कुछ समय से भारतीय हॉकी टीम ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जो दम और हौसला दिखाया है, उसके मद्देनजर कहा जा सकता है कि अब इस खेल में हमारा देश अपनी पुरानी छवि को फिर हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। रविवार को भुवनेश्वर में हॉकी विश्व लीग के फाइनल में भारत ने जर्मनी को एक के मुकाबले दो गोल से हरा दिया और इस तरह कांस्य पदक का हकदार बना। हाल के दिनों में भारतीय खिलाड़ियों ने अपने खेल में आक्रामक रुख अख्तियार करने पर ज्यादा जोर दिया है। लेकिन इस मैच में एक खास बात यह रही कि जर्मनी की टीम को सात पेनल्टी कॉर्नर मिले, लेकिन वह एक को भी गोल में बदल सकने में नाकाम रही। जाहिर है, इस मैच में रक्षात्मक मोर्चे पर चौकसी के अलावा भारतीय गोलकीपर की भी बड़ी भूमिका रही। निश्चित रूप से इस प्रतियोगिता में पहला स्थान या स्वर्ण पदक हासिल नहीं कर पाना अफसोस की बात है। पर यह देखने की जरूरत है कि भारत के मुकाबले वे दिग्गज टीमें खेल रही थीं जिन्हें विश्व हॉकी में काफी मजबूत माना जाता है।

पिछली कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारतीय टीम ने लगातार जो क्षमता प्रदर्शित की है, उसे देखते हुए इससे हॉकी विश्व हॉकी लीग में भी काफी उम्मीदें थीं। अपने पहले ही मैच में आस्ट्रेलिया के खिलाफ शानदार प्रदर्शन कर इसने उसे बनाए भी रखा। लेकिन दूसरे मैच में जिस तरह भारतीय टीम को इंग्लैंड के हाथों दो के मुकाबले तीन गोल से हार का सामना करना पड़ा, उससे वह उम्मीद धुंधली पड़ी। फिर जब सेमीफाइनल में अर्जेंटीना से भारतीय टीम 1-0 से हार गई तो उससे निराशा बढ़ी। लेकिन आखिरकार जर्मनी को हरा कर भारत ने अपना कांस्य पदक बरकरार रखा। गौरतलब है कि पिछली बार रायपुर में हुई प्रतियोगिता में भारत ने कांस्य पदक हासिल किया था। कुछ समय पहले ढाका में हुए एशिया कप में भारत ने खिताबी जीत हासिल की थी। कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में लगातार बेहतरीन प्रदर्शन और जीत की वजह से ही यह कहा जाने लगा है कि इस टीम में एशिया के बाहर भी अपनी क्षमता दर्ज करने का माददा है।

अतीत में भारत आठ बार ओलंपिक चैंपियन रह चुका है। लेकिन लंबे समय तक हॉकी की दुनिया में भारत को कोई बड़ी उपलब्धि हाथ नहीं लगी थी। क्षेत्रीय प्रतियोगिताओं में भी लगातार हार की वजह से इस खेल के प्रति लोगों का उदासीन हो जाना स्वाभाविक था। मगर कुछ समय से यह साफ दिख रहा है कि भारतीय हॉकी टीम के खेल के स्तर और प्रदर्शन में काफी तेजी से सुधार आया है। बल्कि इस खेल में सीनियर और जूनियर पुरुष टीमों के अलावा महिला टीम ने भी शानदार कामयाबी हासिल की है। अब यह उम्मीद बंधी है कि भारत विश्व-हॉकी में अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करने का दमखम रखता है। यही कारण है कि हॉकी के अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों को लेकर देश में दिलचस्पी का माहौल दिख रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्साह से भरे हमारे खिलाड़ी विश्व-हॉकी में भारत का पुराना जलवा फिर कायम करेंगे।