कमल कुमार

मैं इस देश की एक आम नागरिक हूं। साधारण जीवन जीती हूं। जनेवि में जो आतंकवाद और अलगाववाद के साथ राष्ट्रविरोधी नारेबाजी और कार्यक्रम हुआ और उनके साथ जामिया मिलिया, जादवपुर विश्वविद्यालय और कम्युनिस्टों ने उनका पक्ष लिया, उससे बहुत परेशान हूं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षिका बनी। विश्वविद्यालय में थी इसलिए दूसरे विश्वविद्यालयों से छात्रों के माध्यम से, वहां के सहकर्मियों से, वहां होेने वाले कार्यक्रमों, गोष्ठियों और कार्यक्रमों के निमंत्रणों के द्वारा निरंतर एक संपर्क और संवाद बना रहता।

ग्रेजुएशन के बाद जो छात्र जनेवि में चले जाते, कई बार मिलते तो बताते अपनी समस्याओं के बारें में। वहां दूसरी विचारधारा के छात्रों को अस्पृश्य अछूत समझा जाता है। उनका दमन और उपहास किया जाता है। कुछ छात्र समर्पण भी कर देते हैं। कुछ भयभीत होकर उनके साथ चल पड़ते हैं। कुछ अपने भविष्य की चिंता में व्याकुल उनका कहा मानने पर विवश हो जाते हैं। छात्रों की कम्युनिस्ट विचारधारा के विषयों पर ही शोध करना होता है। एक छात्र इसके विरोध में कोर्ट में भी गया था। निर्णय उसके पक्ष में हुआ था। बीजेपी और राष्ट्रीय सेवक संघ को गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं। वंदेमातरम, सरस्वती वंदना, गोवलकर सबको फासीवाद की सजा देते हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के माध्यम से, देश के युवाओं में विवेक, साहस, स्वतंत्र सोच और मानवता के हित में विकास रोपने का उद्देश्य था। लेकिन इसकी स्थापना में भारतीय राजनीति का प्रभाव था। कांग्रेस के समय में सीपीआई को कम्युनिस्ट पार्टी इंदिरा और सीपीएम को कम्युनिस्ट पार्टी मोरारजी माना जाता था। इंदिरा गांधी ने कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीति से उपकृत, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को इन संगठनों को उपहार में दिया था। जहां सभी महत्त्वपूर्ण नियुक्तियां कामरेडों की हुर्इं।

देश भर में अन्य शैक्षिक,सांस्कृतिक, साहित्यिक और कला आकदमियों में भी कम्युनिस्टों की नियुक्तियां हुर्इं। वैभव, विलासिता और राजनीतिक सत्ता के आदी इन संगठनों ने पीढ़ी दर पीढ़ी अपने लोगों को सम्मानित और पुरस्कृत किया। सत्ता के आदी इन संगठनों ने कम्युनिज्म के पराभव, रूस में और चीन में बदलाव के बाद एक दूसरा खतरनाक खेल खेला। साम्राज्यवादी देशों के एनजीओ तंत्र में शामिल हो गए, ताकि उनकी सुख सुविधाएं बनी रहें। यहां से माओवाद पसरा और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने इसका नेतृत्व किया। माओवादियों ने स्वामी लक्ष्मानंद की हत्या कर अपना झंडा फहराया।

इसका प्रसार नेपाल में भी हुआ, वहां के कई माओवादी नेता भी जनेवि के पढ़े हैं। जो आज कश्मीर की आजादी, भारत की बर्बादी, अफजल को हीरो बनाने और घर-घर में अफजल पैदा होने के नारे बुलंद कर रहे हैं, उन्हें पोषण कहां से मिल रहा है? हम करदाता इनका पोषण कर रहे हैं। क्यों? इनके पक्ष में जो सौ बुद्धिजीवियों ने बयान दिए वे कौन हैं? नोम चोमस्की की प्रतिबद्धता क्या है? मार्क्सवादी भारत को राष्ट्र नहीं मानते। न ही अपने को भारतीय मानते हैं। आज भी जनेवि के छात्र विश्वविद्यालय में बाहर जगह जगह भारत विरोधी पोस्टर चिपका रहे हैं। नक्सलियों के भारत विरोधी युद्ध के पक्ष में कम्युनिस्ट बुद्धिजीवी उनका समर्थन कर रहे हैं। दंतेवाड़ा में मारे गए सीआरपीएफ के जवानों की मौत का जश्न मनाते हैं। सीमाओं पर देश की सुरक्षा के लिए जवान अपने जीवन की आहुति दे रहे हैं। पाकिस्तान के आतंकवाद से लड़ते हुए जवान और आम आदमी मर रहे हैं। कांग्रेस ने आल इंडिया रिवोल्यूशनरी छात्र फेडरेशन पर प्रतिबंध लगाया था। पर आज उसका नाम बदलकर डेमोक्रैटिक स्टूडेंट्स यूनियन खुलेआम वही काम कर रही है। जनेवि और जामिया का ‘आर्गेनिक’ रिश्ता पुराना है।

विसंगति यह कि कई राजनीतिक दल इस पर भी राजनीति कर रहे हैं। आखिर देश की ‘सुरक्षा’ पर राजनीति का अर्थ क्या है? यूरोपीय अवधारणा ने भारत को उसकी भौगोलिक स्थिति में देखा। भारत देश के रूप में नहीं हो सकता, माना। इसके लिए अंगे्रजों ने मुसलिम और हिंदुओं को आपस में बांटा। भारत एक अखंड राष्ट्र है, जिसकी संस्कृति पुरातनतम है। वेदो में, उपनिषदों में, दर्शन में, साहित्य में धार्मिक बहुलता, भाषाओं, जातियों, परंपराओं की विविधता उनकी पहचान है। हिंदुत्व यहां धर्म नहीं एक जीवन शैली और जीवन दर्शन है, जो सत्य, अंहिसा, सात्विकता, धैर्य, परित्याग पर आधारित है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग कर रहे ये छात्र किस अर्थ में स्वतंत्रता चाहते हैं? हमारा संविधान लोकतंत्र का शिखर गं्रथ है। यहां हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की, विचार की, धर्म की स्वतंत्रता है। सब तरह के लोग सब तरह के विचारों को व्यक्त करते हैं। इन छात्रों को किस अर्थ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहिए? क्या देश की सुरक्षा को नष्ट करने की? देश के दुश्मनों के साथ मिलकर आतंकवाद, अलगाववाद, नक्सलवाद के विध्वसंक समर्थन में उद्घोष करने की स्वतंत्रता क्यों चाहिए?
ये युवा जो हमारे देश का भविष्य हैं। देश का कैसा भविष्य चाहते हैं? आतंकवादी, विध्वसंक विदेशी ताकतों के साथ मिलकर देश की सुरक्षा का विध्वंस चाहकर क्या सिद्ध करना चाहते है? ०
(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्वशिक्षक हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)