आर्थिक समीक्षा से बजट की रूपरेखा का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसमें पिछले वर्ष की आर्थिक स्थितियों का लेखाजोखा पेश किया जाता है। इसी आधार पर आगामी वर्ष के लिए नीतियां निर्धारित होती हैं। इस वर्ष चूंकि आम चुनाव थे, पूर्ण बजट के बजाय अंतरिम बजट पेश किया गया था। आज इस वर्ष के लिए आम बजट पेश होगा। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछला वर्ष आर्थिक विकास की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण रहा। कोरोना काल के बाद रोजगार के अवसर बढ़े हैं और बेरोजगारी की दर निरंतर घट रही है।
वैश्विक मंदी की वजह से निर्यात के क्षेत्र में चुनौतियां
भारत की कुल श्रमशक्ति में से सत्तावन फीसद स्वरोजगार में लगी हुई है। महंगाई के मोर्चे पर जरूर थोड़ी चुनौती उभरती रही है, पर अंतरराष्ट्रीय स्थितियों से तुलना करें तो इस पर अपेक्षाकृत काबू पाया जा सका है। इस वर्ष मानसून अच्छा रहने की वजह से जल्दी ही महंगाई की लक्षित दर हासिल कर ली जाएगी। इससे सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन भी बेहतर रहेगा। इस वर्ष विकास दर के साढ़े छह से सात फीसद रहने का अनुमान है। 2030 तक गैर-कृषि क्षेत्र में 78.5 लाख रोजगार सृजित करने की जरूरत रेखांकित की गई है। हालांकि वैश्विक मंदी की वजह से निर्यात के क्षेत्र में चुनौतियां बनी रह सकती हैं।
पिछले वर्ष के आर्थिक रुझानों के आधार पर सरकार ने इस वर्ष निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ने का अनुमान लगाया है। इसके लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए बजट में प्रावधान किए जाएंगे। यों पहले से निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अनेक बजटीय प्रावधान और योजनाएं लागू की जाती रही हैं। निजी उद्योगों की सुविधा के लिए कर, कर्ज आदि में छूट के अलावा श्रम कानूनों को लचीला बनाया गया। इससे पूंजीगत व्यय लगातार बढ़ा है। पिछले वर्ष निजी क्षेत्र के निवेश में नौ फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई।
वित्तमंत्री ने कहा है कि अब निजी क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में अपना योगदान बढ़ाने का वक्त है। अगले वित्तवर्ष में बजट घाटा घट कर साढ़े चार फीसद तक रह जाने की संभावना जताई गई है। नए बजट में कृषि क्षेत्र पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इस आर्थिक सर्वेक्षण में मुख्य रूप से हवाई सेवा क्षेत्र को बढ़ाने, शिक्षा और रोजगार के बीच संतुलन बिठाने, ड्रोन निर्माण में तेजी लाने और राज्यों की क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। जाहिर है, आम बजट में इन क्षेत्रों के लिए विशेष योजनाओं पर बल होगा।
हालांकि इस सर्वेक्षण को विपक्ष ने अतिरंजित और आंकड़ों का खेल बताया तथा बजट में व्यावहारिक उपायों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी है। दरअसल, आंकड़ों में अर्थव्यवस्था की बुलंदी और व्यावहारिक धरातल पर बेहतरी के बीच कोई सहसंबंध नजर नहीं आता। एक तरफ तो आंकड़ों में तेजी से तरक्की करती अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर नजर आती है, मगर आम जनजीवन के स्तर पर बेहतरी के कोई संकेत नजर नहीं आते।
बेशक सरकार महंगाई और बेरोजगारी पर काबू पाने का दम भरती है, पर हकीकत यह है कि लोग रोजमर्रा उपभोग की वस्तुओं की कीमतें बढ़ने और क्रयशक्ति घटने की वजह से परेशान हैं। रोजगार के मोर्चे पर युवाओं को भरोसे का कोई काम मिलना कठिन बना हुआ है। जिस निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया जाता है, वह उस अनुपात में नौकरियां पैदा नहीं कर पा रहा। इसलिए बजट में अगर गंभीरता से व्यावहारिक नीतियों पर विचार नहीं होगा, तो मुश्किलें आसान नहीं होंगी।