ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन की भारत यात्रा सिर्फ इस लिहाज से ही महत्त्वपूर्ण नहीं मानी जानी चाहिए कि इसमें दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र सहित दूसरे कारोबारी समझौते हुए। खालिस्तान समर्थकों पर लगाम कसने और आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या से मिल कर निपटने का जो भरोसा उन्होंने दिया, वह भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। इससे पता चलता है कि भारत की चिंताओं को लेकर उनका कैसा और कितना सरोकार है। जानसन ने कहा तो है कि भारत विरोधियों के लिए उनके देश में कोई जगह नहीं होगी।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री का ऐसा आश्वासन भारत के लिए कम बात नहीं है। पर अब उन्हें अपने इस वादे पर खरा उतर कर दिखाना भी होगा। दरअसल, खालिस्तान समर्थक संगठन जिस तरह से ब्रिटेन से अपनी गतिविधियां चलाते रहे हैं, वह भारत के लिए परेशानी का एक बड़ा कारण तो बना ही हुआ है। गौरतलब है कि सिख फार जस्टिस नाम का संगठन ब्रिटेन में भारत के खिलाफ प्रदर्शन करता रहता है।

इस संगठन ने पिछले कुछ महीनों में पंजाब, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए गैरकानूनी और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दिया था। अपने झंडे फहराने से लेकर आतंकी हमले तक को अंजाम दिया। हालांकि केंद्र सरकार ने सिख फार जस्टिस के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए उसके सोशल मीडिया को बंद कर दिया है। लेकिन यह संगठन भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा तो बन ही गया है। ऐसे में अगर ब्रिटेन अपने यहां इस संगठन के खिलाफ सख्त कदम उठाता है तो इसका कड़ा संदेश जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जानसन के साथ बातचीत में आर्थिक अपराधियों को भारत के हवाले करने का मुद्दा भी उठाया। भारत से अरबों रुपए के घोटाले करके भागे नीरव मोदी और विजय माल्या सहित कई दूसरे लोग ब्रिटेन में रह रहे हैं। हालांकि ब्रिटिश सरकार इनके प्रत्यपर्ण की इजाजत दे चुकी है, लेकिन कानूनी दांवपेचों की वजह से ये अब तक पकड़ से बाहर बने हुए हैं। भारत पिछले काफी समय से ब्रिटेन के समक्ष इस मुद्दे को उठाता रहा है, पर नतीजा कुछ नहीं निकल रहा। हालांकि जानसन ने इस मुद्दे पर सकारात्मक रुख तो दिखाया है, पर देखने की बात यह है कि अब वे इसमें भारत की मदद क्या और कैसे कर पाते हैं। ऐसा नहीं कि ब्रिटेन आर्थिक भगोड़ों के अपराधों की गंभीरता को समझ नहीं रहा होगा। लेकिन इस तरह के मामलों में उससे जो उम्मीदें थीं, वे अब तक पूरी नहीं हुर्इं।

जब से दुनिया में आतंकवाद बढ़ा है, तब से हर पीड़ित देश एक दूसरे के साथ खड़ा होने का दावा करता रहा है। आतंकवाद से लड़ने के लिए साझा रणनीतियां बनाने, सूचनाओं के आदान-प्रदान जैसे तमाम समझौते भी होते ही रहे हैं। लेकिन जब ऐसे प्रयासों के नतीजे धरातल पर आते नहीं दिखते तो निराशा होती है। खालिस्तान समर्थकों पर लगाम कसने की बात कहते हुए जानसन ने कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ कार्यबल बनाने और कार्रवाई करने की बात कही है।

पर सवाल इस बात का भी है कि ऐसे मामलों में ब्रिटेन ने आज तक भारत की मदद क्या की? क्या ब्रिटेन को यह नहीं मालूम कि भारत में खालिस्तान समर्थकों और इनकी हिंसा ने भारत को कितना नुकसान पहुंचाया और कितने वर्षों से इसके नेता ब्रिटेन में जमे हुए हैं? आतंकवाद, खालिस्तानया अन्य भारत विरोधियों और आर्थिक भगोड़ों को सौंपने के मुद्दे पर जानसन ने जो कहा है, उसे उन्हें करके दिखाना होगा। ब्रिटेन को समझना चाहिए कि अगर भारत खुशहाल रहेगा, तभी उसका ‘रोडमैप 2030’का सपना पूरा हो सकेगा।