WB SIR: मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर बिहार से सवालों का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह देश के अन्य राज्यों में भी नए-नए रूप में सामने आ रहा है। कभी इस प्रक्रिया में बूथ स्तरीय अधिकारियों पर काम के दबाव का मुद्दा उठाया जाता है, तो कभी लाखों लोगों के मसविदा सूची से बाहर हो जाने को लेकर आशंकाओं का नगाड़ा पीटा जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में तो अब एक नई समस्या सामने आई है, जिसे चुनाव आयोग ने खुद स्वीकार करते हुए सूची में छूट गए मतदाताओं की सुनवाई की प्रक्रिया रोकने का निर्देश दिया है। आयोग का कहना है कि राज्य में वर्ष 2002 की मतदाता सूची के डिजिटलीकरण में तकनीकी समस्या की वजह से कई लोगों के नाम मसविदा सूची में शामिल नहीं हो पाए हैं और ऐसे लोगों के लिए फिलहाल व्यक्तिगत सुनवाई की जरूरत नहीं है।
इससे स्पष्ट है कि पुनरीक्षण की प्रक्रिया खामियों से रहित नहीं है। मगर, सवाल है कि इस तरह की व्यवस्थागत चूक से मतदाताओं को जो नाहक ही मानसिक और अन्य तरह की परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं, उनकी भरपाई कैसे हो पाएगी? गौरतलब है कि विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया सबसे पहले बिहार से शुरू हुई थी। तब चुनाव आयोग की ओर से आधार कार्ड को पहचान पत्र के दस्तावेजों में शामिल न करने का मुद्दा प्रमुखता से उठा था।
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आयोग का तर्क था कि आधार को नागरिकता का पहचान पत्र नहीं माना जा सकता, मगर बाद में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर इसे पहचान के दस्तावेजों में शामिल कर दिया गया। इसके बावजूद बिहार में लाखों की संख्या में लोग मतदाता सूची से बाहर रह गए। यह सवाल अब दूसरे राज्यों में भी उठ रहा है, क्योंकि वहां भी बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम मसविदा सूची से हटाए गए हैं।
हालांकि, चुनाव आयोग की ओर से अंतिम सूची तैयार करने से पहले पात्र लोगों को अपना नाम जुड़वाने के लिए अवसर दिए जाएंगे, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बिहार की तरह दूसरे राज्यों में भी लाखों लोग सूची से बाहर रह सकते हैं। इसमें एक सवाल आयोग की विश्वसनीयता को लेकर भी उठ रहा है, जिस कारण पश्चिम बंगाल में तो सत्तारूढ़ दल ने अपने स्तर पर मतदाताओं की पात्रता को सत्यापित करने की मुहिम शुरू कर दी है।
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पुनरीक्षण प्रक्रिया में अभी तक सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में दो करोड़ 89 लाख लोगों के नाम मसविदा सूची से हटाए गए हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि इनमें से पात्र लोगों को प्रक्रिया के अगले चरण में अपनी योग्यता साबित करने का मौका दिया जाएगा। मतदाताओं को सूची से बाहर रखने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें समय पर जरूरी दस्तावेज प्रस्तुत न करना भी शामिल है।
मगर, यह सवाल भी महत्त्वपूर्ण है कि अगर कोई मतदाता पात्र होने के बावजूद किन्हीं कारणों से संबंधित दस्तावेज जमा नहीं करा पाता है, तो क्या उसका मताधिकार खत्म हो जाएगा? और अगर उसके पास मत देने का अधिकार नहीं रहेगा, तो स्वाभाविक है कि देर-सवेर उसकी नागरिकता पर भी सवाल उठेंगे और उसका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।
अगर ऐसे लोगों की संख्या लाखों में होगी, तो समस्या और भी जटिल हो सकती है। इसलिए चुनाव आयोग की यह प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए कि कोई भी पात्र व्यक्ति मतदान के अधिकार से वंचित न हो। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पुनरीक्षण की प्रक्रिया पारदर्शी एवं निष्पक्ष हो।
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