जनीतिक दलों को चुनाव के लिए मिलने वाले चंदे पर आयकर नहीं चुकाना होता, मगर आयकर नियमों के मुताबिक उन्हें उसका पारदर्शी तरीके से हिसाब देना जरूरी होता है। ज्यादातर पार्टियां इस मामले में लापरवाही बरतती या जानबूझ कर हिसाब देने से बचती देखी जाती हैं। अब आयकर विभाग ने कांग्रेस के पुराने हिसाब-किताब में खामियां निकाल कर उस पर भारी जुर्माने का नोटिस भेजा है, तो राजनीति शुरू हो गई है। पहले ही कई वर्षों के चंदे का ब्योरा समय पर और ठीक-ठीक न देने की वजह से आयकर विभाग कांग्रेस के सारे बैंक खाते अपने कब्जे में ले चुका है।
उसे कांग्रेस ने अदालत में चुनौती दी कि जब चुनाव नजदीक आ रहे हैं, तब आयकर विभाग ने उसका सारा पैसा जब्त कर लिया है। अब आयकर विभाग ने अलग-अलग वर्षों के आय-व्यय का ठीक-ठीक ब्योरा न दिए जाने पर उसे 1823.08 करोड़ रुपए जुर्माने का नोटिस भेज दिया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर भी ऐसी ही अनियमितता के आरोप में ग्यारह करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है।
चूंकि आमचुनाव की रणभेरी बज चुकी है और कांग्रेस खाली हाथ हो गई है, इसलिए उसकी नाराजगी स्वाभाविक है। उसने भाजपा के चंदे का हिसाब-किताब निकाल कर दिखाया है कि उसने भी आयकर विभाग को उचित हिसाब नहीं बताया। उसके अनुसार भाजपा पर भी चार हजार छह सौ करोड़ रुपए का जुर्माना बनता है। यह ठीक है कि सभी राजनीतिक दलों को अपने चंदे का नियम के मुताबिक हिसाब देना चाहिए, लेकिन आयकर विभाग ने ऐसी गड़बड़ियों पर कार्रवाई का जो समय और तरीका चुना है, वह सवालों से परे नहीं माना जा सकता।
सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि अगर कांग्रेस ने कई वर्ष पहले अपने चंदे का सही और समय पर हिसाब-किताब नहीं दिया था, तो उसकी यह गड़बड़ी ऐन चुनाव के वक्त ही क्यों नजर आई। फिर, क्या आयकर विभाग जो कार्रवाई अभी कर रहा है, वह थोड़ा रुक कर नहीं कर सकता था। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि कहीं यह कांग्रेस और भाकपा को चुनाव से बाहर करने का हथकंडा तो नहीं।