इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि जिस व्यवस्था को सुरक्षा की सबसे मजबूत दीवारों के तौर पर देखा जाता है, उसके भीतर ही अपराधी तत्त्व अराजक तरीके से किसी की हत्या तक कर देते हैं और वहां मौजूद सुरक्षाकर्मी लाचार देखते रहते हैं। सवाल है कि इस हकीकत के बावजूद संबंधित महकमे किस आधार पर अपनी व्यवस्था को सबसे सुरक्षित होने का दावा करते रहते हैं।

गौरतलब है कि तिहाड़ जेल में बंद टिल्लू ताजपुरिया नामक एक अपराधी की हाल ही में कुछ कैदियों ने मिल कर हत्या कर दी थी। इस घटना को अंजाम देने में जितना वक्त लगा और उस दौरान हमलावर कैदी जितनी आसानी से टिल्लू पर हमला करते रहे, उतनी देर तक जेल प्रशासन के कुछ कर्मी तमाशा देखते रहे। इस घटना का खौफनाक वीडियो बताता है कि या तो इसके पीछे कोई व्यापक साजिश है या फिर जेल की सुरक्षा व्यवस्था का स्तर निहायत कमजोर है। ऐसा लगता है कि जेल के भीतर कब कैसी घटना होगी, कहा नहीं जा सकता।

यों दिल्ली की तिहाड़ जेल को देश की सबसे सुरक्षित और आदर्श माना जाता रहा है। बल्कि अच्छी व्यवस्था का संदर्भ आने पर इसे उदाहरण के रूप में पेश किया जाता रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि पिछले कुछ समय के भीतर ही जेल के भीतर चाकू या अन्य हथियारों से हमले, मारपीट या फिर हत्या तक की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। पिछले ही महीने प्रिंस तेवतिया नामक अपराधी की हत्या कर दी गई थी।

खबरों के मुताबिक, टिल्लू ताजपुरिया की हत्या करते हुए हमलावरों ने कुछ मिनट तक मारपीट की और चाकू जैसे हथियार से करीब नब्बे वार किए। इतनी देर तक घटना होती रही और जेल प्रशासन से जुड़े लोग तमाशबीन बने रहे। क्या वहां अचानक किसी घटना के होने पर सुरक्षाकर्मियों के बीच सक्रिय होने या प्रतिक्रिया देने का स्तर यही है? हत्या जैसे मामले के अलावा अगर कोई बड़ी वारदात हुई तो वैसे में जेल प्रशासन क्या करेगा? इस तरह की लापरवाह सुरक्षा व्यवस्था के होते हुए यह उम्मीद करना भी शायद बेमानी है कि वहां अंदर में हमले और हत्या जैसे अपराध को अंजाम देना मुश्किल है।

खबरों के मुताबिक, केवल अप्रैल में तिहाड़ में जेल नंबर आठ और नौ में कुल बत्तीस बार तलाशी अभियान चलाया गया। इस दौरान पंखे के ब्लेड या अन्य चीजों से तैयार किए गए बाईस धारदार चाकू मिले, जबकि तीस से ज्यादा लोहे की छड़ें बरामद की गई थीं। इसके अलावा, कैदियों पर नजर रखने के लिए साठ सुरक्षाकर्मी तैनात होते हैं और वहां कुल नौ सौ पचहत्तर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं।

फिर जेल प्रशासन कैदियों की सुरक्षा की समीक्षा भी करता रहता है। आखिर इसका हासिल क्या है? जेल की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले उच्चाधिकारियों को क्या यह अंदाजा नहीं होता है कि वहां खतरनाक प्रकृति के अपराधियों को भी लाया जाता है, जो बाहर हुई किसी घटना का बदला लेने या अन्य कारणों से कभी भी बड़े अपराध को अंजाम देने की फिराक में रहते होंगे? कुछ कैदियों को विशेष सुविधाएं मुहैया कराने में मिलीभगत की खबरें भी अक्सर आती रहती हैं।

सवाल है कि इतनी सारी उच्च स्तरीय व्यवस्था के बावजूद अगर इस जेल में अपराधी गिरोहों में आपसी मुठभेड़ और उसमें हत्या तक की घटनाएं होती हैं और वहां का सुरक्षा तंत्र लाचार दिखता है तो इसके क्या कारण हैं? यह कैसी व्यवस्था है कि जेल के भीतर भी बाहर की तरह ही समांतर अपराध और अराजकता की दुनिया देखने में आती है!