पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के विधायक दल की नेता चुने जाने के बाद महबूबा मुफ्ती के जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद पर पहुंचने का रास्ता साफ हो गया। राज्य के तेरहवें मुख्यमंत्री के तौर पर अपने पिता की जगह लेने वाली महबूबा जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री होंगी। उनका आरोहण राज्य की खासकर घाटी की राजनीति में एक पीढ़ीगत बदलाव का भी संकेत है। नेशनल कॉन्फ्रेंस की कमान कई बरस पहले से उमर अब्दुल्ला के पास है। अब पक्ष और विपक्ष, दोनों तरफ युवा नेतृत्व है। मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के चलते पीडीपी विधायक दल के नए नेता का चुनाव अपरिहार्य हो गया था। महबूबा का चुना जाना स्वाभाविक है। इसका कारण निरा भावनात्मक नहीं है। खुद महबूबा का अपना जनाधार रहा है। पीडीपी के गठन के समय से, अपने पिता के बाद, वही सबसे लोकप्रिय और शीर्षस्थ नेता रही हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि पीडीपी को खड़ा करने में उनका योगदान सबसे अधिक है। जब मुफ्ती 1998 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा के लिए चुने गए, तो उसमें महबूबा की भूमिका अहम थी। उन्होंने अपनी सियासी पारी 1996 में शुरू की, जब वे अपने पिता के साथ कांग्रेस में शामिल हुर्इं। वर्ष 1999 में उन्होंने पीडीपी की नींव डाली। वर्ष 2004 में अनंतनाग निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुनी गई थीं। इस समय भी वे इसी क्षेत्र से सांसद हैं। जाहिर है, मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उन्हें छह महीनों के भीतर विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी होगी या विधान परिषद के लिए मनोनीत होना होगा। उनके लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं हो सकता। उनके सामने चुनौतियां दूसरी हैं।

तेज-तर्रार छवि वाली महबूबा एक लोकप्रिय नेता तो रही हैं, पर उनका कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं है। फिर, जम्मू-कश्मीर में सरकार की अगुआई करना कहीं ज्यादा पेचीदा है, क्योंकि यहां सरकार चलाने का मतलब गठबंधन को साधना भी है। राज्य की सत्तासी सदस्यीय विधानसभा में संख्या के लिहाज से पीडीपी पहले नंबर पर है और भाजपा दूसरे नंबर पर। दोनों के बीच हुए समझौते के मुताबिक मुख्यमंत्री पद पीडीपी के पास है और उपमुख्यमंत्री पद भाजपा के पास। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पिछले साल एक मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। यानी महबूबा के पास करीब पांच साल का कार्यकाल होगा। क्या आने वाले इन वर्षों में पीडीपी और भाजपा का गठबंधन सुचारु रूप से चलता रहेगा, या इस रिश्ते में दरार आ सकती है? स्वशासन की मांग उठा चुकीं महबूबा के पहले के तवरों को देखते हुए भाजपा के भीतर कुछ लोगों को पटरी न बैठने का अंदेशा हो सकता है। लेकिन दूसरी तरफ महबूबा भी जानती हैं कि राज्य सरकार चलाने के लिए केंद्र का सहयोग जरूरी है। केंद्र में भाजपा की सरकार और राज्य की सत्ता में भी वह साझेदार है। दोनों का गठजोड़ महीने भर चले विचार-विमर्श के बाद हुआ था। यों मुफ्ती मोहम्मद सईद मानते थे कि भाजपा और पीडीपी दो ध्रुव हैं। पर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में आखिरकार दोनों पार्टियों को यह हकीकत स्वीकार करनी पड़ी कि सरकार के गठन के लिए उनके साथ आने के अलावा कोई चारा नहीं है। महबूबा इस सच को कैसे भुला सकती हैं! राज्य की भलाई भी इसी में है कि गठबंधन अपना कार्यकाल पूरा करे।