नए साल की पूर्व संध्या पर जिस तरह एक युवती को कार ने टक्कर मारी फिर उसे कई किलोमीटर तक घसीटती रही, और आखिरकार उसका शव सड़क पर छोड़ कर चली गई, वह हृदय विदारक घटना थी। ऐसी घटनाओं की खबरें देते या उन पर बात करते समय खासी संवेदनशीलता और सावधानी की अपेक्षा की जाती है। मगर खासकर टीवी चैनलों ने इस तकाजे की परवाह नहीं की।
उस घटना की खबर देने की जैसे होड़ लग गई और जैसे हर कोई जांच से पहले ही अपना फैसला सुनाने पर तुल गया। तरह-तरह से साबित करने का प्रयास किया जाने लगा कि उस घटना में दरअसल दोषी कौन है। कोई मृत लड़की की सहेली को तलाश लाया, उसने बयान दे दिया कि स्कूटी चला रही लड़की ने खूब शराब पी रखी थी। बस, किसी ने इस तथ्य की तह तक जाने का प्रयास ही नहीं किया और इस तरह खबरें परोसने लगे कि दरअसल, दोष कार चालक का नहीं, खुद उस लड़की का था। शायद इतना सब्र किसी में नहीं था कि वे इंतजार कर लें कि शव परीक्षा की रिपोर्ट में क्या तथ्य सामने आता है।
एक लड़की दुर्घटना में मारी जाती है, वह भी इतने भयावह तरीके से कि उसके बारे में सोच कर मन सिहर उठता है, उसके बारे में खबरें देने में इतने भी विवेक का इस्तेमाल करना जरूरी नहीं लगा कि तथ्यों को ठीक से जांच लें। कोई आकर कुछ भी कह दे, और उसे तथ्य मान लिया जाए, यह जिम्मेदार पत्रकारिता की पहचान तो नहीं। अभी मृत लड़की का अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था, शव परीक्षा की रिपोर्ट आनी थी, मगर खबर परोसने की ऐसी बेकली थी कि उसे चटखारेदार बना कर परोसा जाने लगा।
हैरानी की बात है कि इस तरह खबरें परोसते समय उनके मन में यह भाव क्यों नहीं आया कि मृत लड़की के परिवार पर क्या गुजर रही होगी। उसके परिवार में एक बीमार मां और आश्रित बहनें हैं। उन्हें अपने घर के कमाऊ सदस्य को खो देने के भारी गम से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा, उस पर से ऐसी खबरें, जो उसका चरित्र हनन करती हैं, भला यह कौन-सा पत्रकारीय विवेक है। मगर शायद सबसे पहले सबसे चटखारेदार खबर परोसने की होड़ में लगे खबरिया चैनलों को विवेक का इस्तेमाल करने की फुरसत ही नहीं है।
यह पहली घटना नहीं है, जिसमें चैनलों ने उत्तेजना पैदा करने के मकसद से इस तरह खबरें परोसनी शुरू की कि उन्हें इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि उससे किसी का चरित्र हनन हो रहा है। आपराधिक घटनाओं की खबरें पेश करते समय अक्सर ऐसी हड़बड़ी और संवेदनशून्यता देखी जाती है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी के समय भी इसी तरह कई लोगों के चरित्र को कठघरे में खड़ा किया गया।
फिर जब शाहरुख खान के बेटे को नशे के आरोप में गिरफ्तार किया गया, तब भी इसी तरह सनसनी और उत्तेजना पैदा करने वाली तथ्यहीन खबरें परोसी गर्इं। दिल्ली के कंझावला कांड में तो मृत लड़की सामान्य परिवार की थी, इसलिए खबरें परोसने वालों को शायद बिल्कुल सावधानी बरतने की जरूरत नहीं लगी होगी। मगर उसके अंतिम संस्कार से पहले ही जिस तरह उसका चरित्र हनन कर दिया गया, उसकी भरपाई कैसे होगी और कौन कर सकेगा। इन खबरों से उसके परिवार पर क्या गुजरी, क्या इसका अंदाजा किसी को होगा!