अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से गाजा में युद्धविराम के लिए जो बीस सूत्रीय प्रस्ताव पेश किया गया है, वह निश्चित रूप से शांति की राह पर लौटने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इजराइल और फिलिस्तीन समेत कई देशों ने इस पहल का स्वागत किया है, जिनमें आठ अरब देश तथा भारत, चीन, रूस और पाकिस्तान भी शामिल हैं। साफ है कि ज्यादातर देश गाजा में शांति के समर्थक हैं। मगर क्या हमास भी इस प्रस्ताव को स्वीकार करेगा? यह सवाल इसलिए अहम है, क्योंकि हमास की ओर से अभी तक कोई उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

इस संगठन का कहना है कि वह प्रस्ताव की शर्तों का गहन अध्ययन करने के बाद ही अपना रुख स्पष्ट करेगा। दूसरी ओर इजराइल ने भी भले ही इस प्रस्ताव पर प्रथम दृष्टया सहमति जताई हो, लेकिन इसमें कई शर्तें ऐसी हैं, जिनके दूरगामी प्रभाव को देखते हुए इजराइल अपने मौजूदा रुख में बदलाव करने पर विचार कर सकता है। यानी शांति योजना सिरे चढ़ पाएगी या नहीं, अभी इस संबंध में कोई भी कयास लगाना जल्दबाजी होगी।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से वाइट हाउस में मुलाकात के बाद शांति समझौते का यह प्रस्ताव सार्वजनिक किया है। इससे पहले नेतन्याहू ने अमीरात में हमास से जुड़े लोगों को निशाना बनाकर किए गए सैन्य हमले के लिए कतर के प्रधानमंत्री से माफी मांगी थी। इस प्रस्ताव की शर्तों में कहा गया है कि समझौता होने के बहत्तर घंटे के भीतर दोनों ओर से बंधकों और कैदियों को रिहा कर दिया जाएगा। गाजा का प्रशासन एक अस्थायी, तकनीकी और गैर-राजनीतिक फिलिस्तीनी समिति को सौंपा जाएगा, जिसकी निगरानी राष्ट्रपति ट्रंप की अध्यक्षता वाला ‘बोर्ड आफ पीस’ करेगा।

यानी प्रकारांतर से इस प्रशासन की लगाम अमेरिका के हाथों में रहेगी। हमास और इजराइल की इसमें कोई भागीदारी नहीं होगी। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि इजराइल और हमास इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ेंगे और गाजा में फिर से शांति कायम होगी, क्योंकि इस युद्ध के दौरान अब तक छियासठ हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल थे।