आतंकवाद अब पूरी दुनिया में शांति और स्थिरता के लिए गंभीर खतरा बन गया है। इसे जड़ से खत्म करने के लिए सामूहिक प्रयास के दावे तो बहुत किए जाते हैं, लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। इसका कारण है कुछ देशों की कथनी और करनी में अंतर, जो कई अवसरों और मंचों पर साफ नजर आता है। इस मामले में भारत की नीति और नीयत पूरी तरह स्पष्ट है कि आतंक को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वहीं, पाकिस्तान जैसे मुल्क दोहरे मापदंड अपना कर एक तरफ खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताते हैं, दूसरी ओर अपनी जमीन पर आतंकियों की फौज भी तैयार कर रहे हैं।

इन तथ्यों का आकलन शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की हालिया बैठकों में आतंक के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के रुख से किया जा सकता है। चीन के तियानजिन में बीते मंगलवार को हुई एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दो टूक कहा कि इस समूह को आतंकवाद से निपटने के अपने स्थापना उद्देश्य पर कायम रहना चाहिए। भारत आतंकवाद के खात्मे के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और इस दिशा में सामूहिक प्रयासों को मजबूत करने के लिए नए विचारों और प्रस्तावों पर सकारात्मक रुख अपना रहा है।

भारत कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के इन खतरनाक इरादों को बेनकाब कर चुका है

एससीओ की स्थापना के मूल उद्देश्य में आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ से निपटने के मुद्दे भी शामिल थे। हालांकि, इस संगठन में शामिल पाकिस्तान और चीन की दखल से इन मुद्दों को हाशिये पर धकेलने का प्रयास किया जाता रहा है। इसके पीछे नापाक मंसूबे छिपे हुए हैं, जो आतंकियों का वित्त पोषण कर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करने से प्रेरित हैं। भारत कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के इन खतरनाक इरादों को बेनकाब कर चुका है। हालांकि पाकिस्तान हमेशा इससे इनकार करता आया है।

आतंकवाद पर चीन अपनाए कड़ा रुख… विदेश मंत्री जयशंकर की ड्रैगन को दो टूक

एससीओ सम्मेलन में भी उसने पहलगाम आतंकी हमले में अपनी भूमिका नहीं कबूली। जबकि, कंधार विमान अपहरण से लेकर मुंबई हमले, संसद पर हमला तथा उरी, पठानकोट और पहलगाम हमले में उसका हाथ होने की बात साक्ष्यों के साथ जाहिर हो चुकी है। वैश्विक आतंकवाद वित्त पोषण निगरानी संस्था एफएटीएफ की हालिया रपट में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि पहलगाम आतंकी हमला बिना वित्त पोषण के संभव नहीं था।

इससे पहले जून में हुए एससीओ के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने आतंकवाद के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले का हवाला देते हुए कहा था कि कुछ देश अपनी नीतियों में सीमापार आतंकवाद को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं और आतंकियों को पनाह दे रहे हैं। इसके बाद जब सम्मेलन का संयुक्त घोषणा-पत्र तैयार किया गया, तो उसमें पहलगाम आतंकी हमले का कोई जिक्र नहीं था और भारत ने इसका कड़ा विरोध किया था।

इससे पाकिस्तान और चीन के मंसूबों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। अगर ये देश वास्तव में आतंकवाद को खत्म करने की इच्छा रखते हैं, तो संयुक्त घोषणा-पत्र में पहलगाम हमले की निंदा करने से गुरेज क्यों किया गया? दोराय नहीं कि ऐसे दोहरे मापदंड को खत्म करना बेहद जरूरी है और एससीओ जैसे मंच को ऐसी ताकतों की खुलेआम आलोचना करनी चाहिए। अब जरूरी है कि आतंकवाद के वित्त पोषकों और प्रायोजकों को न्याय के कठघरे में लाने के लिए ईमानदारी से प्रयास किए जाएं।