देश की किशोरवय आबादी का टीकाकरण इस महीने से शुरू होने की खबर राहत देने वाली है। कोरोना महामारी से जंग की दिशा में यह एक और बड़ा कदम होगा। केंद्र सरकार ने इस साल अगस्त में बच्चों के पहले स्वदेशी टीके जायकोव-डी को मंजूरी देकर बारह से अठारह साल के बच्चों के टीकाकरण का रास्ता साफ कर दिया था। यह टीका जायडस कैडिला ने बनाया है। अब सरकार इसकी एक करोड़ खुराक खरीदेगी और इसे देशव्यापी टीकाकरण में इसी महीने शामिल कर लिया जाएगा। गौरतलब है कि अब तक अठारह साल से ऊपर के लोगों का ही टीकाकरण चल रहा है।

अभी तक कोविशील्ड और कोवैक्सीन सहित जो दूसरे टीके लगाए जा रहे हैं, वे अठारह साल से कम वालों के लिए नहीं हैं। जायकोव-डी पहला टीका है जिसे बारह से अठारह साल के किशोरों को दिया जा सकेगा। गौरतलब है कि देश में टीकाकरण कार्यक्रम इस साल जनवरी में शुरू हुआ था। उसके बाद से अब तक चरणबद्ध तरीके से हर आयु वर्ग के लोगों को शामिल किया जाता रहा है। अभी सबसे ज्यादा जोर वयस्क आबादी के टीकाकरण पर है। सरकार इस कोशिश में है कि पूरी वयस्क आबादी को कम से कम एक खुराक तो दे दी जाए, ताकि लोगों को कोरोना से बचाव का सुरक्षा कवच मिल सके।

अठारह साल से नीचे की आबादी का टीकाकरण कम चुनौती भरा काम नहीं है। इस वर्ग के लिए टीके के विकास से लेकर परीक्षण तक में समय इसलिए भी लगा है क्योंकि बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता बड़ों के मुकाबले अलग होती है। जायकोव-डी टीके की खूबी यह है कि यह दुनिया का पहला टीका है जो डीएनए आधारित है। अभी तक दुनियाभर में जितने भी टीके आए हैं, वे आरएनए पर आधारित हैं। बच्चों को इसे सूई के बजाय एक विशेष तकनीक से त्वचा के जरिए दिया जाएगा। आमतौर पर बच्चे सूई लगवाने से घबराते हैं और इस कारण टीका लगवाने से बिदक सकते हैं।

इसलिए बच्चों की सहूलियत को देखते हुए कंपनी ने बिना सूई वाला टीका बना कर काम आसान बना दिया है। जायडस कैडिला का दावा है कि वह हर महीने एक करोड़ टीके बना कर देगी। देश में दो साल से अठारह साल के बीच के बच्चों की आबादी पैंतीस करोड़ से भी ज्यादा है। इसमें बारह से अठारह साल के बीच किशोरों की संख्या करीब चौदह करोड़ है। जाहिर है, यह आबादी भी कम नहीं है और इसीलिए इनके टीकाकरण का काम भी लंबा चलेगा।

बच्चों का टीकाकरण इसलिए भी अपरिहार्य हो गया है कि अब ज्यादातर राज्यों में स्कूल खुल चुके हैं। ऐसे में बच्चे बाहर निकलेंगे और अगर टीका नहीं लगा होगा तो उन्हें संक्रमण का खतरा बना रहेगा। अगर बारह से अठारह साल की आबादी का टीकाकरण हो जाता है तो संक्रमण के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। वैसे कई देशों में तो बच्चों को टीके लगाने का काम शुरू भी हो चुका है।

वैसे भारत में भी बारह साल से कम उम्र वाले बच्चों के टीकों का परीक्षण चल रहा है। इनमें जायकोव-डी के अलावा भारत बायोटेक का कोवावैक्सीन, सीरम इंस्टीट्यूट का कोवावैक्स और बायोलोजिकल ई का कोरबेवैक्स जैसे टीके शामिल हैं। पर अब ध्यान देने की बात यह है कि टीकाकरण को लेकर अब तक जिन मुश्किलों का सामना हमने किया है, उनसे सबक लें। पहले ही से ऐसी तैयारियां रखें जिनसे बच्चों के टीकाकरण में व्यवधान न आएं। वरना महामारी से जंग के प्रयासों को धक्का लगते देर नहीं लगेगी।