उत्तर प्रदेश सरकार बार-बार यह दावा करती रही है कि राज्य में अपराधों पर काबू पा लिया गया है। मगर सच यह है कि आए दिन राज्य में सरेआम गंभीर आपराधिक घटनाएं सामने आ रही हैं। सख्ती के बावजूद अपराधी अगर काबू में नहीं आ रहे, तो समझा जा सकता है कि अपराध नियंत्रण में कहीं न कहीं कोई कमजोर कड़ी बाकी है, जिसकी या तो शिनाख्त नहीं हो पाई है या जानबूझ कर उसकी अनदेखी की जाती है।

महिलाओं को सुरक्षित वातावरण देने के दावे के बरक्स सच यह है कि राज्य में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। पुलिस उनमें अभी तक यह भरोसा नहीं जगा सकी है कि वे सड़कों पर कहीं बेखौफ आ-जा सकें। बल्कि अक्सर होने वाली आपराधिक घटनाएं यही बताती हैं कि वे घरों में भी सुरक्षित नहीं। एक हफ्ते पहले अभिनेत्री दिशा पाटनी के घर के बाहर गोलियां चला कर कुछ अपराधियों ने दहशत फैलाने की कोशिश की थी।

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अब उनमें से दो आरोपियों को पुलिस ने मुठभेड़ में ढेर कर दिया है, लेकिन इस दौरान बड़ी संख्या में मिले कारतूसों से यह सवाल उठा है कि अपराधियों तक घातक हथियार कैसे पहुंच रहे हैं। वे बिना किसी रोक-टोक के सड़कों पर घूमते हैं और तब तक नहीं पकड़े जाते, जब तक कोई घटना तूल नहीं पकड़ लेती।

किसी वारदात के बाद मुठभेड़ में अपराधियों के मार गिराए या पकड़े जाने की खबर आती है, लेकिन आखिर क्या वजह है कि इसके बावजूद अपराध को रोकने में कामयाबी नहीं मिल पा रही और आपराधिक तत्त्वों को पुलिस का खौफ नहीं सताता है। उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए करीब आठ साल पहले ‘मिशन शक्ति’ अभियान शुरू किया गया था। यह उम्मीद की गई थी कि इससे महिलाओं में सुरक्षा की भावना बढ़ेगी।

मगर इस अभियान के पांचवें चरण से पहले ही एक अभिनेत्री के परिवार को धमकाने के लिए सरेआम गोलियां चलाई गर्इं। अपराध कम होने के सरकार के दावे के उलट महिलाओं के खिलाफ जिस तरह आपराधिक घटनाएं बढ़ी हैं, उससे ‘मिशन शक्ति’ पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है।