ओमप्रकाश ठाकुर
पहाड़ी लेकिन छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश में पांच साल तक सत्ता में रहले वाली भाजपा की सरकार को चलाने की शुरुआत करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के राजनीतिक जीवन का अवसान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के एलान से हो गया लगता है। नड्डा ने राजधानी में धूमल से जुड़े तमाम सवालों पर साफ कर दिया, चाहे वह धूमल को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट देने का मामला हो या 2017 में धूमल की हार की जांच कराने का मामला हो। इसके अलावा परिवारवाद और 75 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को टिकट न देने के मामले में भी नड्डा ने साफ कर दिया कि कहीं कुछ नहीं होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि पार्टी उन्हें चलाने दें। मायने व संदेश दोनों साफ है कि कोई उन्हें पार्टी कैसे चलानी है और क्या फैसला लेना है, यह न सिखाएं।
नड्डा ने साफ किया कि आगामी विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की ही कमान में लड़े जाएंगे। भाजपा प्रदेश में हुए उपचुनावों में चारों सीटों को बुरी तरह से हार गई थी। जुब्बल कोटखाई में भाजपा उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई थी। यह सब तब हुआ था जब प्रदेश में भी और केंद्र में भी भाजपा की सरकार है और प्रदेश में कांग्रेस के पास वीरभद्र सिंह जैसे कद्दावर नेता भी नहीं थे।
धूमल अपने राजनीतिक जीवन से सुखद विदाई लेने की चाह पाले हुए हैं। लेकिन जिस तरह का रुख नड्डा ने अपनाया है, उससे अब लगता नहीं है कि ऐसा कुछ हो पाएगा। याद रहे कि नड्डा व धूमल में राजनीतिक तौर पर छत्तीस का आंकड़ा रहा है और धूमल की वजह से ही नड्डा को प्रदेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर दिल्ली का रुख करना पड़ा था। याद रहे कि प्रदेश में धूमल ने ही पहली बार 1998 से 2003 तक सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ गठबंधन कर तमाम मुश्किलों के बावजूद पांच साल तक सरकार चलाई थी।
इससे पहले भाजपा के दिग्गजों में शुमार शांता कुमार दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन ढाई साल बाद ही उनकी सरकार गिर गई थी। धूमल ने पहली बार तो गठबंधन की सरकार चलाई लेकिन दूसरी बार दिसंबर 2007 में वे भाजपा को अपने दम पर पूर्ण बहुमत के साथ सता में ले आए और उन्होंने इस दौरान कांग्रेस के कई गढ़ ढहा दिए थे। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के चुनावी हलके रोहड़ू के उपचुनावों में वे खुशी राम बालनाटहा को भाजपा के टिकट पर विधानसभा में पहुंचाने में कामयाब हो गए थे। यह बहुत बड़ा उलटफेर था।
यह दीगर है कि इस जीत के बाद उन्होंने बालनाटहा को सरकार में तरजीह नहीं दी और 2012 के चुनाव में पूर्व सांसद महेश्वर सिंह और कई नेता धूमल से बगावत कर गए और अलग पार्टी बनाकर धूमल की भाजपा को दोबारा सता में लाने की मुहिम में अड़ंगा लगा गए। लेकिन बतौर नेता प्रतिपक्ष धूमल ने कांग्रेस की सरकार और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को अपना दबदबा कायम ही नहीं कराने दिया। नतीजा यह हुआ कि दिसंबर 2017 में उन्होंने भाजपा को दोबारा सत्ता में लाने का रास्ता खोल दिया था।
केंद्र में अमित शाह व मोदी की जोड़ी ने 2017 के चुनाव में उनका दबदबा खत्म करने की कोशिश की थी। लेकिन जब मतदान से दस दिन पहले उन्हें पता चला कि अगर धूमल को आगे नहीं किया गया तो हो सकता है प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने से रह जाए। ऐसे में उन्हें चुनाव से ऐन पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया। लेकिन वे अपना चुनाव हार गए व मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।
अब तो नड्डा साफ संदेश दे ही गए हैं कि प्रदेश की राजनीति में धूमल युग खत्म हो गया है। नड्डा प्रदेश में भाजपा की सरकार दोबारा बन जाए इस एजंडे के साथ आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन बड़ा मसला यही है जो गलती धूमल ने बागियों को न मनाकर 2012 में की थी, वही गलती नड्डा धूमल खेमे को नाराज कर दोहराने का काम करते नजर आ रहे हैं। ऐसे में भाजपा दोबारा सत्ता पर काबिज हो पाए, यह आसान नहीं लग रहा है।
उधर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने आम आदमी पार्टी के तमाम बड़े नेताओं को ही भाजपा में शामिल कराने का अभियान छेड़ रखा है। वे दिल्ली से ही अपना अलग अभियान चलाए हुए है। ऐसे में पार्टी में जयराम व अनुराग दो ध्रुव खड़े होते नजर आ रहे है। प्रदेश में धूमल को तबाह कर दोबारा सत्ता में आना किसी चुनौती से कम नहीं है। बेशक नड्डा ने अपना बदला ले लिया हो लेकिन राजनीति में कब कहां बिसात पलट जाए कुछ पता नहीं चलता है।
महज अब कुछ ही महीने बाकी बचे हैं।