अब यह हर वर्ष का सिलसिला-सा बन गया है कि सर्दी शुरू होते ही दिल्ली की हवा खराब होने लगती है। लोगों का दम घुटने लगता है और फिर इससे निपटने में सरकार के हाथ-पांव फूल जाते हैं। फिर शुरू होता है एक-दूसरे पर दोषारोपण और राजनीतिक बयानबाजियों का दौर।
हालांकि हर वर्ष सर्वोच्च न्यायालय वायु प्रदूषण से निपटने का स्थायी बंदोबस्त करने का निर्देश देता है, मगर कुछ कागजी खानापूर्तियों और अव्यावहारिक उपायों के अलावा इसका व्यावहारिक समाधान अब तक नहीं तलाशा जा सका है। यही वजह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के साथ-साथ पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों को एक हफ्ते के भीतर हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा है कि उन्होंने प्रदूषण रोकने के लिए क्या उपाय किए हैं।
जब भी दिल्ली और आसपास के राज्यों में वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है तो एक-दूसरे पर दोष मढ़ने की कोशिशें तेज हो जाती हैं। दिल्ली सरकार का कहना होता है कि आसपास के राज्यों में पराली जलाने पर रोक नहीं लगाई जा पा रही, इसलिए दिल्ली की हवा में जहर घुल रहा है। मगर पड़ोसी राज्य इस आरोप को सिरे से खारिज करते देखे जाते हैं।
वायु प्रदूषण निस्संदेह एक गंभीर समस्या बन चुका है। इसके चलते करोड़ों लोगों की सेहत खराब हो रही है। इसकी वजहें भी छिपी नहीं हैं। मगर इस पर काबू पाने के लिए कुछ तदर्थ उपाय ही किए जाते दिखते हैं। दिल्ली सरकार ने निजी वाहनों के लिए सम-विषम नियम लागू किया, एक-दो जगह स्माग टावर खड़े किए, कुछ समय के लिए सड़कों के किनारे फव्वारे वाली मशीनें लगा दी जाती हैं।
पिछले दो-तीन सालों से पराली की समस्या से पार पाने के लिए जैविक छिड़काव का रास्ता निकाला गया। पराली जलाने वालों पर उपग्रह से निगरानी रखी जाने लगी और उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई होने लगी। इसके अलावा बाहरी राज्यों से आने वाले व्यावसायिक वाहनों के शहर में प्रवेश पर रोक लगा दी जाती है। मगर इसका भी कोई उल्लेखनीय नतीजा सामने नहीं आ सका है।
हर साल वायु गुणवत्ता कुछ बिगड़ी हुई ही दर्ज होती है। जब स्थिति ज्यादा खराब हो जाती है, तो कुछ समय के लिए शिक्षण संस्थान बंद कर दिए जाते हैं, लोगों को घर से बाहर न निकलने की चेतावनी जारी की जाती है और फिर बारिश होने का इंतजार किया जाने लगता है कि गर्द बैठे और हवा साफ हो।
दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं है। कई साल पहले डीजल से चलने वाली गाड़ियों पर रोक लगाने का सुझाव दिया गया था। हालांकि अब बैट्री से चलने वाले वाहनों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, मगर हकीकत यह भी है कि न सिर्फ सड़कों पर वाहनों की संख्या हर साल बढ़ रही है, बल्कि उनमें बड़ी संख्या डीजल से चलने वाले वाहनों की होती है।
फिर, अध्ययनों से यह भी जाहिर है कि वायु प्रदूषण बढ़ाने में चार पहिया वाहनों की अपेक्षा दुपहिया वाहनों का योगदान अधिक है। अब पर्यावरण मंत्रालय चीजों की आपूर्ति करने वालों के लिए केवल बैट्री से चलने वाले वाहनों का उपयोग अनिवार्य करने जा रहा है। मगर अब भी यह अपेक्षा जस की तस बनी हुई है कि कैसे निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके। इस मामले में तदर्थ उपायों के बजाय व्यावहारिक उपायों की दरकार है।