भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी मुद्दे पर बातचीत हमेशा द्विपक्षीय स्तर पर ही होती रही है। कश्मीर का मसला भी इनमें से एक है। हालांकि, कई मौकों पर खुद पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश की है, लेकिन भारत तीसरे पक्ष की भूमिका को सिरे से खारिज करता रहा है। अब अमेरिका ने भी साफ कर दिया है कि कश्मीर भारत-पाकिस्तान का आपसी मसला है और इसमें किसी तरह का दखल देने में उसकी कोई रुचि नहीं है।
अमेरिका का यह संदेश इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार यह दावा कर चुके हैं कि आपरेशन सिंदूर के दौरान भारत-पाक के बीच संघर्ष विराम कराने में उनकी अहम भूमिका रही है। जबकि भारत इन दावों को पूरी तरह नकारता रहा है। ऐसे में अब अमेरिका ने भारत के उस रुख की पुष्टि कर दी है कि पाकिस्तान से जुड़े मसलों में किसी तीसरे पक्ष का दखल कतई स्वीकार्य नहीं है।
कश्मीर मसला सीधे तौर पर द्विपक्षीय मुद्दा
दरअसल, 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच शिमला में एक अहम समझौता हुआ था। इसके तहत आम सहमति बनी थी कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सहित जितने भी मसले हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा। यानी द्विपक्षीय मुद्दों को न तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया जाएगा और न ही इनमें किसी तीसरे पक्ष को शामिल किया जाएगा। मगर इस समझौते का पाकिस्तान ने कई बार उल्लंघन कर कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र में भी उठाया है। जबकि भारत इस समझौते के अनुरूप अपने रुख पर हमेशा कायम रहा है और इसी का नतीजा है कि अब अमेरिका ने भी स्वीकार किया है कि कश्मीर मसला सीधे तौर पर द्विपक्षीय मुद्दा है।
भारत-पाक का आपसी मामला है कश्मीर, दखल देने में हमारी कोई रुचि नहीं: अमेरिकी विदेश विभाग
गौरतलब है कि अमेरिकी विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने हाल ही में कहा कि यह उनके देश की दीर्घकालिक नीति है कि कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान ही आपसी बातचीत और सहमति से कोई हल निकाल सकते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि दोनों देशों की ओर से अमेरिका से किसी मुद्दे पर सहयोग मांगा जाता है तो वह मदद के लिए तैयार है। हालांकि, भविष्य में ऐसी नौबत आने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है।
अमेरिका का यह बयान ऐसे मौके पर आया है, जब पाकिस्तान के मित्र देश तुर्किये के राष्ट्रपति ने पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का मसला उठाया था। उनका कहना था कि कश्मीर मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के आधार पर संवाद के जरिए होना चाहिए। भारत ने इसका कड़ा विरोध करते हुए अपना रुख स्पष्ट किया और कहा कि यह सिर्फ द्विपक्षीय मुद्दा है और इसका अंतरराष्ट्रीयकरण नहीं किया जा सकता। तुर्किये पहले भी इस तरह की कोशिशें करता रहा है, जो भारत के प्रतिरोध के आगे बौनी साबित हुई हैं।
एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पिछले दिनों पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने एक साक्षात्कार में कहा था कि भारत ने दोनों देशों से जुड़े मसलों में कभी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया है। साफ है कि पाकिस्तान इस बात को बखूबी जानता है कि द्विपक्षीय मसलों को लेकर भारत के साथ बातचीत ही एकमात्र विकल्प है। मगर यह भी सच है कि सीमा पार से आतंकवाद और बातचीत, दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते।