अब यह कहना-सुनना कोई नई बात नहीं है कि दिल्ली देश का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है। पर्यावरण पर काम करने वाले देशी-विदेशी संगठन समय-समय पर न केवल दिल्ली, बल्कि भारत में तेजी से बढ़ रहे वायु प्रदूषण को लेकर चिंता जताते रहे हैं। ग्रीनपीस इंडिया ने हाल में बताया कि पूरे देश में वायु प्रदूषण की मार सबसे ज्यादा दिल्ली और फरीदाबाद, गाजियाबाद जैसे इसके आसपास के शहरों में पड़ रही है। हालात गंभीर हैं, इससे सरकारें भी अनजान नहीं हैं। प्रदूषण से निपटने के लिए देश की शीर्ष अदालत, राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) और मानवाधिकार आयोग तक समय-समय पर सरकारों से जवाब तलब करते रहे हैं। पर हालात तो बदतर होते जा रहे हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ही हाल में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सड़कों पर यातायात व्यवस्था संभालने वाले पुलिसकर्मियों की बिगड़ती दशा पर गंभीर चिंता जताई है। वाहनों के धुएं से ज्यादातर पुलिसकर्मी सांस की गंभीर बीमारियों के शिकार हो चुके हैं। आयोग ने संज्ञान लेते हुए केंद्रीय गृह सचिव, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किया है।
ग्रीनपीस की रिपोर्ट बताती है कि सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में दिल्ली के बाद फरीदाबाद, भिवानी, पटना, देहरादून, वाराणसी, गाजियाबाद, मुजफ्फरपुर और हापुड़ का नंबर है। चौंकाने वाली बात यह है कि देश के 280 शहरों की 55 करोड़ से ज्यादा की आबादी बहुत ही खराब हवा में सांस ले रही है। उत्तर प्रदेश में तो हालात विकट हैं, पर तिरपन जिलों में वायु प्रदूषण नापने तक का इंतजाम नहीं है। पंजाब, हरियाणा से लेकर बिहार तक वायु प्रदूषण ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। इसका एक बड़ा कारण पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली का जलाया जाना है, पर कई और भी कारण हैं। पिछले कुछ सालों में स्थिति इतनी ज्यादा बिगड़ गई है कि उत्तर भारत के बड़े हिस्से में कई-कई दिन तक धुएं की परत आसमान में बनी रहती है और सबसे ज्यादा सांस के मरीज अस्पताल पहुंचते हैं। इसके अलावा वाहनों और उद्योगों से होने वाला प्रदूषण रही-सही कसर पूरी कर देता है।
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को जो कदम उठाने चाहिए, वे नजर नहीं आते। मुद्दा गंभीर है, पर इससे निपटने के लिए सरकारें और एजंसियां गंभीर नहीं हैं। यही नाकारा रवैया समस्या को तेजी से बढ़ा रहा है। हालांकि इस बार संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में वायु प्रदूषण को भी एक गंभीर मुद््दा मानते हुए कहा गया है कि पराली जैसे कृषि अपशिष्ट जलाने पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाना चाहिए। इसके अलावा पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने पर भी जोर दिया गया है। लेकिन ये कवायदें ऐसी हैं जिनमें सरकारें अब तक लाचार ही नजर आई हैं और अदालतों और एनजीटी जैसे प्राधिकारों के आदेशों पर रत्ती भर भी अमल नहीं हो पाता। पराली जलाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद सरकार ने उच्चस्तरीय कार्यबल बनाया भी, लेकिन आशाजनक परिणाम दिख नहीं रहे। इसलिए सर्वोच्च अदालत ने केंद्र से कहा है इस कार्यबल की रिपोर्ट का प्रचार किया जाए ताकि लोगों को पता चल सके कि ‘कुछ किया जा रहा है।’ अदालत ने साफ कहा है कि वायु प्रदूषण रोकने के कार्यक्रम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक सीमित न रहें, सारी जानकारी जनता तक पहुंचाई जाए। देखने की बात है कि इस मामले में सरकारें कब सक्रिय होती हैं।