किसी भी सभ्य समाज में उन्माद, हिंसा और विद्वेष की कोई जगह नहीं होती। मगर हमारे यहां पिछले कुछ समय से जिस तरह अलग-अलग शहरों में उन्मादी भीड़ हिंसक घटनाओं को अंजाम देती देखी गई है, उसका कोई स्थायी समाधान निकालने के बजाय राजनीतिक रंग देने की कोशिशें ही अधिक हो रही हैं। रामनवमी के दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसक घटनाएं हुर्इं। सबकी प्रकृति एक थी। शोभायात्रा पर पथराव और फिर हिंसा। उसके बाद दिल्ली में हनुमान जयंती के दिन शोभायात्रा पर वैसे ही पथराव और फिर हिंसा हुई।

राजस्थान के करौली में धार्मिक टकराव हुआ और हिंसा हुई। हालांकि ऐसे तनाव और उपद्रवी तत्त्वों के सक्रिय हो उठने की आशंका के मद्देनजर सरकार ने ईद के दिन मस्जिदों के बाहर खासी चौकसी कर रखी थी। उसके बावजूद जोधपुर में वैसी ही घटना हो गई। अब फिर राज्य सरकार विपक्षी भाजपा पर और भाजपा राज्य सरकार पर दोष मढ़ने का प्रयास कर रही हैं।

विचित्र है कि जिन प्रवृत्तियों के चलते समाज में विद्वेष फैल रहा हो, धार्मिक उन्माद बढ़ रहा हो, हर समय तनाव और किसी बड़ी हिंसक घटना की आशंका बनी रहने लगी हो, उसके समाधान के लिए सभी दलों को मिल कर प्रयास करने के बजाय अपना नफा-नुकसान देखते हुए एक-दूसरे पर दोषारोपण किया जा रहा है।

राजस्थान में डेढ़ साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। मगर उसके लिए मुख्य विपक्षी दल अभी से तैयारियों में जुट गया है। सत्ता पक्ष का आरोप है कि वह धार्मिक ध्रुवीकरण के जरिए अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। उसी का नतीजा है कि जहां-जहां वह सत्ता से बाहर है, वहां इस तरह के तनाव पैदा कर सामाजिक विद्वेष फैलाने का प्रयास कर रहा है।

मगर विपक्ष का कहना है कि सरकार की नाकामी की वजह से ऐसी घटनाएं हो रही हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अगर कानून-व्यवस्था सख्त हो, तो किसी भी तरह का उपद्रव फैलाना आसान नहीं होता। मगर पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं को देखते हुए यही लगता है कि कुछ उपद्रवी तत्त्व बाकायदा रणनीति बना कर ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं। कुछ मामलों में उनकी पहचान भी हो चुकी है। कुछ दिनों पहले ही अयोध्या की कुछ मस्जिदों में रात को भेस बदल कर जिस तरह बेअदबी करने की कोशिश की गई, उससे स्पष्ट हो गया कि इस तरह धार्मिक विद्वेष फैलाने वाले कौन हैं और वे क्या चाहते हैं।

मगर जिस तरह कुछ राज्य सरकारें और राजनीतिक शीर्ष नेतृत्व ऐसे उपद्रवी तत्त्वों को प्रोत्साहित करते या फिर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बजाय चुप्पी साधे देखे गए, उससे ऐसे लोगों का मनोबल बढ़ता ही है। खरगोन की घटना के बाद मध्यप्रदेश के गृहमंत्री के बयान और आचरण पर स्वाभाविक ही चौतरफा सवाल उठे। भारतीय समाज विविधताओं से भरा है।

यहां विभिन्न समुदाय अपनी आस्था और रुचि के अनुसार पूजा पद्धति, खानपान, पहनावा अपनाने को स्वतंत्र हैं। मगर इन दिनों इन्हीं को लेकर झगड़े अधिक देखे जा रहे हैं। इस तरह सामाजिक समरसता भला कैसे सुरक्षित रहेगी। सरकारों का ‘धर्म’ है कि हर समुदाय की पहचान और उसके अधिकारों को सुरक्षित रखे। यह तभी हो सकता है, जब वे ऐसे उपद्रवी तत्त्वों को किसी भी तरह का ढुलमुल रवैया न अपनाएं। अगर इसी तरह समाज में उपद्रव, हिंसा और नफरत फैलाने वाली घटनाएं होती रहीं, तो यह किसी भी रूप में देश के लिए हितकर नहीं होगा।