रैगिंग की घटनाएं भले हर नागरिक से न जुड़ी हों, लेकिन यह प्रवृत्ति जिस तरह के गंभीर अपराध का रूप धारण कर चुकी है, वह समाज के लिए तो शर्मनाक है ही, साथ ही सरकारों और कानून के रखवालों के लिए चुनौती भी है। शायद ही कोई साल ऐसा गुजरता हो जब स्कूल-कॉलेज खुलते ही ऐसी घटनाएं सामने न आने लगती हों। भोपाल की जिला अदालत का यह फैसला मध्य प्रदेश में अपनी तरह का पहला है जिसमें रैगिंग करने की दोषी छात्राओं को सजा देकर अदालत ने कड़ा संदेश दिया है। इस घटना की पीड़िता ने अपनी वरिष्ठ साथियों की प्रताड़ना से तंग आकर फांसी लगा ली थी। दोषी छात्राएं पीड़िता पर कुछ लड़कों के साथ दोस्ती के दबाव बना रही थीं।
कॉलेजों में दाखिला लेते वक्त छात्र-छात्राओं के मन में रैगिंग को लेकर किस कदर खौफ बना रहता है, इसकी कल्पना कर पाना आसान नहीं है। खासतौर से इंजीनियरिंग, मेडिकल, नर्सिंग, प्रबंधन और यहां तक कि कानून जैसे विषय पढ़ाने वाले लॉ कॉलेजों और सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों यह समस्या एक लाइलाज मर्ज गई है।
इन संस्थानों में तो आमतौर पर छात्र-छात्राओं का पहला और दूसरा साल इसी खौफ के साये में निकलता है। भविष्य में कुछ बनने का सपना पाले नौजवान इस दहशत भरे माहौल में किस मानसिक दशा से गुजरते होंगे, कोई नहीं जानता। रैगिंग की अमानवीय घटनाएं कई बार तो जीवन भर के लिए तोड़ कर रख देती हैं। बेरहमी से पिटाई, ऊपरी मंजिल से फेंक देने, निर्वस्त्र घुमाने, जबरन शराब पिलाने, यौन कृत्यों के लिए मजबूर करने जैसी रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाएं फिल्मों में दिखाई जाने वाली हिंसा को भी पीछे छोड़ देती हैं।
और वरिष्ठ छात्र ऐसा सिर्फ क्षणिक मौज-मस्ती, भीतर पैठी हिंसक व यौन कुंठाओं और अपने वरिष्ठ होने दंभ को शांत करने के लिए करते हैं। इस तरह की अमानवीय घटनाओं से तो लगता है कि संस्थान में छात्र नहीं, बल्कि घुटे हुए पेशेवेर अपराधी आ गए हैं। ज्यादा हैरानी की बात तो यह है कि ऐसे आपराधिक कृत्यों में छात्राएं भी पीछे नहीं हैं।
रैगिंग की समस्या से निपटने के लिए कानूनों की कोई कमी नहीं है। देश की सर्वोच्च अदालत से लेकर शिक्षण संस्थानों तक के अपने सख्त नियम-कानून हैं। हर शिक्षण संस्थान दाखिला देने से पहले छात्रों से हलफनामा भी लेता है कि रैगिंग जैसी घटना में शामिल पाए जाने पर उसका दाखिला रद्द कर दिया जाएगा। लेकिन इतना सब कुछ होते भी अगर रैगिंग करने वालों के मन में कानून का खौफ नहीं रहता है तो इसका कारण इन घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया जाना है।
जब-जब रैंगिग की घटनाएं सामने आती हैं तो कॉलेज प्रबंधन इन्हें छात्रों का आपसी विवाद बताते हुए रफा-दफा कर देते हैं। बहुत कम मामले ऐसे होते हैं जो पुलिस व अदालत तक पहुंचते हैं। भोपाल वाली घटना में यही हुआ। पीड़ित छात्रा की शिकायत को कॉलेज प्रबंधन ने अनसुना कर दिया और इसीलिए उसे जीवन खत्म करने जैसा आत्मघाती कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा। रैगिंग जैसा अपराध समाज के लिए ज्यादा दुख और शर्म की बात इसलिए भी है कि यह कोई अनजाने में होने वाला अपराध नहीं है, बल्कि इसे अंजाम देने वाले पूरे होशोहवास में होते हैं और उन्हें कानून का कोई भय नहीं होता।