यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि आतंकवाद दुनिया भर के लिए एक बड़ी चुनौती है और इससे पीड़ित देशों की सीमाएं नहीं रह गई लगती हैं। इस समस्या ने कई अलग-अलग शक्ल अख्तियार कर लिए हैं और निशाने पर लिए गए देश में हमला करके निर्दोष लोगों की हत्या करने में आतंकियों को जरा भी हिचक नहीं होती। भारत पिछले कई दशक से इस जटिल समस्या का सामना कर रहा है। कई बार बड़े और घातक आतंकी हमलों में बड़ा नुकसान उठाने के समांतर भारत ने बहुत सख्ती से आतंकवाद से मोर्चा भी लिया है।
हर थोड़े दिनों के अंतराल के बाद जम्मू-कश्मीर में मुठभेड़ में आतंकियों के मारे जाने की घटनाएं बताती हैं कि भारत किस तरह की चुनौती से जूझ रहा है। आज भी हालत यह है कि आए दिन कश्मीर में आतंकी हमले होते रहते हैं और उसमें आम लोगों और सुरक्षा बलों के जवानों की जान चली जाती है। सवाल है इस तरह आतंकी तत्त्वों को संरक्षण कौन देता है? किसे इस बात से संतोष मिलता दिखता है कि भारत को आतंकवाद की समस्या का जाल में फंसा कर रखा जाए, ताकि उसे अन्य मोर्चों पर अपनी संगठित ऊर्जा लगाने का मौका न मिले।
पाकिस्तान से संचालित होते हैं आंतकी ठिकाने
यह जगजाहिर रहा है कि भारत में और खासतौर पर जम्मू-कश्मीर के इलाके में जितने भी आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं, आमतौर पर वे पाकिस्तान स्थित ठिकानों से संचालित होते हैं। कुछ वर्ष पहले बेजिंग में हुए ब्रिक्स बैठक के घोषणापत्र में अपनी सीमा में आतंकवादी संगठनों को पनाह देने के लिए पाकिस्तान को कठघरे में भी खड़ा किया गया था। एक ओर पाकिस्तान अपनी सीमा में ऐसे ठिकानों को ध्वस्त करने और आतंकी संगठनों के खात्मे में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता है और दूसरी ओर वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांति और बातचीत की दुहाई भी देता है।
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यह स्थिति तब भी बनी हुई है जब खुद पाकिस्तान में भी आम लोग आए दिन बड़े आतंकी हमलों का शिकार होते रहते हैं। गुरुवार को भी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में हुए आतंकी हमले में कम से कम पचास लोगों के मारे जाने और कइयों के घायल होने की खबर आई। इसी तरह के दोहरे रवैये से आतंकवाद की समस्या से निपटने के उसके दिखावे का पता चलता है, जिसका खमियाजा खुद उसे भी उठाना पड़ता है।
विश्व भर में हुए कई आतंकी घटनाएं
हालांकि भारत ने अपनी ओर से पाकिस्तान के सामने बातचीत के जरिए समस्याओं के निपटाने का दरवाजा खुला रखा, इसके बावजूद पाकिस्तान के रुख में कोई बदलाव नहीं आया। इसलिए अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत ने ठीक ही कहा है कि पाकिस्तान के साथ बातचीत में पहला मुद्दा आतंकवाद पर रोक लगाना है। यों भी, आतंकवाद के प्रति भारत की नीति स्पष्ट रही है कि वह इसे किसी भी रूप में बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा। इसकी वजह यही रही है कि भारत लंबे समय से सीमापार से जारी और इसके अलावा भी वैश्विक आतंकवाद का शिकार रहा है।
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मुंबई और पुलवामा में हुए आतंकी हमलों की तरह की बड़ी घटनाओं के अलावा यह समस्या भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग इलाके में जिस तरह लक्षित आतंकी हमलों का सिलसिला बढ़ गया है, उसके स्रोत और कारण को समझना मुश्किल नहीं है। विडंबना यह है कि अनेक मौके पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से आतंकवाद के मसले पर फटकार सुनने के बावजूद पाकिस्तान को अपनी भूमिका में सुधार लाने की जरूरत महसूस नहीं होती।