जम्मू-कश्मीर में अक्सर ऐसा लगता है कि आतंकवादियों के खिलाफ गहन अभियान से धीरे-धीरे उनकी गतिविधियां खत्म हो जाएंगी। मगर आए दिन मुठभेड़ों में आतंकवादियों के मारे जाने की घटनाएं जहां यह बताती हैं कि सुरक्षा बलों की ओर से सख्ती और चौकसी बढ़ी है, वहीं इससे यह भी पता चलता है कि आज भी आतंकी संगठनों की उपस्थिति बनी हुई है और वे अपना आतंक कायम रखने के लिए किसी की हत्या कर देते हैं। हालांकि कई बार उनके हमलों से यह भी साफ होता है कि वे स्थानीय समुदायों को या तो डरा कर रखना चाहते हैं या फिर अपना साथ न देने पर प्रकारांतर से उनसे बदला लेने की कोशिश करते हैं।
इसी क्रम में सोमवार को कुलगाम के बेहीबाग इलाके में आतंकवादियों ने एक सेवानिवृत्त फौजी लांस नायक के परिवार पर हमला कर दिया। इसमें पूर्व फौजी की मौत हो गई, जबकि उनकी पत्नी और बेटी घायल हो गईं। इसके बाद सुरक्षा बलों ने आतंकियों की तलाशी का अभियान शुरू किया। विडंबना है कि हर समय चौकसी के बीच भी कई बार आतंकी हमला कर दे रहे हैं।
खौफ पैदा करना आतंकी संगठनों की रह गई सीमा
जाहिर है, यह आतंकवादियों की ऐसी रणनीति है, जिसका सामना करने और उन पर काबू पाने के लिए भी सख्त उपाय करने होंगे। हाल के वर्षों में वहां आतंकी हमलों की प्रकृति में जिस तरह के बदलाव देखने को मिले हैं, उससे साफ है कि उनके बीच हताशा बढ़ रही है और इसी वजह से उनके हमलों में अब बेलगाम हिंसक प्रतिक्रिया ज्यादा दिख रही है।
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ताजा हमले के समांतर ही हर कुछ समय के बाद रोजी-रोटी की उम्मीद में वहां जाने वाले मजदूरों या बाहरी लोगों की लक्षित हत्या करने की घटनाएं यह बताती हैं कि महज खौफ पैदा करना आतंकी संगठनों की सीमा रह गई है। घात लगा कर सैन्य शिविरों पर हमले करने की घटनाओं के जरिए वे अपने को एक मजबूत पक्ष के रूप में दर्शाना चाहते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनकी गतिविधियां ऐसी भूख को दर्शाती है, जो आखिर में अपनों को भी उसकी आग में खाक करती है।
सुरक्षा बलों को मिल रही कामयाबी
पिछले कुछ समय में जम्मू-कश्मीर की सीमा में घुसपैठ के मोर्चों पर सुरक्षा बलों ने लगातार बंदिश लगाई है, आतंकियों को रोका है या फिर मुठभेड़ों में मार गिराया है। पाकिस्तानी शह पर और वहां स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के स्थानीय संजाल को भारतीय सेना ने सख्ती से निष्क्रिय कर दिया था।
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निश्चित रूप से यह सुरक्षा बलों को मिल रही कामयाबी है, जिसमें आतंकी संगठनों के सामने पहले की तरह खुला खेलने की स्थिति नहीं बची है। मगर हाल के कुछ आतंकी हमलों से ऐसा लगता है कि एक बार फिर से वे आतंकी संगठन अपना सिर उठा रहे हैं। हालांकि अब स्थानीय आबादी के बीच से आतंकियों को समर्थन मिलना कम हो रहा है।
बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं, जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपना जीवन शांतिपूर्ण तरीके से गुजारना चाहते हैं। हाल में जम्मू-कश्मीर में हुए चुनावों के नतीजे यह बताने के लिए काफी हैं कि वहां लोगों के बीच किस तरह के भविष्य की भूख है। ऐसे में आतंकी संगठनों के भीतर हताशा का भाव पैदा होना स्वाभाविक है। अफसोस की बात है कि इसकी कीमत साधारण लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है।