं।

हालत यह है कि कई बार किसी संस्थान में इंटरनेट पर आधारित बेहद सुरक्षित माने जाने वाली व्यवस्था में भी साइबर हमला करने वालों ने सेंधमारी की और उसे भारी नुकसान पहुंचाया। ऐसी स्थिति में नगदी के लेनदेन की बढ़ती रफ्तार डिजिटल दुनिया के विस्तार का सूचक जरूर है, लेकिन इसे साइबर अपराधियों से पूरी तरह सुरक्षित बनाने के लिए भी चाकचौबंद व्यवस्था की जानी चाहिए।