यह चिंता दिनोंदिन गहरी होती जा रही है कि आखिर महिलाओं के प्रति हिंसा और अपराध का मानस क्यों प्रबल होता जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में महिला अपराधों के खिलाफ व्यापक आंदोलन उभरने, कानूनी सख्ती और पुलिस की जवाबदेही बढ़ाए जाने के बावजूद बलात्कार, हत्या, मारपीट, छेड़खानी, फब्ती कसने जैसी प्रवृत्ति में कोई कमी दर्ज नहीं हो पाई है। राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो और महिला आयोगों के दस्तावेजों में हर वर्ष महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएं कुछ बढ़ी हुई ही दर्ज हो रही हैं।

स्वाभाविक ही, इसे लेकर राज्यों की कानून-व्यवस्था पर अंगुलियां उठती हैं। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि क्यों अपराधियों में कानून का भय पैदा नहीं हो पा रहा। कोलकाता में चिकित्सा छात्रा से बलात्कार और हत्या की घटना को लेकर लंबे समय तक आंदोलन चला, जिसमें तमाम मेडिकल कालेजों और दूसरे शैक्षणिक संस्थानों के विद्यार्थियों ने भी बढ़-चढ़ कर शिरकत की और बढ़ते महिला अपराधों को रोकने के नारे लगाए। राज्य सरकार ने इस मामले के मद्देनजर महिला सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने के वचन दोहराए और कुछ प्रशासनिक तब्दीलियां कर ऐसे अपराधों को रोकने का दावा किया। मगर उस घटना के बाद अब एक विधि कालेज में छात्रा से सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आ गया।

जिन विद्यार्थियों पर छात्रा के साथ बलात्कार का आरोप है, वे खुद कानून की पढ़ाई कर चुके या कर रहे थे। बताया जा रहा है कि लड़की ने मुख्य आरोपी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया था, जिससे आहत होकर उसने छात्रा के साथ न केवल बलात्कार किया, बल्कि उसकी तस्वीरें भी उतारीं। धमकी दी कि अगर उसने इस बारे में किसी को बताया तो वह उन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर डाल देगा। इस मामले में ऐसा नहीं माना जा सकता कि आरोपियों को अपने अपराध में मिलने वाले दंड का अंदाजा न था। फिर भी उनमें छात्रा का बलात्कार करने की हिम्मत पैदा हुई, तो इसका पहला कारण तो यही समझ आता है कि उन्हें कानून के शिकंजे से निकल भागने का भरोसा रहा होगा।

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बलात्कार के ज्यादातर मामलों में आरोप सिद्ध न हो पाने के कारण आरोपी प्राय: दोषमुक्त हो जाते हैं। इसलिए भी बहुत सारे अपराधी किस्म के लोग ऐसी हरकतों से बाज नहीं आते। इसलिए निर्भया कांड के बाद महिला अपराधों के खिलाफ कानूनों को और कठोर बनाने के बावजूद कोई उल्लेखनीय असर नजर न आने के कारण बहुत सारे लोग इन कानूनों की समीक्षा की मांग उठाते रहते हैं।

पश्चिम बंगाल सरकार अपराध पर काबू पाने के दावे करती नहीं थकती

किसी भी राज्य में सुशासन का दावा इस बात से पुष्ट होता है कि वहां अपराधियों पर कितना अंकुश लगाया जा सका है। पश्चिम बंगाल सरकार अपराध पर काबू पाने के दावे करती नहीं थकती, मगर ऐसी घटनाओं से यही जाहिर होता है कि संगठित अपराधों की तो क्या कहें, सामान्य रंजिश में भी लोग जघन्य अपराध करने से नहीं हिचक रहे।

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आरजी कर अस्पताल में बलात्कार और हत्या की घटना के बाद अगर शैक्षणिक संस्थानों में महिला सुरक्षा के बंदोबस्त चुस्त होते और सचमुच विद्यार्थियों में इसे लेकर संजीदगी पैदा हुई होती, तो शायद विधि विद्यालय की ताजा घटना न घटती। फिर बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर युवाओं में इस तरह अपराध का मानस कैसे बन रहा है कि वे अपने किसी प्रस्ताव या फैसले के इनकार को सहन नहीं कर पा रहे और हिंसक हो उठते हैं।