देश के चिकित्सा ढांचे की हालत किसी से छिपी नहीं है। शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक चिकित्सकों, नर्सों की भारी कमी एक गंभीर समस्या रही है। छोटे-बड़े लगभग सभी अस्पतालों में साधारण लोग बीमारियों की जांच और इलाज के लिए लंबे इंतजार के अभ्यस्त हो गए हैं।
लगातार बढ़ती आबादी के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर बना दबाव समझ में आता है, लेकिन अगर यही स्थिति सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ जैसे महकमे में भी दिखाई दे, तो मामला संवेदनशील हो जाता है। अफसोस की बात है कि बीआरओ ऐसे ही संकट की स्थिति का सामना कर रहा है। सीमा पर जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश जैसे इलाकों में महत्त्वपूर्ण सामरिक सड़कों, सुरंगों और पुलों के निर्माण कार्य में जुटे बीआरओ की चिकित्सा इकाइयों में डाक्टरों की भारी कमी है।
सैन्य आधारभूत ढांचा मजबूत करने में लगे संगठन कर्मियों को बीमार या घायल होने पर इलाज के लिए इन्हीं इकाइयों में भर्ती कराया जाता है। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीआरओ की एक सौ उनतीस चिकित्सा इकाइयों में केवल तेरह चिकित्सक ही तैनात हैं। यानी एक सौ सोलह पद खाली पड़े हुए हैं। ऐसे में वहां स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहे सैनिकों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा होगा, यह समझा जा सकता है।
सामरिक महत्त्व के संवेदनशील महकमे के तहत चिकित्सा ढांचे की यह स्थिति परेशान करने वाली है। ऐसे समय में यह खासतौर पर ध्यान रखने की जरूरत है जब चीन सीमा पर पिछले तीन साल से तनाव की स्थिति बनी हुई है और भारत सीमावर्ती इलाकों में अपने आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के लिए तेजी से काम कर रहा है। चीन और पाकिस्तान से लगी अति संवेदनशील सीमा पर मैदानों से लेकर कई हजार फुट की ऊंचाई वाले दुर्गम इलाकों में बीआरओ की कई परियोजनाएं युद्ध स्तर पर चल रही हैं।
काम के दौरान या प्रतिकूल मौसम में वहां सीमा सड़क संगठन के कर्मियों का घायल या बीमार होना आम बात है। लेकिन चिकित्सकों की कमी के कारण जाहिर है, समय पर जरूरी इलाज मुहैया नहीं हो पाता होगा। मौजूदा स्थितियां बताती हैं कि इसके लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। संघ लोकसेवा आयोग के जरिए होने वाली भर्ती प्रक्रिया का हाल देखकर सरकार के प्रयासों में कमी साफ झलकती है। दूसरे, सैन्य अधिकारी बताते हैं कि चीन और पाकिस्तान सीमा से लगे इलाकों में बीआरओ के साथ तैनाती से कई डाक्टर कतराते हैं।
सही है कि पिछले कुछ वर्षों में चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय काम हुआ है। देशभर में अस्पतालों की संख्या में खासी बढ़ोतरी हुई है। एमबीबीएस की सीटें लगभग दोगुनी होकर एक लाख हो चुकी हैं। लेकिन इतना सब होने के बावजूद सैन्य क्षेत्र में डाक्टरों की कमी जैसे संवदेनशील मसले पर प्राथमिकता से ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा?
अगर विभागीय स्तर पर दिक्कतें हैं तो उन्हें हर हाल में दूर किया जाना चाहिए और जटिल भौगोलिक परिस्थितियां, पारिश्रमिक या परिवार से लंबे वक्त के लिए अलगाव जैसे कारणों को आधार बनाकर डाक्टर सीमा पर तैनाती से बचते हैं, तो इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना और इनका हल निकालना होगा। यह ऐसा मामला नहीं है, जिसे लंबे वक्त तक टाला जाए। सैनिकों की सेहत प्राथमिक जिम्मेदारी है और यह मोर्चे पर भी दिखनी चाहिए।