राजस्थान के कोटा शहर में विद्यार्थियों की आत्महत्या अब इस कदर चिंता का कारण बन चुकी है कि सुप्रीम कोर्ट को भी इसमें दखल देना पड़ा है। यों कोटा में पढ़ाई के तनाव और दबाव के कारण खुदकुशी की लगातार घटनाओं पर पिछले कई वर्षों से सवाल उठते रहे हैं और इसका कोई ठोस समाधान खोजने पर बल दिया जाता रहा है, लेकिन यह समस्या और जटिल होती गई है। इस मसले पर न तो कोचिंग संस्थानों को अपनी नीति और तौर-तरीके बदलने की जरूरत महसूस हो रही है और न सरकार की कोई पहल कारगर हो पा रही है।
कोचिंग संस्थान अपने मुनाफे के लिए इस समस्या की अनदेखी कर रहे हो सकते हैं, मगर सवाल है कि क्या सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान सरकार के इसी रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा है कि एक राज्य के तौर पर आप क्या कर रहे हैं। अदालत ने यह भी पूछा कि छात्र कोटा में ही क्यों आत्महत्या कर रहे हैं और क्या आपने इस पर कोई विचार किया है। दरअसल, एक मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह पाया कि कोटा के एक छात्र के खुदकुशी कर लेने पर कोई प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की गई।
छात्रों के खुदकुशी की समस्या अब हो चुकी है बेहद गंभीर
यह समझना मुश्किल है कि कोटा में इंजीनियरिंग और चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए होने वाली परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों में विद्यार्थियों की आत्महत्या की घटना के एक बड़ी समस्या का रूप ले लेने के बावजूद सरकार की नजर में यह इस हद तक अनदेखी करने लायक मसला क्यों है।
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यह छिपी बात नहीं है कि हर वर्ष कोटा के कोचिंग संस्थानों में सख्त नियम-कायदों, पढ़ाई के तनाव और अपने माता-पिता की महत्त्वाकांक्षाओं का दबाव कई विद्यार्थी नहीं झेल पाते और खुदकुशी कर लेते हैं। आखिर यह अलग से पढ़ाई का कैसा ढांचा है कि उसमें कई विद्यार्थी टूट जाते हैं? मामूली विफलता या इसके डर का स्रोत क्या है कि बच्चों के भीतर नया रास्ता खोजने का साहस नहीं पैदा हो पाता और जान दे देना उन्हें आसान लगता है। यह समस्या अब बेहद गंभीर हो चुकी है और इसके समाधान के लिए तत्काल बहुस्तरीय और ठोस पहल की जरूरत है।