बठिंडा सैन्य ठिकाने में हुई गोलीबारी और उसके बाद एक संतरी की कथित खुदकुशी को लेकर वहां की सुरक्षा व्यवस्था पर स्वाभाविक ही सवाल उठ रहे हैं। यह देश के सबसे बड़े सैन्य ठिकानों में से एक है। यह इसलिए भी संवेदनशील है कि बिल्कुल पाकिस्तान की सीमा से लगा है और यहां तैनात सैनिक सदा अभियान के लिए तैयार रखे जाते हैं। जाहिर है, वहां सुरक्षा को लेकर खासी चौकसी बरती जाती है।

ऐसे में अगर दो अज्ञात लोग उस सैन्य ठिकाने के भीतर घुस कर सो रहे चार जवानों को गोलियों से भून डालते हैं, तो चिंता स्वाभाविक है। हालांकि अभी तक घटना की असली वजह ठीक-ठीक पता नहीं चल सकी है, मगर अधिकारियों का कहना है कि सैनिकों की आपसी रंजिश के चलते यह घटना घटी। घटना से दो दिन पहले एक इंसास राइफल और अट्ठाईस कारतूस चोरी चले गए थे।

इस घटना में उसी राइफल के इस्तेमाल की आशंका जताई जा रही है। हालांकि वह चोरी गई राइफल घटना के बाद बरामद कर ली गई है। इस घटना की असल वजह जांच के बाद पता चल जाएगी, मगर वहां की सुरक्षा से जुड़े सवाल शायद अनुत्तरित ही रहेंगे। इस घटना के अगले ही दिन एक संतरी की सिर में गोली लगने से मौत हो गई, जिसे खुदकुशी बताया जा रहा है।

दोनों घटनाओं के आपस में जुड़े होने से इनकार किया जा रहा है, मगर कथित खुदकुशी की घटना भी संदेह और सवालों से परे नहीं है। सैन्य छावनियों में बाहरी लोगों का प्रवेश आसान नहीं होता। पुख्ता जांच के बाद ही वे प्रवेश कर सकते हैं, इसलिए इस तर्क को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता कि चार जवानों की हत्या करने वाले सेना के भीतर के ही लोग थे।

मगर यह समझना थोड़ा कठिन है कि वे कैसे नकाब पहन कर आए और वारदात को अंजाम देने के बाद बड़ी आसानी से निकल भागे। छावनियों में सेना की टुकड़ियां किसी वरिष्ठ अधिकारी की निगरानी में रहती हैं। जगह-जगह आंतरिक सुरक्षा के इंतजाम होते हैं। निगरानी चौकियां बनी होती हैं। बठिंडा में इसे लेकर अधिक ही चौकसी की उम्मीद की जाती है। फिर कैसे दो नकाबपोश राइफल और कुल्हाड़ी लेकर भोजनालय वाले इलाके में पहुंचे और चार जवानों को मारने में कामयाब रहे। कैसे उन पर सुरक्षा में तैनात किसी सिपाही की नजर नहीं पड़ी या फिर जब गोलियां चलीं, तब भी कोई सक्रिय क्यों नहीं हुआ।

इस घटना को मामूली चूक या आपसी वैमनस्य बता कर हल्के में नहीं लिया जा सकता। अगर कुछ सैनिकों की आपस में रंजिश थी, तो उसके बारे में उनके अधिकारियों को जानकारी कैसे नहीं थी। फिर उन लोगों की पहचान करने और उन्हें तलाशने में इतना वक्त कैसे लगा। यह घटना बड़े शातिराना ढंग से अंजाम दी गई। ऐसे लोग सेना के लिए किसी भी रूप में उचित नहीं माने जा सकते।

सिपाहियों के बीच ऐसी आपसी रंजिश, जो खूंरेजी तक पहुंच जाए, सेना के अनुशासन पर सवाल खड़े करती है। फिर उस संतरी की मानसिक स्थिति का अंदाजा कैसे नहीं लगाया जा सका, जिसने पहरा देते हुए खुद को गोली मार ली। इन दोनों घटनाओं से यही रेखांकित हुआ है कि बठिंडा सैन्य ठिकाने में सब कुछ ठीक नहीं है। फिर यह भी कि सैनिकों की मानसिक स्थिति का आकलन करने के लिए जो सुझाव दिए गए थे, उनका सही ढंग से पालन नहीं हो रहा।