हालांकि आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान को अमेरिका की तरफ से चेतावनी मिलना कोई नई बात नहीं है। काफी पहले से इसके अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। खुद वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इससे पहले कई बार चेता चुके थे। लेकिन अभी उन्होंने पाकिस्तान के प्रति जो सख्ती दिखाई है वह अपूर्व है। पाकिस्तान के लिए नए साल की शुरुआत अमेरिका के कोप से हुई। पाकिस्तान की बाबत ट्वीट के जरिए ट्रंप ने कहा कि इस दक्षिण एशियाई देश ने आतंकियों को सुरक्षित पनाह दी, और अमेरिका को सिर्फ झूठ और धोखा दिया है। ऐसे देश को अब और आर्थिक मदद देना मूर्खता होगी। पाकिस्तान के लिए इससे कड़ी फटकार और इससे ज्यादा तीव्र निंदा और क्या होगी! और यह सब कहने के एक रोज बाद ही ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान को साढ़े पच्चीस करोड़ डॉलर की आर्थिक सहायता रोक दी। ट्वीट और उसके बाद की इस कार्रवाई से ट्रंप ने यही जताया है कि वे आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की आनाकानी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। और इसका असर भी दिखा है। ट्रंप के कड़े तेवर दिखाने के कुछ ही घंटे बाद पाकिस्तान सरकार हरकत में आई और उसने लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक व मुंबई हमलों के सरगना हाफिज सईद और उसके संगठनों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया।

खबर है कि पाकिस्तान की वित्तीय नियामक संस्था प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग ने जमात-उद-दावा और फलह-ए-इंसानियत फाउंडेशन समेत हाफिज के सारे संगठनों के चंदा लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह कितना टिकाऊ होगा, फिलहाल कहना मुश्किल है। आर्थिक सहायता रोक देने के ट्रंप प्रशासन के फैसले के अलावा जिस एक और बात ने पाकिस्तान सरकार को चिंतित और सक्रिय किया होगा, वह यह तथ्य है कि इसी माह के अंत में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक टीम आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई का जायजा लेने के लिए पाकिस्तान आने वाली है। इस टीम को दिखाने के लिए भी पाकिस्तान सरकार को कुछ न कुछ करना ही था। फिर, पाकिस्तान की सरकार और वहां के सुरक्षा विशेषज्ञों ने ट्रंप को और सुरक्षा परिषद की आने वाली टीम को जवाब देने के लिए अपने तर्क तैयार कर लिये हैं- यह कि अमेरिका की अगुआई वाले आतंकवाद विरोधी अंतरराष्ट्रीय गठबंधन में पाकिस्तान ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। फिर, पाकिस्तान तो खुद आतंकवाद से पीड़ित है। इन दलीलों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता, पर इनका हवाला देकर पाकिस्तान आतंकवाद के मामले में अपनी जवाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकता। यह सच्चाई अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों को भी मालूम थी, जिन्हें ट्रंप ने कोसा है। पर बुश, क्लिंटन, ओबामा यह भी जानते थे कि पाकिस्तान को साथ रखना खासकर अफगानिस्तान के मद््देनजर जरूरी है। ट्रंप क्या इस हकीकत की अनदेखी कर पाएंगे?

पाकिस्तान के खिलाफ ट्वीट करने के कोई आधे घंटे बाद ट्रंप ने ईरान पर भी निशाना साधा। ईरान इन दिनों सरकार विरोधी प्रदर्शनों से जूझ रहा है। क्या वहां की सत्ता को अस्थिर करने में अमेरिका की दिलचस्पी है? जो हो, ईरान और पाकिस्तान, दोनों को एक साथ नाराज करना अफगानिस्तान में अमेरिका के लिए महंगा पड़ सकता है। क्या ट्रंप यह कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं? अगर वे ज्यादा शिकंजा कसेंगे, तो पाकिस्तान चीन पर अपनी निर्भरता और बढ़ा लेगा। क्या पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए चीन से टकराने की हद तक ट्रंप जाएंगे? इन सवालों के जवाब फिलहाल अनुत्तरित हैं। यहां यह जरूर उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान के बीच, तमाम खटास के बावजूद, संवाद का एक कोना बचा कर रखने और सौहार्द का संकेत देने की कोशिशें हुई हैं। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की पिछले हफ्ते बैंकाक में बैठक हुई। भारत और पाकिस्तान ने एक दूसरे की जेलों में बंद अपने नागरिकों की सूची का आदान-प्रदान किया है, और इनकी रिहाई का रास्ता निकालने की इच्छा जताई है। ट्रंप के दबाव में ही सही, अगर पाकिस्तान आतंकी संगठनों के खिलाफ सक्रिय होता है, तो इसका भारत-पाकिस्तान संबंधों पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा।