छोटे शहरों से लेकर महानगरों में कुत्तों के काटने से लोगों के जख्मी होने और जान जाने की घटनाएं पहले की अपेक्षा बढ़ गई हैं। इसके कई कारण हैं। आमतौर पर कुत्ते इंसानों के साथ हिंसक नहीं होते। मगर, बढ़ते शहरीकरण के साथ जिस तरह से उनके सुरक्षित पर्यावास और भोजन का संकट पैदा हुआ, उनकी प्रवृत्ति हिंसक होती जा रही है। नतीजा यह कि अब आवारा कुत्तों को गली और सड़क पर भोजन देने पर आपत्तियां उठ रही हैं। इसे पसंद और नापसंद करने वालों के बीच टकराव अदालतों तक जा पहुंचा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया में कुत्तों के काटने से होने वाली बीमारी रेबीज से मौत के छत्तीस फीसद मामले भारत में ही सामने आते हैं। घायलों का ठीक से उपचार न होना भी बड़ी समस्या है। फिलहाल, सड़कों पर घूमते कुत्तों को खाना देने और न देने पर एक विवाद शीर्ष अदालत में है।
आम लोगों के लिए खतरा बन रहे हैं आवारा कुत्ते
खाना देने पर परेशान किए जाने का आरोप लगाने वाले याचिकाकर्ता से अदालत ने पूछा है कि आप गली-मुहल्ले के प्रत्येक कुत्ते को घर पर ही खाना क्यों नहीं देते। निस्संदेह यह सवाल वाजिब है, क्योंकि सड़कों के किनारे या गलियों में खाना देते समय कई कुत्ते एक जगह जमा हो जाते हैं। यही कुत्ते आते-जाते लोगों खासकर बच्चों और दोपहिया पर सवार लोगों के लिए खतरा बन जाते हैं।
पशु जन्म नियंत्रण नियमावली, 2023 का नियम पशुओं को भोजन देने की बात रेखांकित तो करता है, लेकिन इसका दायित्व स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों और क्षेत्र के निवासियों के संगठन पर डाला है। मगर, आज लोग कहीं पर भी पशुओं विशेषकर कुत्तों को खाना खिलाते दिख जाते हैं। मना करने पर झगड़ा और मारपीट की घटनाएं आम हैं।
इस परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत को यह कहना पड़ा कि क्या हर गली और सड़क कुत्तों को खाना खिलाने वाले बड़े दिल वालों के लिए छोड़ देनी चाहिए? इसमें दोराय नहीं कि आम आदमी की चिंता सर्वोपरि है। आवारा कुत्तों की देखभाल होनी चाहिए, लेकिन लोगों की सुरक्षा भी जरूरी है। इसलिए पशु प्रेमियों को आम नागरिकों की चिंता के प्रति अपनी संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।