सरकार का जोर सेना को युवा और ऊर्जावान बनाने पर है। साथ ही, सेना में महिलाओं की भूमिका भी बढ़ाई जा रही है। महिलाएं अब रफाल विमान तक उड़ा रही हैं। लेकिन अल्पकालिक सेवा कमीशन के तहत भर्ती हुई महिला अधिकारियों को बार-बार सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ लगानी पड़ती है। यह बात गले नहीं उतरती कि जब कोई सैन्यकर्मी, चाहे वह महिला हो पुरुष- शारीरिक-मानसिक रूप से पूरी तरह सेवाएं देने के योग्य है और सेवा के दौरान उसके कामकाज और आचरण में किसी तरह की कमी नहीं पाई गई, तो उसे लंबी अवधि का सेवा विस्तार देने से क्यों परहेज किया जाना चाहिए।

अल्पकालिक सेवा कमीशन के तहत भर्ती हुई एक महिला नौसेना अधिकारी को स्थायी कमीशन न दिए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर नाराजगी जाहिर की है। उस अधिकारी को स्थायी कमीशन देने का आदेश अदालत ने पहले ही दिया था, मगर उसका पालन नहीं किया गया। इसलिए भी अदालत की तल्खी बढ़ गई। महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन न दिए जाने पर लंबे समय से असंतोष है। शीर्ष अदालत ने 2020 में कहा था कि इस तरह महिला अधिकारियों को सेवा से वंचित करने से सेना का मनोबल गिरेगा। तब से नौसेना, वायुसेना और थलसेना को कई मामलों में स्थायी कमीशन देने के आदेश दिए जा चुके हैं।

महिला अधिकारियों के मामले में संकुचित दृष्टिकोण

सेना नियमों के मुताबिक, अल्पकालिक कमीशन में चयनित अधिकारियों को उनके कामकाज के प्रदर्शन के आधार पर पदोन्नति और स्थायी कमीशन देने का निर्णय किया जाता है। मगर महिला अधिकारियों के मामले में इस पर अक्सर संकुचित दृष्टिकोण ही देखा जाता है। अभी सर्वोच्च न्यायालय में उनहत्तर ऐसे ही अधिकारियों का मामला लंबित है, जिस पर अगस्त में सुनवाई होनी है। अदालत ने कहा है कि अंतिम फैसला आने तक इन अधिकारियों को सेवामुक्त न किया जाए।

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इस तरह स्थायी कमीशन न मिल पाने के कारण महिला अधिकारियों की तरफ से लगातार मिल रही शिकायतों के मद्देनजर ही नौसेना अधिकारी के मामले पर फैसला देते समय सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि अब बहुत हो गया, सेना के अधिकारी अपना संकुचित नजरिया त्यागें और उदारता का परिचय दें। इस फटकार और नसीहत को सेना और सरकार कितनी गंभीरता से लेते हैं, देखने की बात है।

कई बार महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले किए हैं बेहतर प्रदर्शन

यह पहला मौका नहीं है, जब महिला सेनाधिकारियों को अदालत की मार्फत अपना हक हासिल करना पड़ा है। इसके पहले लड़ाकू विमान उड़ाने से महिलाओं को वंचित रखने के नियम को भी अदालत के आदेश पर ही बदला गया था। यह थोड़ी असहज करने वाली स्थिति है कि अनुशासित और मर्यादित मानी जानी वाली भारतीय सेना में महिलाओं की क्षमताओं और योग्यता को कम करके आंका जाता है। सेना में अनेक ऐसे काम हैं, जिनमें महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है।

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जिस महिला नौसेना अधिकारी को स्थायी कमीशन देने से रोका गया, वह तो न्यायिक सेवा में है। चिकित्सा, कंप्यूटरीकृत सैन्य प्रणाली आदि में महिला अधिकारियों की कुशलता पर शक नहीं किया जा सकता। फिर, अनुभव बड़ी चीज होती है। जिस अधिकारी ने छह-आठ वर्षों तक सेना में काम किया है, निस्संदेह उसकी क्षमता नए भर्ती अधिकारियों की तुलना में बेहतर हो सकती है। इसलिए अगर कोई महिला अधिकारी सारे मानकों पर सेवा योग्य है, तो उसे स्थायी कमीशन देने में क्यों गुरेज होना चाहिए।