अच्छी सड़कों को विकास के एक मानक के तौर पर देखा जाता है। लेकिन इनका इस्तेमाल करने वाले लोग अगर सफर के सलीके और कायदों को ताक पर रखते हैं, उसका नतीजा कभी भी सुखद नहीं हो सकता। आए दिन इस मसले पर अध्ययनों में यह बताया जाता रहा है कि बहुत मामूली लापरवाही की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं में जिस पैमाने पर लोगों की जान चली जाती है, वह चिंता की बात है। लेकिन ऐसा लगता है कि ये आंकड़े न सरकार को ज्यादा चिंतित करते हैं, न लोग इससे सबक लेते हैं।

बेहद अफसोसजनक यह भी है कि इस तरह के हादसों में न केवल वयस्क लोगों की जान जा रही है, बल्कि उनके साथ सफर करने वाले बच्चे भी नाहक ही जान गंवा बैठते हैं। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अकेले दिल्ली में पिछले तीन साल में एक से सत्रह वर्ष तक की उम्र वाले एक सौ इकसठ बच्चों की जान चली गई। अब यह एक सामान्य निष्कर्ष है कि इस तरह के हादसों में जितने लोगों की मौत होती है, उनमें से ज्यादातर की जान सिर्फ कुछ सावधानी के जरिए बचाई सकती है। लेकिन इस मामले में बरती जाने वाली बहुस्तरीय कोताही के चलते अव्वल तो हादसों की रफ्तार पर रोक नहीं लग पा रही है और न ही इसमें मरने वालों को बचाया जा पाता है।

यह छिपा नहीं है कि वाहनों के आपस में टकरा जाने और उसमें किसी के बुरी तरह घायल होने में सबसे बड़े कारकों में यातायात नियमों का पालन नहीं करना, निर्धारित से ज्यादा तेज रफ्तार से गाड़ी चलाना, हेलमेट और अन्य सुरक्षा यंत्र पहनने को लेकर लापरवाही बरतना मुख्य हैं। जबकि सड़क पर चंद पलों के भीतर उचित निर्णय लेने में असंतुलन की वजह से बड़े हादसे हो जाते हैं और उसके बाद ये कारक किसी के जिंदा बचने की रही-सही उम्मीद खत्म कर देते हैं। यह बेवजह नहीं है कि अब सड़कों पर वाहन चलाने के मामले में नए सिरे से नियम सख्त करने, दोपहिया पर बच्चों के लिए हेलमेट अनिवार्य करने जैसे उपायों को अनिवार्य बनाने की बात उठ रही है।

लोग जान जाने की नहीं करते फिक्र, बने रहते हैं लापरवाह

विडंबना यह है कि अगर कहीं नियमों के मुताबिक अमल को लेकर सरकार का आग्रह होता है तो वहां लोग अपनी ओर से इस हद तक लापरवाही बरतते हैं कि किसी की जान चली जाए। इसे यातायात को लेकर जरूरी प्रशिक्षण का अभाव कहा जा सकता है, लेकिन इससे ज्यादा यह न केवल दूसरों के जीवन के प्रति, बल्कि अपनी सुरक्षा को लेकर भी सजगता के अभाव का नतीजा है।

यह बेवजह नहीं है कि कई बार वाहन चलाते हुए कोई व्यक्ति यह मान कर चलता है कि उसके आसपास या सामने कोई नहीं है और बहुत मामूली वजह से भी या तो वह हादसा कर बैठता है या फिर बेवजह घातक स्तर तक लड़ाई करता है। ऐसे दृश्य अक्सर दिख जाते हैं जब किसी वाहन में निर्धारित से ज्यादा संख्या में लोगों को बिठा कर लोग बेहद असुरक्षित तरीके से चलते हैं। नशे में कोई छोटा या भारी वाहन चलाते हुए व्यक्ति न दूसरों का खयाल रख पाता है, न अपनी जान को लेकर उसे फिक्र होती है।

रातों में बेलगाम तरीके से दौड़ते बड़े वाहनों का जोखिम अब कोई छिपा तथ्य नहीं है। ऐसे में सड़कों पर अन्य लोगों के बीच बच्चे हादसों के आसान शिकार बन जाते हैं, जो कई बार बच सकने की कोशिश भी नहीं कर पाते। जरूरत इस बात की है कि न केवल सड़क यातायात को लेकर नियमों में नरमी न बरती जाए, बल्कि वाहन चलाने वालों के भीतर यह अहसास पैदा हो कि वे अपने और दूसरों के जीवन की फिक्र करें।