पारदर्शिता लोकतंत्र का जीवन है। जनता की ओर से प्रश्न उठना भी लोकतंत्र में एक स्वाभाविक और जरूरी प्रक्रिया है। साथ ही संदेहों और सवालों के जवाब अगर समय पर सामने आ जाएं, तो इससे देश में लोकतांत्रिक जड़ें मजबूत ही होंगी। मगर कई बार राजनीतिक उठा-पटक के बीच धुंध जब ज्यादा गहरी हो जाती है, तब विश्वास का संकट खड़ा होने की आशंका उपजती है।

इस लिहाज से देखें तो लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की ओर से पिछले कुछ समय से मतदाता सूची में हेरफेर को लेकर जिस तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं, वे अब बहस का मुद्दा बन चुके हैं और आम लोगों के सामने एक तरह के ऊहापोह की स्थिति बनती जा रही है। ऐसे में जरूरी यह है कि चुनाव आयोग अपने स्तर पर सामने आकर इससे उपजे सभी तरह के संदेहों को दूर करे, ताकि मतदान की प्रक्रिया को लेकर विश्वसनीयता का संकट खत्म हो।

गौरतलब है कि गुरुवार को राहुल गांधी ने एक बार फिर मतदाता सूची से मतदाताओं के नाम हटाने को लेकर सवाल उठाया और कर्नाटक में आलंद निर्वाचन क्षेत्र का हवाला देते हुए कहा कि वहां किसी ने गलत तरीके से 6,018 वोट हटाने की कोशिश की। मगर इस क्रम में चूंकि खुद बूथ-स्तरीय अधिकारी के संबंधी का वोट भी हट गया था, इसलिए उसकी जांच के बाद सिरे खुलते गए, जो बेहद चिंताजनक थे।

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महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में भी ऐसा ही मामला देखा गया। जाहिर है, मतदाता सूची से वैध मतदाताओं का नाम हटाने का यह आरोप बेहद गंभीर है और इसकी व्यापक जांच होनी चाहिए। मगर इस मसले पर निर्वाचन आयोग की ओर से फिर से एक संक्षिप्त जवाब आया कि इस तरह मतदाताओं का नाम हटाने को लेकर लगाए गए आरोप गलत और आधारहीन हैं।

कुछ समय पहले भी जब राहुल गांधी ने कर्नाटक में ही फर्जी मतदाताओं को सूची में जोड़ने का आरोप लगाया था, तब भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने उसे खारिज कर दिया था। सवाल है कि मतदाता सूची में मतदाताओं के नाम फर्जी तरीके से जोड़ने या फिर हटाने के इस समूचे मामले को अब जिस तरह देखा जा रहा है, क्या आयोग के संक्षिप्त जवाब से इससे संबंधित आशंकाओं का निराकरण हो सकता है! दरअसल, जरूरत इस बात की है कि निर्वाचन आयोग इस मामले की व्यापक और निष्पक्ष जांच करा कर इससे संबंधित तथ्य जनता को उपलब्ध कराए, ताकि आम लोगों का विश्वास लोकतंत्र को मजबूती देने की प्रक्रिया में बना रहे।

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विडंबना यह है कि संविधान में जिस मतदान के जरिए लोकतंत्र को सुरक्षित रखने की ठोस व्यवस्था की गई है, उसे सुनिश्चित करने के लिए तैयार होने वाली मतदाता सूची में गड़बड़ी के इतने गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं और उस पर कोई स्पष्टता कायम होने के बजाय यह सवाल महज राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के दुश्चक्र में उलझता दिख रहा है।

इसी तरह, बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर भी आयोग के रुख पर सवाल उठ चुके हैं। आखिर यह नौबत कैसे और क्यों आई कि निर्वाचन आयोग पर देश के लोकतंत्र को कमजोर करने वाले तत्त्वों को बचाने के आरोप लगाए जा रहे हैं और इस पर आयोग के रुख की वजह से जनता के एक खासे हिस्से के बीच समूची चुनाव प्रक्रिया को लेकर आशंका खड़ी हो रही है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि स्वच्छ और स्वतंत्र मतदान ही लोकतंत्र के बचे रहने की एकमात्र गारंटी है। साथ ही नागरिकों के मतदान का अधिकार सुरक्षित रहे, यह सुनिश्चित करना निर्वाचन आयोग की ही जिम्मेदारी है।