मौसम का अपना चक्र होता है और उसी के मुताबिक उसमें उतार-चढ़ाव होता रहता है। मुश्किल तब आती है जब उसकी मार से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त होने लगता है और कई बार उसे संभालना एक समस्या बन जाती है। इस बार ठंड के मौसम की वजह से कई स्तर पर बाधाएं खड़ी हो रही हैं तो इसमें कुछ नया नहीं है। विडंबना यह है कि अमूमन हर वर्ष इस तरह की समस्याएं और चुनौतियां सामने आने के बावजूद उससे बचाव के उपायों पर गौर करने या उनका पूर्व इंतजाम करने को लेकर कोई ठोस पहलकदमी नहीं दिखती।
नतीजतन, हर वर्ष ठंड के मौसम में लोगों का आम जीवन कई स्तर पर बाधित होता है। खासकर एक से दूसरी जगह आवाजाही व्यापक स्तर पर प्रभावित होती है। जबकि वक्त के साथ मौसम की मार का सामना करने और उसके घातक या नुकसानदेह असर को कम करने के उपायों को लेकर एक सुचिंतित योजना के साथ काम किया जा सकता है।
पिछला वर्ष था सबसे अधिक गर्म
गौरतलब है कि इस वर्ष ठंड की शुरूआत के बावजूद ऐसी खबरें आती रहीं और अध्ययनों के मुताबिक यह भी बताया गया कि पिछला वर्ष अब तक का सबसे अधिक गर्म वर्ष रहा। मगर इसके समांतर इस वर्ष की ठंड अपने पूरे असर के साथ कई स्तर पर मुश्किलें पैदा करती दिख रही है। पिछले दो दिन दिल्ली और आसपास के इलाकों में जिस तरह घना कोहरा छाया रहा, हल्की बारिश हुई, उससे तापमान में और गिरावट आई और ठंड की वजह से बहुत सारे लोगों का सामान्य जीवन मुश्किल हुआ। दिल्ली हवाईअड्डे पर शुक्रवार को एक समय दृश्यता शून्य हो जाने के बाद सौ से ज्यादा विमानों की उड़ान में काफी विलंब हुआ।
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इसी तरह दो दर्जन से ज्यादा रेलगाड़ियां अपने निर्धारित समय से ज्यादा देर से चलीं। सड़कों पर भी आवाजाही बुरी तरह प्रभावित हुई और लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी। यों समूचा उत्तर भारत फिलहाल कड़ाके की ठंड की चपेट में है, लेकिन इस बार दिल्ली के अलावा पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में स्थिति ज्यादा विकट देखी गई। पंजाब के फाजिल्का में सबसे ज्यादा ठंड दर्ज की गई, जहां का तापमान 2.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। इसके अलावा, मौसम विभाग ने हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में बारिश और बर्फबारी की आशंका जताई, जिसका असर निश्चित रूप से दिल्ली और आसपास के राज्यों पर पड़ेगा।
कोहरे की चुनौती से पार पाना मुश्किल
ऐसा नहीं कि ऐसे हालात पहली दफा पैदा हुए हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के चरम विकास के दौर में भी हवाई, सड़क और रेल यात्रा में कोहरे की चुनौती से पार पाने के तरीकों तक आम लोगों की पहुंच नहीं है। मसलन, ठंड के मौसम में रेलगाड़ियों को कोहरा रोधी यंत्र से लैस करने को लेकर लंबे समय से कोशिश चल रही है, लेकिन आज भी हर साल इन दिनों कोहरे की वजह से सैकड़ों रेलगाड़ियां देरी से चलती हैं या फिर कई बार रद्द कर दी जाती हैं।
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सड़कों के किनारे या फुटपाथों पर खुले आसमान के नीचे जिंदगी गुजारने वालों के लिए सरकारी इंतजाम हर वर्ष कठघरे में होता है। कई बार मौसम में उतार-चढ़ाव के संबंध में पूर्वानुमानों को लेकर भी सटीकता में कमी होती है। सवाल है कि अगर तकनीकी प्रगति ने मौसम की मार से निपटने के उपाय निकाले हैं, तो विशेष स्थितियों में उनका सहारा लेकर जनजीवन को सामान्य बनाने या राहत देने में सरकारें टालमटोल का रवैया अख्तियार क्यों किए रहती हैं।