आरएसएस की आलोचना के सवाल पर राहुल गांधी पीछे हटते नजर आए लेकिन अंत में उन्‍होंने सही किया। सत्‍ता की उम्‍मीद रखने वालों के लिए इतिहास के सबक हमेशा अच्‍छे होते हैं। कांग्रेस का कोई भविष्‍य नहीं है इसलिए यह बीते समय में शांति ढूंढ़ रही है। लेकिन राहुल गांधी को कांग्रेस के बयान को ही सच नहीं मानना चाहिए। इसलिए गैर कांग्रेसी इतिहास के बारे में जानना चाहिए। आरएसएस और सीपीआई का गठन एक ही साल में हुआ था, बावजूद इसके आरएसएस मजबूत हुआ जबकि सीपीआई गायब हो गई। दोनों का गठन यूरोपीय क्रांति की लाइन पर हुआ था। आरएसएस ने खाकी शर्ट और हाफ पैंट को अपनी पोशाक चुना, उन्‍होंने ऐसा कांग्रेसी के वॉलंटियर्स की नकल करते हुए किया। आरएसएस गैर राजनीतिक था और उसने हिंदू महासभा की तरह धर्म को आगे भी नहीं किया। शुरुआती 20 साल में इसकी रफ्तार मिलीजुली रही लेकिन बिहार भूकंप के समय उसका काम प्रभावशाली था। आजादी के बाद इसको कांग्रेस में शामिल करने की बातें भी चली थी।

लेकिन नाथूराम गोडसे ने सब बिगाड़ दिया। आरएसएस को 15 महीने के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। आरएसएस को फिर से उभरने में 25 साल लग गए। इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के कारण आरएसएस फासीवाद के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो सका। सीपीआई ने इमरजेंसी में सहयोग दिया। संजय गांधी के मुसलमानों की नसबंदी अभियान के खिलाफ आरएसएस ने जामा मस्जिद के इमाम से हाथ मिलाया था। इमरजेंसी के दौरान जनसंघ के सदस्‍य जेल जाकर स्‍वतंत्रता सैनानी बन गए।

इमरजेंसी के कारण भाजपा/आरएसएस की पहचान राष्‍ट्रवादी संगठनों के रूप में बनी। कांग्रेस ने अपनी धर्मनिपरेक्ष पहचान खो दी। आरएसएस ने वह किया जो वामपंथी पार्टियों को करना चाहिए था। वे स्‍कूल, कॉलेज, मंदिर और सिविल सोसायटी ग्रुप में चले गए। उन्‍होंने धीरे-धीरे अपना संदेश फैलाना शुरू किया। उनका संदेश साफ था: कांग्रेस द्वारा अपनाई गई धर्मनिरपेक्षता फर्जी, छद्म और हिंदू विरोधी थी। महाराष्‍ट्र उनका घर था। इसके बाद गुजरात में वे गए जहां उन्‍हें काफी सफलता मिली। अगले कदम उत्‍तर प्रदेश, मध्‍यप्रदेश और राजस्‍थान के लिए उठाया गए।

इंदिरा गांधी की हत्‍या के बाद आरएसएस ने सिख चरमपंथ के खिलाफ कांग्रेस के साथ लड़ाई लड़ी और राजीव गांधी की बड़ी जीत में भूमिका निभार्इ। लेकिन बाद वे फिर से भाजपा के साथ लौट गए। 1989 में कांग्रेस की हार ने भारतीय राजनीति को बदल दिया। हिंदू वोटों को एक कर जीत हासिल करने के लिए राम जन्‍मभूमि मामले का फायदा लेने का प्रयास किया गया। बाबरी मस्जिद के विध्‍वंस के बावजूद भाजपा सत्‍ता में नहीं आई। इससे केवल यह हुआ कि कांग्रेस ने यूपी में मुसलमानों के वोट गंवा दिए और फिर कभी यहां सत्‍ता में नहीं आई। भाजपा ने एनडीए गठबंधन बनाकर अटल बिहारी वाजपेयी की छवि के सहारे सत्‍ता में जगह बनाई।

नरेंद्र मोदी को जीत सामूहिक विकास के विचार के जरिए मिली। इसके जरिए आरएसएस भी सत्‍ता में आया। आरएसएस एक विपक्षी और अलोकतांत्रिक है। वह सामाजिक समानता या लैंगिक न्‍याय को हैंडल नहीं कर सकता। जब यह बढ़ रहा था तब यह भाजपा के लिए आवश्‍यक था। लेकिन अब पार्टी आगे बढ़ चुकी है और वह प्रमुख पार्टी बनने वाली है। सवाल यह है कि क्‍या भाजपा को आरएसएस की सलाह चाहिए।