बच्चों के खिलाफ हिंसा न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी उन्हें चोट पहुंचाती है। बाद में उनके वयस्क जीवन में भी इसके प्रतिकूल परिणाम देखने को मिलते हैं। कानूनन सभी बच्चों को हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार से सुरक्षित रहने का अधिकार है। मगर, दुनिया भर में तमाम सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और विभिन्न धर्मों व समुदायों के लाखों बच्चे हर दिन हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं।

इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र की एक नई रपट ने चिंता बढ़ा दी है, जिसमें कहा गया है कि पिछले वर्ष दुनिया भर में संघर्षों के दौरान बच्चों के खिलाफ हिंसा व अन्य अपराध अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गए। वर्ष 2023 की अपेक्षा 2024 में बच्चों और किशोरों के खिलाफ हिंसा के मामलों में पच्चीस फीसद बढ़ोतरी हुई है। संयुक्त राष्ट्र की इस रपट को इसलिए भी गंभीरता से लेने की जरूरत है, क्योंकि बच्चों के खिलाफ अपराध कम होने के बजाय साल-दर-साल बढ़ रहे हैं।

पुलिस से शिकायत दर्ज कराने में हिचकिचाते हैं लोग

संयुक्त राष्ट्र ने संघर्षरत राष्ट्रों में बच्चों के खिलाफ 41,370 आपराधिक मामलों की पुष्टि की है, इनमें से 36,221 मामले वर्ष 2024 में सामने आए हैं और 5,149 मामले पहले के थे, जिन्हें पिछले साल सत्यापित किया गया। इसके अलावा ‘द लैंसेट जर्नल’ की एक हालिया रपट के मुताबिक, 1990 से 2023 के बीच दुनिया के 200 से ज्यादा देशों में बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के मामले बढ़े हैं। इसमें गौर करने वाली बात यह भी है कि सामान्य मामलों में बहुत से लोग पुलिस के पास अपने बच्चों के खिलाफ हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज कराने में हिचकिचाते हैं।

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जाहिर है कि वास्तविक मामलों की संख्या सत्यापित आंकड़ों से कहीं ज्यादा हो सकती है। दअरसल, सरकारों, नीति निर्माताओं और यूनिसेफ जैसे संगठनों पर बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने की जिम्मेदारी है और उन्हें अपने प्रयासों का गंभीरता से आकलन करना होगा। इसके अलावा धार्मिक और सामाजिक संगठनों से भी सहयोग की उम्मीद की जाती है। बच्चों में व्यक्तिगत सुरक्षा को बढ़ावा देना, बाल संरक्षण नीतियों को कड़ाई से लागू करना और अभिभावकों को जागरूक करने पर भी प्रमुखता से ध्यान देने की जरूरत है।