आधार कार्ड को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने संबंधी निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक 2021 संसद से पारित हो गया है। इसके कानून की शक्ल लेने के बाद भारत की चुनावी प्रक्रिया के लिए तय लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (1950 और 1951) में कुछ नए प्रावधान जुड़ जाएंगे। संसद में यह विधेयक विपक्ष के हंगामे और बहिर्गमन के बीच पारित हुआ। विपक्ष को कुछ प्रावधानों पर एतराज है। सबसे बड़ा ऐतराज है, आधार कार्ड को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने पर। तर्क है कि इससे मतदाता की निजता पर हमला हो सकता है।

आधार और मतदाता पहचान पत्र

आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने की कवायद का प्रमुख प्रावधान किया गया है। मौजूदा कानून के हिसाब से आवेदक को मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए निर्वाचन अधिकारी के पास जाना होता है। अगर निर्वाचन अधिकारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हो तो मतदाता पहचान पत्र बन जाता है। नए प्रावधान के तहत निर्वाचन अधिकारी इस प्रक्रिया में आधार कार्ड की मांग कर सकते हैं। हालांकि, इसे ऐच्छिक प्रावधान बनाया गया है। यानी आवेदक चाहे तो आधार कार्ड देने से इनकार भी कर सकता है। इस संशोधन में मतदाता पहचान पत्र बनाने या मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं किया गया है।

अन्य प्रावधान
निर्वाचन सूची में नाम शामिल करने की तारीख अब तक एक जनवरी होती थी। नए प्रावधान में साल में चार बार- एक जनवरी, एक अप्रैल, एक जुलाई, एक अक्तूबर को सूची अपडेट की जाएगी। इसके अलावा चुनावी प्रक्रिया जैसे ईवीएम मशीन, मतदान सामग्री रखने और सुरक्षा बलों के रहने के लिए इस्तेमाल होने वाली जगहें सुनिश्चित करने के लिए तय प्रक्रिया का दायरा बड़ा किया गया है। इसके अलावा 1950 के कानून के तहत सशस्त्र बलों के जवान या विदेशों में तैनात भारतीय कर्मचारियों की पत्नियों को देश के आम नागरिक की तरह माना जाता था। सशस्त्र बल के जवान या कर्मचारी को मतदान की इजाजत ना होने के बावजूद उनकी पत्नियों को मतदान केंद्र पर या फिर पोस्टल बैलट की मदद से वोट करने की इजाजत है। नए प्रावधान में पत्नी शब्द की जगह पति या पत्नी शब्द लिखा गया है।
क्या हैं आपत्तियां
तर्क है कि आधार कार्ड नागरिकता का नहीं, पहचान का प्रमाण है। ऐसे में किसी का नाम निर्वाचन सूची में जोड़ने या हटाने के लिए इसे आधार नहीं बनाया जा सकता। आधार कार्ड देश के निवासियों को जारी किया जाता है। जरूरी नहीं है कि हर वयस्क निवासी भारतीय गणराज्य का नागरिक या मतदाता हो। हालांकि, नए प्रावधानों के मुताबिक, आधार कार्ड से वोटिंग कार्ड जोड़ना ऐच्छिक है, कोई बाध्यता नहीं। दूसरे, बीते दिनों में कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जहां आधार का इस्तेमाल सत्यापन के लिए किया गया हो। जैसे- राशन वितरण या मनरेगा योजना। कई बार यह बात सामने आई है कि किस तरह गलत आधार कार्ड व्यवस्था की वजह से राशन मिलने और मनरेगा का पैसा मिलने में लोगों को दिक्कतें हुईं।

तीसरे, साल 2015 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में निर्वाचन सूची के के लिए इसका मिलान आधार कार्ड से किया गया था। जिसकी वजह से बहुत बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम सूची से हट गए थे। चौथे, संस्थाएं शक जताती हैं कि मतदाता डेटाबेस को आधार डेटाबेस से जोड़ना मतदाताओं की निजता से खिलवाड़ है। पांचवां, जब आधार प्रणाली शुरू की गई थी, तब अनिवार्यता की कोई शर्त नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे इसे हर जगह अनिवार्य कर दिया गया। इसी तरीके से निर्वाचन सूची में नाम शामिल करने के लिए आधार कार्ड का होना चाहे कानून ना बने, लेकिन इसे जरूरी मान लिया जाएगा। छठा, निर्वाचन सूची में उपलब्ध जानकारी की हर साल दोबारा पुष्टि की जाती है। आधार प्रणाली में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
आपत्तियां क्यों
विपक्ष और आपत्ति दर्ज कराने वाले कई संस्थानों का मानना है कि आधार प्रणाली खुद खामियों से भरी है। विपक्ष ने इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजे जाने की वकालत की थी। लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि इस जल्दबाजी से सरकार के इरादे ठीक नहीं लगते। साथ ही आरोप लगाया कि आगामी चुनावों में इस बिल का गलत इस्तेमाल किया जाएगा।

कानून की संवैधानिकता

इस संशोधन की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट की निजता के अधिकार की व्याख्या से जुड़ा सवाल उठ रहा है। आपत्ति जताने वालों का तर्क है कि निर्वाचन सूचियों में कितना दोहराव है, इसके आंकड़े सरकार के पास नहीं हैं। आधार कार्ड से लिंक किए जाने से खामियां खत्म हो जाने का कोई सबूत भी सरकार के पास नहीं है। हालांकि, केंद्र सरकार आधार प्रणाली को सुरक्षित बताती रही है। आम लोगों के बीच भी और सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक संस्थाओं में भी। सिविल सोसाइटी के कई संगठन आधार प्रणाली का यूपीए के दौर से ही विरोध करते आए हैं। एमनेस्टी, एडीआर, पीपल्स यूनियन आफ सिविल लिबर्टिज जैसे पांच सौ से ज्यादा संगठनों ने आधार-मतदाता पहचान पत्र जोड़ने पर कई आपत्तियां उठाई हैं।

क्या कहते हैं जानकार

इस कानून से किसी का पता जानने और फर्जी मतदान रोकने में मदद मिलेगी। सरकार ने इस कानून से आधार और निर्वाचन सूची को जोड़कर बहु-नामांकन की बुराई को नियंत्रित किया है। यही ऐसा बिंदु है, जिस पर विपक्ष समेत तमाम लोग आपत्ति जता रहे हैं।

  • किरेन रिजीजू, केंद्रीय विधि मंत्री

आधार का मतलब केवल निवास का प्रमाण है, ये नागरिकता का प्रमाण नहीं है। अगर आप मतदाता के लिए आधार मांगने की स्थिति में हैं, तो आपको केवल एक दस्तावेज मिल रहा है, जो नागरिकता नहीं, बल्कि निवास दर्शाता है। ऐसे में सरकार की मंशा पर शक
होता है।

  • शशि थरूर, कांग्रेस सांसद