अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की भारत यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब पारस्परिक शुल्क को लेकर दुनिया भर में अमेरिका के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। चीन के साथ अमेरिका की तनातनी दिनोंदिन तल्ख होती गई है। भारत में भी अमेरिका के साथ बिगड़ते संबंधों के कयास लगाए जाने लगे थे। मगर जेडी वेंस के साथ बातचीत से द्विपक्षीय व्यापार, शुल्क, क्षेत्रीय सुरक्षा, रणनीतिक और प्रतिरक्षा सहयोग पर कई तरह की आशंकाएं दूर होने की उम्मीद जगी है।

इससे यह भी भरोसा बढ़ा है कि आने वाले समय में अमेरिका के साथ भारत के संबंध प्रगाढ़ रहने वाले हैं। हालांकि अमेरिकी प्रशासन के पारस्परिक शुल्क लगाने के फैसले पर भारत ने कभी कोई तीखी टिप्पणी नहीं की। उसने अमेरिकी मंशा के अनुरूप कई चीजों पर शुल्क घटा भी दिए थे। फरवरी में प्रधानमंत्री, ट्रंप से मुलाकात के लिए अमेरिका गए थे, तभी उन्होंने द्विपक्षीय व्यापार समझौते की पेशकश की थी, जिसे अमेरिका ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था।

द्विपक्षीय व्यापार पांच सौ अरब डालर तक पहुंचाने का लक्ष्य

दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को पांच सौ अरब डालर तक पहुंचाने का संकल्प लिया है। फिलहाल दोनों के बीच व्यापार एक सौ नब्बे अरब डालर है। गौरतलब है कि भारत और अमेरिका अब द्विपक्षीय व्यापार समझौता करने के लिए बातचीत कर रहे हैं, जिसमें शुल्क और बाजार पहुंच सहित कई मुद्दों के हल की उम्मीद है।

हालांकि अभी अमेरिकी प्रशासन ने अपनी शुल्क दरों को लागू करने की तिथि नब्बे दिनों के लिए टाल दी है, पर इससे दुनिया की चिंताएं दूर नहीं हुई हैं। इसके बरक्स चीन ने अपने नए व्यापारिक साझीदार तलाशने शुरू कर दिए हैं। उसने एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। ऐसे में न केवल उन देशों के सामने शुल्क दरें बढ़ने से व्यापारिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की चिंता बढ़ गई है, बल्कि चीन के बदलते पैंतरे से अमेरिका के माथे पर भी बल पड़ने शुरू हो गए हैं।

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भारत के साथ रिश्ते खराब होने से उसे भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता था। मगर भारत ने शुरू से अमेरिका के साथ अपने संबंधों में किसी तरह की ठंडक नहीं आने दी है। वेंस की भारत यात्रा से दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने डोनाल्ड ट्रंप के विशेषाधिकार प्राप्त सहयोगी एलन मस्क से फोन पर बातचीत की थी, जिसमें तकनीकी सहयोग और व्यापारिक संबंधों में मजबूती लाने के संकल्प दोहराए गए थे। इस तरह वेंस की भारत यात्रा का आधार पहले से तैयार था और उसी के अनुरूप उन्होंने बातचीत को आगे बढ़ाया है।

दोनों देशों की जरूरतों के मद्देनजर हुई है वेंस की यात्रा

भारत न केवल अमेरिका के लिए बड़ा बाजार, बल्कि बड़ा व्यापारिक साझीदार भी है। अमेरिका के पारस्परिक शुल्क थोपने से भारत के कृषि, प्रसंस्कृत खाद्य, वाहनों के पुर्जे, उच्च-स्तरीय मशीनरी, चिकित्सा उपकरण और आभूषण के क्षेत्र में बड़ा झटका लगने की आशंका बढ़ गई थी, तो अमेरिका के लिए दवा, आभूषण आदि क्षेत्रों में बड़े नुकसान का कयास है। एलन मस्क ने खुद भारत में अपनी व्यापारिक गतिविधियां बढ़ाने पर जोर दिया है।

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इसलिए वेंस की यात्रा दोनों देशों की जरूरतों के मद्देनजर हुई है। अब यह अमेरिका पर है कि वह किस तरह भारत सहित दूसरे देशों के साथ अपनी शुल्क नीति में संतुलन साधने का प्रयास करता है। भारत की चिंताएं व्यापार के अलावा दूसरी भी हैं, जिनमें वहां रह रहे भारतीय मूल के लोगों की सुरक्षा, शिक्षा और रोजगार वीजा में सहूलियतें बढ़ना भी शामिल है। वेंस की यात्रा से संबंधों में संतुलन बनना शुरू हो गया है।