दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद कोई नया नहीं है। मगर अब पेड़ों की कटाई के मसले पर जिस तरह के असुविधाजनक हालात सामने आ रहे हैं, वे निराशाजनक हैं। इससे पता चलता है कि आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच शासन में जिम्मेदारी और जवाबदेही का किस कदर लोप हो गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के रिज इलाके में पेड़ों की कटाई को लेकर पिछले दिनों उपराज्यपाल वीके सक्सेना से हलफनामा दायर करने के लिए कहा गया था। मगर संबंधित क्षेत्र में पेड़ों की कटाई कब कराई गई, इसकी तारीखों में विसंगतियां मिली हैं।
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देश की शीर्ष अदालत ने इन विसंगतियों पर सवाल उठाते हुए घटनाओं की सटीक जानकारी मांगी है। अदालत ने दिल्ली विकास प्राधिकरण यानी डीडीए के पूर्व उपाध्यक्ष से भी पूछा है कि उन्हें पेड़ों की कटाई के बारे में कब पता चला। अदालत ने इसी के साथ कटाई की इजाजत देने संबंधी सभी मूल दस्तावेज तलब किए हैं। सवाल है कि संबंधित महकमों के दायित्वों में इस स्तर की लापरवाही कैसे और क्यों बरती गई और इस संबंध में अदालत की ओर से सफाई मांगने की नौबत क्यों आई।
उपराज्यपाल बोले-पूर्व अनुमति की आवश्यकता के बारे में नहीं बताया गया
जाहिर है, यह समूचा मसला जवाबदेही और जिम्मेदारी का है, जिसकी फिक्र करना जरूरी नहीं समझा गया। यह विचित्र है कि उपराज्यपाल कह रहे हैं कि उन्हें पूर्व अनुमति की आवश्यकता के बारे में नहीं बताया गया। यह एक दलील हो सकती है कि कोई काम जनहित में है, मगर क्या इससे नियम-कायदों की अहमियत कम हो जाती है। उपराज्यपाल के हलफनामे और इससे संबंधित विसंगतियों पर अदालत सवाल उठा रही है, तो इसकी गंभीरता का अनुमान लगाया जा सकता है।
अब अगर यह स्वीकार किया जा रहा है कि चूक हुई है, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है? इस मामले में शीर्ष अदालत को याद दिलाना पड़ा है कि उपराज्यपाल को यह मालूम होना चाहिए कि पेड़ों को काटने के लिए अदालत की मंजूरी जरूरी होती है। सवाल है कि इतने ऊंचे पदों पर बैठ कर किसी काम के बारे में तय नियमावली की अनदेखी कैसे की जा सकती है। अगर इस समूची प्रक्रिया के पालन में किसी तरह की विसंगति उभर रही है, तो इसके लिए कौन जवाबदेह है?