मुख्य आर्थिक सलाहकार को खुश होना चाहिए कि राजकोषीय घाटे को लेकर उनकी बात गलत निकली। वह अच्छा तर्क था जो गलत साबित हुआ! मैंने मौजूदा वित्तवर्ष में राजकोषीय घाटे को 3.9 फीसद तक सीमित करने तथा 2016-17 के लिए 3.5 फीसद का लक्ष्य निर्धारित करने के लिए वित्तमंत्री की प्रशंसा की। इस एक निर्णय ने आर्थिक सुधारों के प्रति सरकार की घोषित प्रतिबद्धता की साख बढ़ाई है।
मगर बजट के राजकोषीय हिसाब को लेकर कई सवाल उठते हैं।
यहां मैं ‘तेल का फायदा कहां गया’ शीर्षक से लिखे अपने पिछले एक स्तंभ (10 जनवरी, 2016) की याद दिलाना चाहूंगा। बजट दस्तावेजों ने शुरुआती अनुमानों की पुष्टि ही की है। कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट के चलते सरकार को 140,000 करोड़ रुपए का अप्रत्याशित फायदा मिला। इस लाभ का अधिकांश 2015-16 में निम्नलिखित ढंग से इस्तेमाल हुआ:
प्रत्यक्ष कर प्राप्ति की खाई पाटने में : 46,000 करोड़ रुपए
अन्य प्राप्तियों की खाई पाटने में : 44,000 करोड़ रुपए
जीडीपी में कम बढ़ोतरी के चलते
कम उधारी की खाई पाटने में : 20,000 करोड़ रुपए
मौका गंवाया
जैसा कि मुझे डर था, वही हुआ। अप्रत्याशित लाभ का कोई हिस्सा अतिरिक्त पूंजीगत व्यय या सामाजिक सेक्टर के कार्यक्रमों में इस्तेमाल नहीं हुआ। वास्तव में, अगर बजट अनुमानों को संशोधित अनुमानों के बरक्स रख कर देखें तो कुल पूंजीगत व्यय 2,41,430 करोड़ रुपए से घट कर 2,37,718 करोड़ रुपए पर आ गया।
मौका गंवा दिया गया। अगर सरकार ने बजट के मुताबिक प्रत्यक्ष करों की वसूली की होती और विनिवेश का अपना लक्ष्य पूरा किया होता, तो वह अतिरिक्त पूंजीगत व्यय के तौर पर खासी रकम लगा सकती थी। उससे कुल मांग में वृद्धि होती। लिहाजा, भले ही सरकार ने राजकोषीय घाटे का 3.9 फीसद का मुकाम पा लिया हो, इसे हासिल करने का तरीका संतोषजनक नहीं था- इसलिए राजकोषीय प्रबंधन को अच्छे नंबर नहीं दिए जा सकते।
अब हम 2016-17 के लिए राजकोषीय घाटे के 3.5 फीसद के लक्ष्य पर नजर डालते हैं।
कुल प्राप्तियां और कुल खर्च 2015-16 के 17,85,391 करोड़ (संशोधित अनुमान) से बढ़ कर 2016-17 में 19,78,060 करोड़ (बजट अनुमान) हो जाएंगे। यह 1,92,669 करोड़ रुपए का एक भारी उछाल है। कुल खर्च का 5,33,904 करोड़ उधारी (राजकोषीय घाटे) से जुटाया जाएगा, जो कि 2015-16 की उधारी (5,35,090 करोड़ रुपए) के आसपास ही होगा।
राजकोषीय उलझाव
आखिर सरकार 1,92,669 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि कैसे जुटाएगी? इसी बिंदु पर बजट का हिसाब उलझाव में बदल जाता है।
बजट दस्तावेजों के मुताबिक प्राप्तियों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं (आंकड़े मोटे तौर पर दिए गए हैं):
कुल कर राजस्व : + रु. 1,07,000 करोड़
गैर-कर राजस्व : + रु. 64,000 करोड़Þ
अन्य प्राप्तियां : + रु. 31,000 करोड़
यह प्राप्तियों में वृद्धि का महत्त्वाकांक्षी अनुमान है। यह मान कर चला गया है कि प्रत्यक्ष कर की वसूली में 2015-16 के 8.3 फीसद के मुकाबले 12.6 फीसद की बढ़ोतरी होगी। स्पेक्ट्रम आबंटन से बयालीस हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय होगी, जिससे गैर-कर राजस्व में इजाफा होगा। इसके अलावा इकतीस हजार करोड़ रुपए विनिवेश से मिलेंगे (जो कि 2015-16 की प्राप्ति के लगभग बराबर होगा)। ये पूर्वानुमान सही साबित हों इसके लिए जरूरी है कि राजस्व विभाग और विनिवेश विभाग असाधारण क्षमता और गतिशीलता से काम करें। इसका मतलब यह भी होगा कि दूरसंचार कंपनियां स्पेक्ट्रम पाने के लिए ज्यादा धन लगाने को तैयार होंगी।
चिंता की बात यह है कि कहीं पूर्वानुमान गलत साबित हुए, तो शायद कोई दूसरी योजना (प्लान बी) नहीं है। क्या सरकार सबसिडियों या दूसरे खर्चों में कटौती करेगी? पहले ही, सामाजिक क्षेत्र में अपर्याप्त आबंटन को लेकर नाराजगी रही है। रक्षा-व्यय घटाने की भी गुंजाइश नहीं है। हो सकता है खर्च कुछ बढ़ ही जाय, जब सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट या समान रैंक समान पेंशन योजना लागू होगी।
राजकोषीय गणित का दूसरा संदेहास्पद पहलू जीडीपी से जुड़ा है। वर्ष 2015-16 में जीडीपी में 8.6 फीसद की साधारण बढ़ोतरी हुई। यह आस लगाई गई है कि 2016-17 में जीडीपी वृद्धि दर 11 फीसद होगी। राजस्व अनुमान (कर-राजस्व और गैर-कर राजस्व, दोनों) निर्णायक रूप से जीडीपी की वृद्धि पर निर्भर करते हैं। हमें हैरान होने के लिए विवश होना पड़ सकता है।
गैर-बजटीय उधारी
बजट का एक और पहलू है जो राजकोषीय हिसाब की प्रामाणिकता को प्रभावित करता है। यह है रेल तथा भूतल परिवहन मंत्रालयों की तरफ से लिया जाने वाला उधार। यह उधारी, जो कि ‘अतिरिक्त बजटीय संसाधन’ (ईबीआर) कही जाती है, सरकार के हिसाब-किताब से बाहर रखी गई है। रेलवे के मामले में ईबीआर के 48,700 करोड़ (2015-16) से बढ़ कर (2016-17 में) 59,325 करोड़ पर पहुंच जाने का अनुमान लगाया गया है, और सड़क परिवहन के मामले में अनुमान है कि ईबीआर 28000 करोड़ (2015-16) से बढ़ कर (2016-17 में) 59,279 करोड़ हो जाएगा। उधार लेने की क्षमता के अलावा, यह भी विचार का विषय है कि गैर-बजटीय उधार लेना कितना सही है। ठीक रुख यह होगा कि सरकार उधार ले और बुनियादी ढांचे के इन दो मंत्रालयों को धनराशि मुहैया कराए, तो उसे बजट के रास्ते से ही ऐसा करना चाहिए। इन दो मंत्रालयों का (या अपने सार्वजनिक उपक्रमों के जरिए) भारी उधार लेना हिसाब-किताब के लिहाज से भले कोई नई या असामान्य बात न हो, पर यह दूरदृष्टि वाले विश्लेषकों तथा रेटिंग एजेंसियों को शायद खटकेगा। मुझे हैरानी नहीं होगी, अगर वे इस तरह की सारी उधारी को कुल राजकोषीय घाटे में जोड़ कर देखेंगे। राजकोषीय घाटे को अगले वित्तवर्ष में 3.5 फीसद पर लाने का लक्ष्य वास्तव में सही जवाब है, पर राजकोषीय गणित उलझाने वाला है।