इन दिनों पूरा उत्तर भारत शीतलहर की चपेट में है। दिल्ली में औसत से नीचे तापमान रहा, तो पंजाब और राजस्थान में कई जगहों पर पारा शून्य से नीचे पहुंच गया। घने कोहरे की वजह से रेल और हवाई यातायात बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। मौसम विभाग का आकलन है कि अभी कुछ दिन और शीतलहर का प्रकोप बना रहेगा। पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने से लोगों की परेशानियां अभी और बढ़ने की संभावना है।

हालांकि ऋतुचक्र के हिसाब से सर्दी का मौसम हर वर्ष आता है, मगर इसके मिजाज में आए बदलाव की वजह से परेशानियां अधिक बढ़ रही हैं। सर्दी के मौसम की अवधि औसत से कम दिन की हो रही है, मगर थोड़ी अवधि में तापमान अचानक नीचे गिरने से मानव शरीर के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो रहा है। इस बार अलनीनो प्रभाव के कारण बहुत सारी जगहों पर सूखी ठंड पड़ रही है।

यानी हवा में अपेक्षित नमी नहीं है। इसका फसलों और बागवानी पर प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना है। सूखी और तेज सर्दी मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है। दिल्ली समेत सभी महानगरों में इन दिनों वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ दर्ज हो रहा है, जिसके चलते सर्दी, खांसी, जुकाम जैसी परेशानियां बढ़ रही हैं।

सम के मिजाज में बदलाव की बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है। अभी सर्दी का प्रकोप लोगों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है और फिर थोड़े दिन बाद ही गर्मी बढ़नी शुरू होगी, तो उसे झेलना मुश्किल हो जाएगा। पिछले कुछ वर्षों से न केवल गर्मी की अवधि बढ़ी है, बल्कि इसकी तीव्रता भी सहनशक्ति के पार जा रही है। यही वजह है कि हर वर्ष गर्मी में तेज लू चलने के कारण लोगों की मौत के आंकड़े बढ़ रहे हैं।

पिछली गर्मी में उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में लू की चपेट में आकर सौ से अधिक लोगों के मरने के आंकड़े दर्ज हुए। यही हाल बरसात का भी है। बरसात की अवधि घट गई है और बरसने वाली बूंदों का आकार बढ़ गया है। इससे कम समय में हुई बारिश में भी जगह-जगह बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। मगर कई इलाके बरसात का इंतजार करते रह जाते हैं। उन्हें सूखे की मार झेलनी पड़ती है। इस वजह से अन्न और फल-सब्जियों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ने लगा है, जो खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से चिंताजनक स्थिति माना जा रहा है।

इस वर्ष सर्दी का बदला मिजाज इसलिए भी चिंता का विषय है कि एक तरफ तो उन इलाकों में भी पारा शून्य से नीचे उतर जाने से परेशानी बढ़ गई है, जहां पहले इतनी ठंड नहीं पड़ा करती थी, वहीं पहाड़ों पर औसत से कम बर्फबारी दर्ज हो रही है। इसके पीछे बारिश कम होना बड़ा कारण बताया जा रहा है। पहाड़ों पर कम बर्फ गिरने से पारंपरिक जल स्रोतों, झीलों, तालाबों आदि में कम जल संचय हो पाएगा।

इससे पेयजल का संकट गहरा सकता है। दूसरी तरफ, मैदानी भागों में तेज सूखी सर्दी फसलों को नुकसान पहुंचाएगी। खाद्यान्न उत्पादन घट सकता है। यह एक और चेतावनी है कि जलवायु संकट से उबरने के लिए आजमाए जा रहे उपायों पर तेजी और संजीदगी से काम करने की जरूरत है। इसमें केवल व्यवस्था के स्तर पर नहीं, नागरिकों के स्तर पर भी सहयोग की अपेक्षा की जाती है। मगर अफसोस कि इस दिशा में अभी तक उत्साहजनक संकेत नजर नहीं आ रहे।