अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पिछले कुछ समय से जिस तरह के फैसले ले रहे हैं, उसमें एक विचित्र अस्थिरता दिख रही है। इससे यह भी पता चलता है कि वे शायद हड़बड़ी में ऐसे नीतिगत फैसले भी ले रहे हैं, जिनमें थोड़े ही वक्त बाद उन्हें बदलाव करना पड़ता है। बीते हफ्ते शुक्रवार को उन्होंने एच1बी वीजा के लिए लागत में पचास गुना बढ़ोतरी करके उसे एक लाख डालर यानी करीब अठासी लाख रुपए करने की घोषणा कर दी। इस शुल्क का भुगतान एकमुश्त करना होगा।

जाहिर है, इसके बाद व्यापक पैमाने पर चिंता जताई जाने लगी कि अगर यह घोषणा अमल में आई तो खासतौर पर वहां भारतीयों के सामने कैसी स्थितियां पैदा होंगी, वे कैसे और कितने दिन टिक सकेंगे। मगर जैसे ही इसके असर की व्यापकता बहस का मुद्दा बनी, उसमें यह पक्ष भी सामने आया कि अगर यह अमल में आता है तो इससे खुद अमेरिकी हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसके बाद मची उथल-पुथल के बीच इस मसले पर उठे विवाद को शांत करने की कोशिश की गई और पहले के फैसले को बदलते हुए कहा गया कि यह शुल्क सिर्फ नए आवेदकों पर लागू होगा और एक बार ही देना पड़ेगा।

फिलहाल ताजा फैसले की जद में वे नहीं आएंगे भारतीय

निश्चित रूप से वहां एच1बी वीजा पर रह रहे भारतीयों के लिए फिलहाल यह राहत की बात होगी कि ताजा फैसले की जद में वे नहीं आएंगे। मगर पिछले कुछ समय में ऐसे कई उदाहरण सामने आए, जिनमें ट्रंप ने बार-बार अपने फैसले में बदलाव किया। यह स्थिति तब है, जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता किसी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है और आए दिन ऐसे संकेत सामने आ रहे हैं, जिससे पता चलता है कि परिस्थितियों में बदलाव भी आ सकता है।

जीएसटी से उपभोक्ताओं, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों को राहत मिलने की उम्मीद

इस क्रम में भारत पर दबाव बनाने के मकसद से अमेरिका ने आयातित वस्तुओं पर शुल्क लगा दिया और यहां तक कि रूस से तेल खरीदने के मामले में भी गैरजरूरी दखल देने की कोशिश की। सवाल है कि इसका असर आखिर क्या पड़ रहा है। अब तेजी से बदलती भू-राजनीतिक कूटनीति के दौर में वैश्विक समीकरण भी बदल रहे हैं। ऐसे में अमेरिका को शायद यह समझने की जरूरत है कि द्विपक्षीय संबंधों में बराबरी के स्तर पर एक दूसरे के हितों का ध्यान रखना जरूरी होता है।