किसी भी आपराधिक घटना में न्याय मिलने में जरूरत से ज्यादा विलंब या न्याय मिलते नहीं दिखना, पीड़ित व उसके परिवार की पीड़ा को कई गुना बढ़ा देता है। कई बार तो पीड़ित व्यक्ति इतना आहत हो जाता है कि उसके जीने की इच्छा तक दम तोड़ देती है। ओड़ीशा में बालासोर के एक कालेज की छात्रा के साथ भी संभवत: यही हुआ। इस छात्रा ने अपने एक शिक्षक के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी, जिस पर समय रहते कार्रवाई नहीं होने पर पीड़िता आत्मदाह जैसा चरम कदम उठाने पर मजबूर हो गई और अब उसकी हालत गंभीर बनी हुई है।
सवाल है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? कालेज प्रशासन ने इस मामले में तत्काल गंभीरता और संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखाई? पीड़िता को ऐसा क्यों महसूस हुआ कि उसे न्याय नहीं मिल पाएगा? गौरतलब है कि पीड़ित छात्रा ने संबंधित कालेज की आंतरिक अनुपालन समिति में यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी।
मामले को दबाने के लिए बनाया गया दबाव
खबरों के मुताबिक, न सिर्फ उस पर तत्काल जांच जैसी कोई कार्रवाई नहीं हुई, बल्कि मामले को दबाने के लिए दबाव भी बनाया गया। इससे आहत होकर पीड़िता ने खुद को आग लगा ली। अब वह अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रही है। इस घटना के बाद कालेज के प्राचार्य और विभागाध्यक्ष को निलंबित कर दिया गया है और मामले में मुख्य आरोपी शिक्षक को गिरफ्तार कर लिया गया है। साथ ही सरकार ने घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति भी गठित की है। सवाल है कि अगर कालेज प्रशासन की ओर से ऐसी सक्रियता पहले दिखाई गई होती, तो क्या छात्रा को खुद को आग लगाने की हद तक पहुंचने से रोका नहीं जा सकता था? अक्सर देखा गया है कि जब कोई घटना तूल पकड़ लेती है, तो उसके बाद ही शासन और प्रशासनिक अमला हरकत में आकर चुस्ती दिखाने लगता है।
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जबकि ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई की उम्मीद की जाती है। सरकार को इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिए। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि आरोप और घटना की गहन जांच हो, सच्चाई सामने आए, दोषी को सजा मिले और लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई हो। तभी न्याय की उम्मीद की जा सकती है।