सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर पंजाब और हरियाणा पुलिस के प्रमुखों से कहा है कि वे किसानों से बात करके शंभू सीमा को एक हफ्ते के भीतर खुलवाएं। राजमार्ग वाहन खड़ी करने की जगह नहीं होते। अदालत ने कहा कि एंबुलेंस, आवश्यक सेवाओं, वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, छात्र-छात्राओं और आसपास के स्थानीय लोगों की आवाजाही के लिए शंभू सीमा को आंशिक रूप से खोलना आवश्यक है। दरअसल, फरवरी से ही किसान शंभू सीमा पर अपनी ट्रैक्टर ट्रालियों में बसेरा बना कर डेरा डाले हुए हैं। इससे वहां आवाजाही बाधित है।

पिछले आंदोलन के समय किए गए वादे पूरे न होने से नाराज पंजाब के किसानों ने दिल्ली कूच किया था। मगर हरियाणा सरकार ने उन्हें राज्य की सीमा में प्रवेश से रोक दिया था। सड़कों पर दीवारें खड़ी कर कील-कांटे लगा दिए थे। उन्हें वापस लौटने पर मजबूर करने के लिए कई दिन तक ड्रोन से आंसू गैस के गोले बरसाए जाते रहे। पुलिस की गोलीबारी में एक प्रदर्शनकारी युवा किसान की मौत भी हो गई थी। तब किसानों ने शंभू सीमा पर उसी तरह डेरा डाल दिया था, जैसे पिछले आंदोलन के समय दिल्ली की बाहरी सीमाओं पर साल भर से अधिक समय तक किसान बैठे रहे थे।

हरियाणा सरकार का रुख अब भी किसानों को छकाने का ही है। कुछ समय पहले पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि किसानों को अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करने का नागरिक अधिकार है। कोई भी सरकार सड़कें खोद और उन पर कील-कांटे गाड़ कर उनके अधिकारों का हनन नहीं कर सकती। तब हरियाणा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी, पर वहां से भी उसे वही फटकार सुनने को मिली।

सुप्रीम कोर्ट ने समिति गठित करने के लिए मांगा था गैर राजनीतिक लोगों का नाम

सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों सरकारों से ऐसे गैर-राजनीतिक लोगों के नाम मांगे थे, जिनकी एक समिति गठित की जा सके, जो किसानों से बातचीत करके समस्या का समाधान करने का प्रयास करे। वह समिति गठित हो गई है। वह किसानों से बातचीत कर क्या सुझाव देती है और उस सुझाव को सरकारें किस हद तक स्वीकार करती हैं, देखने की बात है। मगर फिलहाल शंभू सीमा पर किसानों के वाहन खड़े करने से पैदा अवरोध को दूर करने का मसला है। यह कोई मुश्किल काम नहीं है। किसान यों भी सामान्य नागरिकों के कामकाज में बाधा नहीं डालना चाहते। पुलिस की ज्यादतियों की वजह से यह संकट अधिक बना हुआ है। किसानों से अधिक अवरोध तो खुद पुलिस ने किसानों को रोकने के मकसद से खड़े कर रखे हैं।

हरियाणा सरकार ने आगाजी चुनाव में एमएसपी को लेकर की घोषणा

विवादित तीन कृषि कानूनों को वापस लेते वक्त केंद्र सरकार ने वादा किया था कि वह जल्दी ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाला कानून बना लेगी। मगर करीब तीन साल बीत जाने के बाद भी इस पर कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया जा सका है। ऐसे में किसानों की नाराजगी समझी जा सकती है। असल मुद्दा यही है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हरियाणा सरकार ने तो घोषणा की है कि वह किसानों का सारा अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदेगी, मगर किसान भी जानते हैं कि यह केवल चुनावी जुमला है। जब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का कानून नहीं बनता, किसान शायद ही आंदोलन का रास्ता छोड़ना चाहेंगे। हरियाणा और पंजाब की सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों से बातचीत के लिए गठित समिति के लिए भी यह मामला आसान नहीं लगता।