उत्तर प्रदेश सरकार जिस चीज को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता कर लगातार प्रचारित करती है, वह है अपराध और अपराधियों पर लगाम कसना। मगर वहां आए दिन जिस तरह की आपराधिक घटनाएं सुर्खियों में आती रहती हैं, उससे यही लगता है कि अपराध को पूरी तरह रोक देने के सरकारी दावों के बरक्स जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। राज्य में अयोध्या के सहनवां गांव में दलित पृष्ठभूमि की एक युवती के साथ जैसी बर्बरता की खबर आई है, वह किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को दहला देने के लिए काफी है।
गौरतलब है कि युवती गुरुवार को रात दस बजे एक धार्मिक आयोजन में कथा सुनने निकली थी, लेकिन उसके बाद वह नहीं लौटी। उसके परिजनों ने गांव में खोजने के बाद पुलिस के पास गुमशुदगी की रपट भी दर्ज कराई। मगर खबरों के मुताबिक, पुलिस तुरंत सक्रिय होकर उसकी तलाश करने के बजाय महज खानापूर्ति करने में लगी रही।
दो दिन बाद उसके रिश्तेदारों को उसकी लाश मिली
नतीजा यह हुआ कि दो दिन बाद उसके रिश्तेदारों को उसकी लाश मिली। शव की हालत से साफ था कि उसके साथ बेहद बर्बरता की गई थी। मामले के तूल पकड़ने के बाद पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया। मगर सवाल है कि अगर राज्य में कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार का दावा सच है तो अपराधियों के भीतर इस हद तक बर्बर हिंसा करने की हिम्मत कहां से और कैसे आई। वे किन वजहों से इतने आश्वस्त थे कि बेखौफ होकर पहले युवती का अपहरण किया, फिर सारी हदें पार करते हुए उसके साथ बर्बरता की और उसकी हत्या कर दी?
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गुमशुदगी का मामला दर्ज कराए जाने के बावजूद पुलिस तत्काल क्यों सक्रिय नहीं हुई? अगर पुलिस ने समय पर जरूरी सक्रियता बरतती और कार्रवाई करती, तो क्या युवती को नहीं बचाया जा सकता था? अफसोसनाक यह है कि एक ओर राज्य सरकार लगातार अपराध पर काबू पा लेने की दुहाई देती रहती है, दूसरी ओर अयोध्या जैसे शहर से भी बर्बर अपराधों की खबरें आ रही हैं और अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं।