जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद यह पहला मौका है जब अमेरिका ने चीन को कड़े शब्दों में चेताया है कि वह पड़ोसी देशों को डराना-धमकाना बंद करे। जाहिर है, वर्तमान में इसका सीधा संबंध तो भारत और ताइवान से है। पिछले आठ महीनों से चीन ने लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारतीय सीमा क्षेत्रों में अशांति पैदा कर रखी है।
बाइडेन प्रशासन ने हिंद महासागर में भी चीन के बढ़ते कदमों पर एतराज जताते हुए कहा है कि इस क्षेत्र में वह भारत के हितों को प्रभावित नहीं होने देगा। भारत को लेकर अमेरिका का यह रुख भविष्य के संबंधों की दिशा को भी रेखांकित करता है। हालांकि अभी तक यह माना जा रहा था कि अमेरिका में इस वक्त घरेलू संकट कहीं ज्यादा गंभीर और चुनौती भरे हैं, ऐसे में नया प्रशासन बुहत जल्दी अंतरराष्ट्रीय मोर्चे, खासतौर से चीन को लेकर अपने पत्ते नहीं खोलने वाला। पर अब यह साफ हो चुका है कि भारत और ताइवान के जरिए अमेरिका ने चीन को घेरने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है।
पिछले साल 15-16 जून की रात गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के हमले में भारत के बीस सैनिक शहीद हो गए थे। हाल में अरुणाचल प्रदेश में भी सीमा से सटे इलाकों में चीनी गतिविधियां बढ़ी हैं। ऐसे में पहली बार अमेरिका का भारत के समर्थन में उतरना उसकी नई रणनीतियों की ओर इशारा करता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमेरिका की नीतियों में उसके अपने हित सर्वोपरि हैं। अमेरिका सिर्फ भारत को बचाने के लिए चीन को धमका रहा है, ऐसा मानना भी भ्रम होगा। बल्कि इसके पीछे रणनीति भारत को आड़ बना कर चीन को साधने की है। हिंद महासागर में चीन की बढ़ती ताकत से अमेरिका भी चिंतित है।
भारत के लगभग सभी पड़ोसियों और सार्क के सदस्य देशों- श्रीलंका, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालद्वीव पर चीन का गहरा प्रभाव है। चीन इन देशों का न सिर्फ मददगार बना हुआ है, बल्कि इनमें भारी निवेश भी कर रहा है। दक्षिण चीन सागर पर तो एक तरह से चीन का ही कब्जा है। वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों की समुद्री सीमा में भी चीन ने अतिक्रमण कर रखा है। इसलिए चीन की घेरेबंदी के लिए अमेरिका ने भारत, आस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिल कर चार देशों का संगठन- क्वाड भी बनाया, ताकि जब भी जंग की नौबत आए तो वह अकेला न पड़े।
फिलहाल इतना तो साफ है कि अमेरिका की रणनीति चीन पर दबाव बनाए रखने की रहेगी। इसीलिए उसने भारत की तरफदारी की है। पर यह भी सच है कि कुछ अहम मुद्दों पर भारत को लेकर अमेरिका की नीति स्पष्ट नहीं है। जैसे सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी पर बाइडेन प्रशासन ने कोई ऐसा संकेत नहीं दिया है कि वह भारत के पक्ष में है।
अगर अमेरिका वाकई भारत का हिमायती है तो उसे खुल कर इस मुद्दे पर भारत का समर्थन करना चाहिए। लेकिन अमेरिका की चिंता के मूल में चीन है। दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में चीन को रोकने में उसे भारत का सहयोग चाहिए। इसीलिए अब अमेरिका को भारत की फिक्र हुई है।